History

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद का भारत | India after the Gupta Empire

गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) के पतन के बाद प्राचीन भारत के अंत में पूरे भारत में देखा जाए तो संपूर्ण भारत कई क्षेत्रीय साम्राज्यों एवं राज्यों में बटे हुए थे। एवं ये सत्ता (उत्तराधिकारी) प्राप्त करने के लिए भ्राता युद्ध में व्यस्त रहते थे। सरदारों में भी काफी प्रतिद्वंद देखने को मिलते है विवादों का समाधान अब सिर्फ और सिर्फ युद्ध से होने लगी। कोई एक राजा यदि महत्वाकांक्षी और ताकतवार हो तो अपने पड़ोसियों की प्रभुता अस्वीकार कर कमजोर तथा छोटे राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लेता था।

गुप्त साम्राज्य Gupta Empire

अतः कमजोर राज्य अपने शक्तिशाली पड़ोसियों के साम्राज्यिक दावों के आगे हमेशा घुटने टेक देते थे। देश में ऐसी बड़ी और शक्तिशाली सैन्य व्यवस्था नहीं थी जो इन सभी राजाओं पर नियंत्रण रख सके एवं विदेशी आक्रमणों से रक्षा कर सके। ये आपस में ही लड़ते रहते थे। एक दूसरे साम्राज्य से तालमेल स्थापित नहीं कर सकते थे। आपसी तालमेल एवं सामंजस्य न होने के कारण ही बाहरियों (अरब) को आक्रमण का मौका मिला।

गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) के पतन के बाद भारत की स्थिति

अतः हम यहां पर तत्कालीन राजाओं के बारे में विस्तार से जानेंगे कि प्राचीन काल के अंतिम काल में पूरे भारत में कौन-कौन से साम्राज्य एवं क्षेत्रीय साम्राज्य थे एवं उनकी स्थिति कैसी थी:-

उत्तरी तथा मध्य भारत

उत्तरी तथा मध्य भारत की स्थिति गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) के पतन के बाद प्राचीन काल के अंतिम समय में उत्तरी तथा मध्य भारत का अंतिम शासक हर्षवर्धन थे। इनका काल 590 से 647 ईसवी तक मानी जाती है। कन्नौज जो कन्याकुब्ज भी कहलाता है इसकी राजधानी थी। दक्षिण में इनका प्रतिद्वंदी पुलकेशिन द्वितीय (610-42) था। जो चालूक्य शासक था। इनका साम्राज्य नर्मदा नदी के दक्षिण में था। ये दोनों शक्तिशाली होने के बाद भी पूरे भारत में शासन न कर सके क्योंकि इनके आसपास क्षेत्रीय शासक थे। इनमें से कुछ ही इनके अधीनता को स्वीकार करते थे।

हर्षवर्धन एवं पुलकेशिन द्वितीय के साम्राज्य विघटन के बाद पश्चिम भारतीय साम्राज्यवाद का काल समाप्त हुआ एवं सामन्तों तथा अन्य राजाओं के बीच क्षेत्रीय अधिकार हेतु संघर्ष जारी हो गया एवं समस्त भारत में अव्यवस्था फैल गई। हर्षवर्धन के बाद यशोवर्मन (700-770) ने उत्तरी भारत को एकछत्र में लाने की कोशिश की थी। इस समय सिंध का शासक दाहिर इसका समकालीन था। यहां यह जानना जरूरी है कि दाहिर के समय ही भारत में अरबों का प्रथम आक्रमण हुआ था एवं सिंध पर विजय हासिल किया था।

अरबों द्वारा सिंध विजय कर उनके साम्राज्य विस्तार को कन्नौज के शासक यशोवर्मन एवं कश्मीर के राजा ललितादित्य ने ही रोका था कहा जाता है कि बाद में दोनों एक दूसरे से लड़ाई कर यशोवर्मन की मृत्यु हो गई। इसके बाद ही त्रिपक्षीय युद्ध की शुरुआत होती है जो इतिहास में प्रसिद्ध है। त्रिपक्षीय संघर्ष में राष्ट्रकूट (दक्कन), गुर्जर-प्रतिहार (मालवा) एवं पाल (बंगाल) तीन प्रतिद्वंदी थे। इसमें गुर्जर-प्रतिहार वंश के नागभट्ट विजयी होते हैं (725-40)। कुछ दिनों तक राज्य करने के बाद इस वंश के अंतिम शासक राज्यपाल को महमूद गजनी ने 1018-19 ई• में हरा दिया।

महमूद गजनी के आक्रमण के समय भारत में अनेक क्षेत्रीय साम्राज्य एवं राज्य थे जो निम्नलिखित थे:-

  1.  पश्चिमोत्तर भारत
  2.  पूर्वी भारत
  3.  मध्य तथा पश्चिमी भारत
  4.  दक्षिणी भारत

