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अविश्वास प्रस्ताव | No Confidence Motion

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) एक संसदीय प्रक्रिया है। अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के द्वारा विपक्षी पार्टियों या विपक्ष के कोई भी सांसद द्वारा सरकार से संबंधित किसी अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए लोकसभा अध्यक्ष के पास अपना प्रस्ताव रखता है।

जुलाई 2023 में मोदी सरकार (BJP) के खिलाफ विपक्षी पार्टियों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया गया। कारण है- मणिपुर हिंसा। अतः विपक्षी पार्टियां चाहती है कि इस मुद्दे पर संसद में चर्चा हो। और लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं और लोकसभा अध्यक्ष की मंजूरी भी मिल गई है। अब इस पर चर्चा होना है चूँकि वर्तमान सरकार के पास बहुमत है तो ऐसी स्थिति में सरकार गिर नहीं सकती है। लेकिन विपक्षी पार्टी को यह अधिकार है कि वह सरकार से किसी अहम मुद्दे पर असंतुष्ट है तो अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाकर सरकार को घेर सकती है और उनके सवालों के जवाब की अपेक्षा रखती है।                             

तो हम इस लेख में यह जानेंगे कि अविश्वास प्रस्ताव की परिस्थिति क्या होती है? एवं इसकी प्रक्रिया क्या है? साथ ही साथ इसके महत्व और इतिहास को भी जानने की कोशिश करेंगे:-

अविश्वास प्रस्ताव

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) का इतिहास

सर्वप्रथम पहला अविश्वास प्रस्ताव ब्रिटेन में 1782 ईस्वी में लाया गया था। भारतीय संसद के इतिहास में सर्वप्रथम 1963 ईस्वी में जे बी कृपलानी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा था। पक्ष में केवल 62 एवं खिलाफ में 347 वोट पड़े थे।

हमारे भारत देश की संसद में कुल 26 से अधिक बार अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) प्रस्तुत किए गए हैं और सबसे अधिक इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ 15 बार लाया गया है। अटल बिहारी वाजपेयी जब विपक्ष में थे तो दो अविश्वास प्रस्ताव लाए थे- एक इंदिरा गांधी के खिलाफ और दूसरा नरसिंह राव के खिलाफ। किसी व्यक्ति द्वारा सबसे अधिक चार बार माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु ने इंदिरा गांधी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था।

तीन-तीन अविश्वास प्रस्ताव का सामना लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकार ने की थी।

पहली बार 1978 ईस्वी में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के तहत मतदान में हार का सामना तत्कालीन सरकार मोरारजी देसाई को करना पड़ा था और सरकार गिर गई थी। इस सरकार को दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था।

1979 ईस्वी में भी तत्कालीन चरण सिंह की सरकार को अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) में बहुमत नहीं हासिल कर पाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। एवं 1989 ईस्वी में भी वी पी सिंह की सरकार को अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।

1998 ईस्वी में इंद्र कुमार गुजराल सरकार को भी अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के मतदान में बहुमत न ला पाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था।

1996 ईस्वी में और 1998 ईस्वी में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को विश्वास मत प्राप्त न कर पाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। दोबारा चुनकर आने के बाद बहुमत की अटल बिहारी सरकार को अक्टूबर 1999 ईस्वी में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था जिसमें उनकी जीत हुई थी।

2009 ईस्वी में मनमोहन सरकार के खिलाफ (UPA) अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया गया था लेकिन उन्होंने जीत दर्ज कर अपनी सरकार बचा ली थी। इस अविश्वास प्रस्ताव का कारण था अमेरिका द्वारा परमाणु समझौता।

2018 ईस्वी में मोदी (NDA) सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया (No Confidence Motion) गया था। इसमें मोदी सरकार को जीत हासिल हुई थी।

जुलाई 2023 ईस्वी में एक बार फिर से हमारे संसद में मणिपुर हिंसा में चर्चा के लिए विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव की मंजूरी ले ली है। तो आइए हम अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) को विस्तार पूर्वक जानते हैं:-

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) की परिस्थिति क्या होती है?

