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केशवानंद भारती केस 1973 | kesavananda bharati case 1973 in hindi

केशवानंद भारती केस भारतीय इतिहास का बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है यह घटना केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य भूमि सुधार कानून से संबंधित कानूनी लड़ाई है

इसके फैसले के द्वारा भारतीय संविधान को एक नई मजबूती मिली और भारतीय संविधान को लेकर जितने भी मतभेद थे उन्हें दूर कर लिया गया

केशवानंद भारती कौन थे?

केशवानंद भारती 9वीं सदी के महान संत जो अद्वैत वेदांत दर्शन के जनक आदित्य गुरु शंकराचार्य के शिष्य थे केशवानंद भारती ने 19 साल की आयु में सन्यास लिया था एवं कुछ ही दिन बाद अपने गुरु के निधनोपरांत वे एडनीर मठ के मुखिया बन गए। एडनीर मठ केरल के कासरगोड़ जिले में है सम्मान से उन्हें श्रीमत जगदगुरु श्री श्री शंकराचार्य तोतकाचार्य श्री केशवानंद भारती श्रीपदंगलावारु के नाम से बुलाया जाता था।

केशवानंद भारती केस 1973

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य केस (1973) पृष्ठभूमि

केरल के कासरगोड और उसके आसपास के इलाकों में एडनीर मठ के कई स्कूल, कॉलेज थे जो कि नाट्या और नृत्य परंपरा को एवं आध्यात्म को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था साथ ही साथ कई तरह के व्यवसायों का भी संचालन किया जाता था

अपने गुरु के निधन के बाद केशवानंद के उत्तराधिकारी बनने के बाद उसके सामने अपने मठ के संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए एक समस्या सामने आई क्योंकि तात्कालीन केरल राज्य सरकार ने दो भूमि सुधार कानून बनाए जिसमें धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन पर नियंत्रण करना था

इस कानून के तहत मठ के हजारों एकड़ जमीन को केरल सरकार के द्वारा अधिगृहित कर लिया गया साथ ही साथ जब उनकी याचिका लंबित थी उसी बीच केंद्र सरकार ने 24 वां और 25 वां संविधान संशोधन पारित करके इन दोनों कानून को संविधान के 9वीं अनुसूची में डाल दिया ताकि न्यायपालिका उस पर कोई समीक्षा ना कर सके

केरल उच्च न्यायालय में केस

केशवानंद भारती क्योंकि वह एडनीर मठ के उत्तराधिकारी थे उन्होंने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए यह मांग की थी कि उन्हें अपनी धार्मिक संपदा का प्रबंधन करने का मूल अधिकार दिया जाए एवं अनुच्छेद 31 में संपत्ति के मूल अधिकार पर पाबंदी लगाने वाले केंद्र सरकार के 24वें 25वें और 29वें संविधान संशोधन को चुनौती दी साथ ही भूमि सुधार कानूनों को भी चुनौती दी हालांकि केरल हाईकोर्ट में उन्हें सफलता नहीं मिली अन्ततः उन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा।

केशवानंद भारती ने इस मामले को लेकर 1970 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि इस मामले में संवैधानिक व्याख्या की आवश्यकता है अतः गोलकनाथ केस (11 सदस्यों वाली बेंच) से भी बड़ी 13 जजों की बेंच ने 68 दिनों तक सुनवाई के बाद 703 पन्नों में फैसला 22 मार्च 1973 को सुनाया। मुख्य न्यायाधीश सीकरी न्यायाधीश H. R. खन्ना की अध्यक्षता वाली 13 जजों की बेंच ने 7:6 से यह फैसला दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद के पास अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन का अधिकार तो है लेकिन संविधान की मूल ढांचा ( तत्व ) से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के हर एक भाग को बदला तो जा सकता है लेकिन उसकी न्यायिक समीक्षा होगी जिससे यह तय हो सके कि संविधान का आधार और ढांचा में कोई परिवर्तन नहीं हुई है

केशवानंद भारती मामले में फैसला जब आया तो लगा कि केशवानंद भारती हार गए और तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार जीत गई लेकिन धीरे-धीरे जब इस मामले की व्याख्या होने लगी तो कहीं ना कहीं केशवानंद भारती जीत गए क्योंकि तत्कालीन केंद्र सरकार इस मुकदमे में तानाशाही रुख अपनाने लगी थी

इस मामले में केशवानंद की व्यक्तिगत जीत नहीं हुई थी लेकिन इसी के बदौलत भारतीय लोकतंत्र में न्यायिक सक्रियता का एक नया अध्याय शुरू हुआ एवं भारतीय लोकतंत्र में तानाशाही की सभी दबाओं को सहन करने तथा लोकतंत्र को जीवन्त बनाए रखने की एक अभूतपूर्व दिशा मिली।

यह एक ऐसा मुकदमा था जिसने संविधान के मूल ढांचा का सिद्धांत की पुष्टि किया यहां कहा गया कि अनुच्छेद 368 के तहत पूरे संविधान को बदला तो जा सकता है लेकिन मूल ढांचा को नहीं बदल सकते। हालांकि संविधान का मूल ढांचा क्या है यह विस्तृत रूप से नहीं बताया गया लेकिन यह व्याख्या करने का अधिकार कि “संविधान का मूल ढांचा क्या है” यह सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास है।

24 अप्रैल 1973 को मुख्य न्यायाधीश सीकरी और 12 अन्य न्यायधीश ने न्यायिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण फैसला दिया एवं कुछ प्रमुख मूलभूत तत्वों को जिसमें अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं किया जा सकता है:-

1. संविधान की सर्वोच्चता

2. विधायिका,कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच शक्ति का बंटवारा

3. गणराज्यात्मक एवं लोकतांत्रिक स्वरूप वाली सरकार

4. संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र 5. राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता

6. संसदीय प्रणाली

7. व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा

8. मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों के बीच सौहार्द और सामंजस्य

9. न्याय तक प्रभावकारी पहुँच

10. कल्याणकारी राज्य की स्थापना एवं 9वीं अनुसूची का न्यायिक अवलोकन

इस फैसले से 1951-1973 तक चली आ रही न्यायपालिका तथा संसद के बीच का आरोप-प्रत्यारोप समाप्त हो गया साथ ही साथ केशवानंद भारती को ‘संविधान के रक्षक’ भी कहा जाने लगा।

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