पश्चिमोत्तर भारत की स्थिति

इसके अंतर्गत 4 बड़े क्षेत्र आते थे जिसमें अलग-अलग शासकों का अधिकार था

  1.  काबुल (अफगानिस्तान) तथा पंजाब
  2.  सिंधु तथा मुल्तान
  3.  कश्मीर
  4.  थानेश्वर

काबुल (अफगानिस्तान) तथा पंजाब

काबुल (वर्तमान अफगानिस्तान) पहले प्राचीन भारत का हिस्सा हुआ करता था। आठवीं सदी में दो क्षेत्रिय नामों काबुल (काबुलिस्तान) एवं जाबुल (जबुलिस्तान) के नाम से जाने जाते थे। काबुल उत्तरी भाग था जिसमें बौद्ध वंश का शासन था यहां बौद्ध वंश के लल्लिया ने बौद्ध वंश के अंतिम शासक को हराकर 865 ईस्वी में हिंदू शाही वंश की स्थापना की। जाबुल में संभवतः राजपूतों का शासन था।

अरब नेता याकूब बिन लायस ने अफगानिस्तान में आक्रमण कर सफ्फाविद वंश की स्थापना की और 867-70 ईस्वी में जबुलिस्तान पर विजय हासिल कर ली। 867-76 ईसवी में उसने लल्लिया से काबुल का दुर्ग छीन लिया। फिर भी यहाँ हिंदू राज शाही वंश स्थापित रही।

अरब में कमजोर खिलाफत का फायदा उठाकर 971 में स्माइल ने बुखारा में स्वतंत्र समानी वंश की नींव डाली एवं इनका गुलाम अलप्तगीन ने इस्लामाइल के कमजोर उत्तराधिकारी अबुवक्र लाविक को हराकर गद्दी प्राप्त कर लिया। बाद में इनके उत्तराधिकारी सुबुक्तगीन ने (985-86) हिंदू राज शाही वंश के जयपाल को पराजित किया।

हिंदू राज शाही साम्राज्य पंजाब में चिनाब से लेकर हिंदूकुश तक फैली थी। इसके शासक लंबे समय तक पश्चिमी छोर से अरब तथा तुर्की आक्रमणों के विरुद्ध दुर्ग की भूमिका निभा रहे थे।

इन्होंने (सुबुक्तगीन) ही गजनी वंश की नींव रखी। इनके ससुर अलप्तगीन थे इनके मृत्यु हो जाने पर गजना का राज्य इसे मिला था। 997 में उसकी मृत्यु (सुबुक्तगीन) होने पर उसके दो पुत्रों इस्माइल और महमूद में उत्तराधिकारी का युद्ध हुआ। महमूद विजयी होकर 998 में शासक बना। इतिहासकारों ने महमूद गजनी को विश्वा का प्रथम सुल्तान माना है।

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सिंधु तथा मुल्तान

यह (मुल्तान) दक्षिण में सिंध तथा मकरान सहित निचली सिंधु घाटी तक एक स्वतंत्र साम्राज्य था। यहां हर्षवर्धन के समकालीन एक शुद्र वंश का शासन था। शुद्र वंश के शासक सहिरास की फारसी आक्रमणकारियों द्वारा हत्या हो जाने पर उसके पुत्र राय साहसी द्वितीय का ब्राह्मण मंत्री चाच ने अपने मालिक के मृत्यु के बाद गद्दी संभाली। 708 ईस्वी में चाच का पुत्र दाहिर गद्दी में बैठा एवं 711-12 में अरब आक्रमण का सामना किया तथा पूरी साम्राज्य खत्म हो गई।

कश्मीर

यह हिमालय घाटी मौर्य तथा कुषाणों के साम्राज्य का भाग था। यहां हर्षवर्धन के समय करकोटा वंश (627-655 ईस्वी) का शासन था। इसकी स्थापना कश्मीरी ब्राह्मण दुर्लभ वर्ध्दन के द्वारा की गई थी। 14वीं शताब्दी तक ब्राह्मणों द्वारा शासन के पश्चात यहां रानी दिद्दा का शासन के समय महमूद ने आक्रमण किया। रानी दिद्दा की मृत्यु के बाद लोहरा वंश का स्थापना संग्रामराजा ने किया था। ये बहुत शक्तिशाली थे एवं मुस्लिम आक्रमणकारियों को यहां पांव नहीं जमाने दिया।

थानेश्वर

यह हर्षवर्धन का पैतृक राज्य था हर्षवर्धन के मृत्यु के बाद की इतिहास नहीं मिलती है 1011 में गजनी ने इसे नष्ट कर दिया