हमारा भारत देश एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र का अर्थ है जनता द्वारा चुनी हुई सरकार। इसलिए हमारे देश में चुनाव प्रक्रिया के द्वारा लोकसभा और विधानसभा दोनों जगह पर जनता के द्वारा मतदान कर सरकार का चयन किया जाता है।

हमारे देश में जब भी चुनाव होती है तो कभी बहुमत की सरकार बनती है तो कभी गठबंधन की सरकार बनती है। बहुमत की सरकार इस अविश्वास प्रस्ताव से गिर नहीं सकती क्योंकि उसके पास बहुमत होती है लेकिन हां अविश्वास प्रस्ताव सरकार को कमजोर अवश्य कर सकती है। गठबंधन की सरकार में सरकार बनाने के लिए बहुमत न होने के कारण कई पार्टियां मिलकर सरकार बनाती है और गठबंधन की सरकार कई पार्टियों द्वारा मिलाकर बनी होने के कारण यदि बीच में किसी अहम मुद्दे के कारण सरकार के खिलाफ अविश्वास हो जाए तो, सरकार बनाने के लिए गठबंधन की हुई किसी पार्टी के द्वारा समर्थन वापस ले लिया जाए तो गठबंधन सरकार के पास बहुमत नहीं होता है। ऐसी स्थिति में गठबंधन सरकार गिर सकती है। इसी कारण गठबंधन सरकार के खिलाफ विपक्ष संसद में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाती है।

विधानसभा में भी विपक्ष के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया जाता है तथा इसके नियम और प्रक्रिया भी लोकसभा के अविश्वास प्रस्ताव के जैसा ही होता है।

अविश्वास प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया को हम आगे देखेंगे। अतः अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाने का मुख्य कारण होता है सरकार को सत्ता से बाहर करना या कमजोर करना या किसी विशेष मुद्दे पर सरकार की ओर से की गई उसकी प्रतिक्रिया को जानना।

भारतीय संविधान के प्रस्तावना का महत्व और विवाद

अविश्वास प्रस्ताव क्या है?

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) उस परिस्थिति में लाया जाता है जब लोकसभा में किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन में सरकार अपना विश्वास खो चुकी है तो ऐसी स्थिति में विपक्षी पार्टी के द्वारा या विपक्ष के किसी सदस्य द्वारा अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया जाता है। इसे ही अविश्वास प्रस्ताव अर्थात No Confidence Motion कहा जाता है।

ऐसा होने पर अनुच्छेद 75(3) के तहत केंद्रीय मंत्री परिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह होगा। इसका मतलब यह हुआ कि अगर सरकार के पास बहुमत होगा तो सरकार की मंत्रिपरिषद बनी रहेगी अन्यथा बहुमत न होने पर प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद को इस्तीफा देना पड़ेगा अर्थात मंत्रिपरिषद भंग हो जाएगी।

स्वरूप

यह प्रस्ताव केवल एक ही पंक्ति की होती है एवं यह सदन मंत्रिपरिषद में अविश्वास व्यक्त करता है अर्थात इस एक पंक्ति के प्रस्ताव में केवल और केवल अविश्वास का जिक्र होता है इसके अलावा और कुछ भी लिखा हुआ नहीं होता है और न ही कारण देना होता है कि क्यों अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया जा रहा है।

पढ़ें:- भारतीय संविधान के प्रस्तावना की तत्व/आदर्श/लक्ष्य

अविश्वास प्रस्ताव के नियम

संसद में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) एक नियम के तहत लायी जाती है और यह विपक्षी पार्टियों के द्वारा लाया जाता है। अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही पेश किया जाता है। क्योंकि यहां जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि के रूप में सांसद होते हैं। इस अविश्वास प्रस्ताव में विपक्षी पार्टियों को संसद में सरकार के खिलाफ बहुमत साबित करना होता है। लोकसभा में विपक्ष के कोई भी सदस्य सरकार के खिलाफ यह प्रस्ताव ला सकता है।

इसके प्रक्रिया के बारे में हमारे संविधान में कोई भी जिक्र नहीं है। हाँ अनुच्छेद 118 में संसद में होने वाले प्रक्रिया के नियम के बारे में बताया गया है।

अनुच्छेद 118 – प्रक्रिया के नियम

(1) यह संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद का प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य संचालन के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा।

(2) जब तक खंड (1) के अधीन नियम नहीं बनाए जाते हैं तब तक इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन के विधान मंडल के संबंध में जो प्रक्रिया के नियम और स्थाई आदेश प्रवृत्त थे वे ऐसे उपांतरणों और अनुकूलनों के अधीन रहते हुए संसद के संबंध में प्रभावी होंगे, जिन्हें यथास्थिति, राज्यसभा का सभापति या लोकसभा का अध्यक्ष उनमें करे।

(3) राष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष से परामर्श करने के पश्चात दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों से संबंधित और उनमें परस्पर संचार से संबंधित प्रक्रिया के नियम बना सकेगा।

(4) दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में लोकसभा का अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में ऐसा व्यक्ति पीठासीन होगा जिसका खंड (3) के अधीन बनाई गई प्रक्रिया के नियमों के अनुसार अवधारण किया जाए।

यह लोकसभा की कार्य संचालन की जो नियमावली होती है उस नियम के 198(1) से 198(5) तक मंत्री परिषद में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) प्रस्तुत करने के लिए प्रक्रिया का निर्धारण किया गया है।

संसदीय प्रक्रिया नियमावली 198 (1) – 198(5)

(1) मंत्री परिषद में विश्वास का अभाव प्रकट करने का प्रस्ताव निम्नलिखित निबंधनों के अधीन रहते हुए किया जा सकेगा, अर्थात:-

(क) प्रस्ताव करने की अनुमति अध्यक्ष द्वारा बुलाए जाने पर सदस्य को मांगनी होगी;

(ख) अनुमति मांगने वाले सदस्य को उस दिन (10:00 बजे तक) महासचिव के पास उस प्रस्ताव की, जिसे वह सदस्य प्रस्तुत करना चाहे, लिखित सूचना देनी होगी:  (परंतु 10:00 बजे के बाद प्राप्त सूचनाओं को सभा की अगले दिन होने वाली बैठक के 10:00 बजे तक प्राप्त हुआ माना जाएगा।)

(2) यदि अध्यक्ष की यह राय हो कि प्रस्ताव नियमानुसार है तो अध्यक्ष द्वारा सभा में प्रस्ताव पढ़कर सुनाया जाएगा और उन सदस्यों से, जो अनुमति दिए जाने के पक्ष में हों, अपने स्थानों में खड़े होने के लिए प्रार्थना की जाएगी और यदि तदनुसार कम से कम 50 सदस्य खड़े हो जाएं तो अध्यक्ष द्वारा यह सूचित किया जाएगा कि अनुमति दी जाती है और प्रस्ताव किसी ऐसे दिन लाया जाएगा जो अनुमति मांगने के दिन से 10 दिन से अधिक बाद का न हो। यदि 50 से कम सदस्य खड़े हों तो अध्यक्ष द्वारा सदस्य को यह सूचित किया जाएगा कि उस सदस्य को सभा की अनुमति नहीं है।

(3) यदि उपनियम (2) के अंतर्गत अनुमति दे दी जाए तो अध्यक्ष द्वारा सभा के कार्य की स्थिति पर विचार करने के बाद, प्रस्ताव पर चर्चा के लिए कोई 1 दिन या अधिक दिन या किसी दिन का भाग नियत किया जा सकेगा।

(4) अध्यक्ष द्वारा यथास्थिति, नियत दिन या नियत दिनों में से अंतिम दिन निश्चित समय पर, प्रस्ताव सभा का विनिश्चय निर्धारित करने के लिए प्रत्येक आवश्यक प्रश्न तुरंत रखा जाएगा।

(5) अध्यक्ष द्वारा यदि ठीक समझा जाए, भाषणों के लिए समय-सीमा विहित की जा सकेगी।

पढ़ें:- भारतीय संविधान की प्रस्तावना

अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के लिए विपक्षी पार्टी या अविश्वास प्रस्ताव मांग करने वाले सांसद को लिखित सूचना लोकसभा स्पीकर को देनी होती है। तत्पश्चात स्पीकर विपक्षी पार्टी के किसी भी सदस्य (सांसद) से इसे पेश करने को कहते हैं अर्थात स्पीकर द्वारा मंजूरी मिल जाता है।

मंजूरी मिलने के बाद अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) जो भी विपक्षी पार्टी के सदस्य को पेश करना होता है उसे इसके लिए स्पीकर से अनुमति लेनी होती है।

प्रस्ताव को सदन में रखने के लिए कम से कम प्रस्ताव के पक्ष में 50 सदस्यों का होना आवश्यक है नहीं तो अध्यक्ष (स्पीकर) इस प्रस्ताव की अनुमति नहीं देंगे अथवा खारिज कर देंगे। इस दौरान इस प्रस्ताव के समर्थन वालों को अध्यक्ष, सदन में खड़े होने के लिए कहते हैं और ये खड़े होकर अपनी समर्थन दर्ज कराते हैं।

इसके बाद लोकसभा स्पीकर (अध्यक्ष) इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं। प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा होना जरूरी है। तारीख निर्धारित होने के बाद चर्चा कितने समय (दिन) के लिए होगी (एक या अधिक दिन या किसी दिन का एक भाग) ये तय करना भी स्पीकर के हाथ में ही होता है। अर्थात चर्चा की समय-सीमा तय करने का अधिकार अध्यक्ष को ही है। साथ ही कौन भाषण देगा, कितने समय के लिए देगा ये सभी विषय पर अध्यक्ष को समय-सीमा तय करने का अधिकार है।

चर्चा के आखिरी दिन अध्यक्ष, मतदान के द्वारा निर्णय की घोषणा करता है। इस समय यह होता है कि पूरे सदन में अध्यक्ष मतदान कराता है।

मतदान की प्रक्रिया शुरू होने से पूर्व स्पीकर 5 मिनट तक घंटी बजाएगा ताकि संसद के अंदर सभी सांसद हाजिर हो सके। इसके बाद दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं कि अब कोई भी बाहर न जा सके और न ही अंदर आ सके। इसके बाद अध्यक्ष (स्पीकर) इस बात की घोषणा करता है कि कितनों ने अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के पक्ष में हाँ किये हैं और कितने किए हैं।

निर्णय लेने का तरीका यह है कि सदन में मौजूद सदस्यों में आधे से एक ज्यादा अर्थात उपस्थित सदस्यों का बहुमत निकालकर यदि सरकार के खिलाफ मतदान किए जाते हैं तो सरकार गिर जाती है।

दो अविश्वास प्रस्ताव के बीच का अंतर 6 माह का होता है।

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पास होने पर क्या होता है?

अगर अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पास हो जाए तो संपूर्ण मंत्री परिषद एवं प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है और सदन भंग हो जाती है अर्थात सरकार गिर जाती है।

सरकार के गिर जाने पर कोई अन्य विपक्षी दल (गठबंधन) सरकार बनाने का दावा कर सकता है या राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी दल को सरकार बनाने के लिए बुला सकता है। और यदि 5 साल पूरे होने के लिए 6 महीने बाकी हो तो चुनाव आयोग फिर से चुनाव के लिए कह सकता है।

भारत सरकार अधिनियम 1935

अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) का महत्व

देखा जाए तो हमारे भारत देश की संसदीय परंपरा में अविश्वास प्रस्ताव का महत्वपूर्ण भूमिका है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो सरकार से विपक्ष का एक तरह का विरोध का प्रतीकात्मक जरिया है जिससे पूर्ण बहुमत सरकार से अहम मुद्दों पर विपक्ष जब भी सहमत न हो तो सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाकर सरकार को अहम मुद्दों पर चर्चा करने के लिए बाध्य करती है।

लेकिन यदि सरकार गठबंधन की हो तो अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion)का महत्व और भी बढ़ जाती है और विपक्ष को यह लगता है कि उसके पास संख्या बल है और वह सरकार को मुश्किल में डाल सकती है तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार गिराने का प्रयास करती है।

इस परिस्थिति में होता यह है कि अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के समर्थन में वे सभी सदस्य होंगे जिन्हें सरकार में विश्वास न हो और अपनी बहुमत यानी चर्चा के अंतिम दिन के मतदान में बहुमत से मतदान करके सरकार को गिरा देंगे।

विश्वास प्रस्ताव (Confidence In Motion)

यह प्रस्ताव भी अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) के तरह ही है लेकिन यह सत्ता में मौजूद सरकार के द्वारा लायी जाती है। इसका मुख्य कारण होता है सरकार द्वारा अपनी बहुमत को जांचना। यह भी संसदीय प्रक्रिया है एवं इसका नियम 198 के तहत ही होता है। चूँकि यह सरकार के ओर से लाई जाती है इसलिए 6 महीने के बाद दोबारा लाने का कोई औचित्य नहीं है अर्थात अविश्वास प्रस्ताव की तरह दोबारा नहीं लाया जा सकता।

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निष्कर्ष

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि हमारा भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के कारण लोकसभा में सरकार के खिलाफ रोष होने पर विरोध हेतु बहुत ही सकारात्मक तरीका का प्रावधान किया गया है। जिससे पक्ष और विपक्ष किसी अहम मुद्दे में चर्चा करके एक निश्चित दिशा में निर्णय ले सकते हैं या समस्या का हल निकाल सकते हैं।

वास्तव में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाकर विपक्ष सरकार से विरोध जताती है और यह विरोध प्रतीकात्मक होता है। साथ में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पारित हो जाने पर बहुमत की सरकार गिरती नहीं है और विपक्ष यह बात जानते हुए भी कि सरकार गिर नहीं सकती फिर अविश्वास प्रस्ताव किसी विशेष मुद्दे को लेकर लाती है इससे पता चलता है कि विपक्ष अहम मुद्दे पर सकारात्मक भूमिका निभा रही है।

जबकि गठबंधन की सरकार में सरकार गिरने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है अतः अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) का अधिक महत्व इसी स्थिति पर बढ़ जाती है क्योंकि गठबंधन के सरकार से यदि किसी पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया तो सरकार गिर जाती है। क्योंकि भारतीय संसदीय इतिहास में कई बार गठबंधन की सरकार को गिरते हुए देखा गया है।

अतः अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) हमारे देश में लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली का अहम पहलू है।


  • हमारे देश के संविधान निर्माण में भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) का महत्वपूर्ण योगदान है। विस्तृत जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें।
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