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पूर्वी भारत

इस क्षेत्र के अंतर्गत आते थे:- बंगाल, असम और नेपाल

बंगाल

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद यहां दो क्षेत्रिय वंशों ने शासन किया पश्चिमोत्तर में गौड़ तथा मध्य एवं पूर्वी में वेंगी। कुछ समय पश्चात 9वीं शताब्दी में बंगाल में पाल वंश की नींव गोपाल ने रखी। इन्होंने अपना साम्राज्य काफी विस्तार कर लिया था लगभग पूरे बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा तक विस्तृत थी।

अंततः कमजोर उत्तराधिकारी इनका पतन का कारण बना। जब उत्तरी भारत में महमूद गजनवी का आक्रमण हो रहा था तब यहां दक्षिण के चोल शासक राजेंद्र चोल ने आक्रमण किया था। परंतु यह क्षेत्र महमूद के आक्रमण से बचा रहा क्योंकि यह उत्तर से काफी दूर था।

असम

यह प्राचीन काल में कामरूप से जानी जाती थी यह असम की ब्रह्मपुत्र नदी घाटी है। यहां ब्राह्मण परिवार द्वारा शासन किया जाता रहा था। इनके शासक गुप्तों के सामंत हुआ करते थे कामरूप के राजा हर्षवर्धन का प्रभुत्व स्वीकारते थे। एवं हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद असम (कामरूप) सरदारों के अधीन स्वतंत्र साम्राज्य बन गया।

11वीं शदी में ब्रह्मपाल ने शासन किया था तथा इनके उत्तराधिकारीयों ने हमेशा से अपनी स्वतंत्रता को अपने प्रतिद्वंद्वियों से बचाए रखा।

नेपाल

नेपाल का हिस्सा भी गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) का ही हिस्सा थी। गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) के पतन के बाद यहां स्थानीय शासकों ने सत्ता हथिया ली थी।  इसका शासन का कार्यभार एक राजपूत सरदार रघुदेव के हाथों में था। इन्होंने यहां 879 ई में ठाकुरी वंश की नींव रखी तथा इसी से “नेपाली संवंत” की शुरुआत होती है। इनके उत्तराधिकारी गुनाकामदेव (949-94) थे इन्होंने कांतिपुर (वर्तमान काठमांडू) की स्थापना की। इसके बाद भोजदेव (994-1023) शासक हुए एवं यह राज्य मैदानी भागों से दूर होने के कारण बाहरी आक्रमणों से अछूता रहा।

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मध्य तथा पश्चिमी भारत

हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत के मध्य तथा पश्चिमी क्षेत्र में कई छोटे-छोटे राजपूत वंशों का उदय हुआ और इन्होंने लगभग 7वीं से 12 वीं सदी तक शासन किया इस काम को “राजपूत युग” के नाम से भी जाना जाता है। इस समय एक भी ऐसा शासक नहीं था जो कि भारत में एकछत्र साम्राज्य की स्थापना कर सके।

अतः भारत कई छोटे-बड़े राज्यों में विभक्त था। यह राज्य लगभग गुजरात, राजस्थान कुछ महाराष्ट्र के हिस्से एवं दिल्ली वाले क्षेत्र में फैले हुए थे। राजपूत जो थे इनके चार कुल- परमार, चौहान, चालुक्य और गुर्जर प्रतिहार थे।

इनके बीच आपस में ही संघर्ष होते रहते थे राजपूतों के उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग मत देखने को मिलते हैं। कुछ सिद्धांत इतिहासकारों द्वारा प्रतिपादित किए गए हैं:-

  1.  विदेशी इतिहासकारों द्वारा (कर्नल जेम्स टॉड, स्मिथ, कनिंघम) इन्हें विदेशी माना गया है। (शिथियन जातियां, शक, कुषाण जो विदेशी आक्रमणकारी थे) ये आक्रमणकारी के रूप में भारत आए एवं बाद में यहीं बस गए और कालांतर में शासक बन गए।
  2.  भारतीय इतिहासकारों का मत है कि ये प्राचीन काल के आर्य या क्षत्रिय थे वहीं आगे चलकर के राजपूत के रूप में उभर कर सामने आते हैं।
  3.  तीसरा एवं सबसे अलग सिद्धांत जो है वह है “अग्निकुल से उत्पत्ति का सिद्धांत”। जब विष्णु के अवतार परशुराम ने समस्त क्षत्रियों को नष्ट कर दिया जिससे समाज में अव्यवस्था फैल गई। इससे बचने के लिए ब्राह्मणों ने आबू पर्वत पर हवन किया इस अग्निकुंड से चार नायक उत्पन्न हुए तथा उन्होंने परमार, प्रतिहार, चौहान और सोलंकी (चालुक्य) वंश की स्थापना की।

प्रतिहार शुरू में राजपूताना तथा मालवा में अपनी स्वतंत्र राज्य स्थापित किए थे बाद में कन्नौज में कब्जा कर लिया था।

परमार जो थे ये प्रतिहारों के सामंत थे। इन्होंने उज्जैन में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। इस वंश के राजा भोज अपने सैन्य पराक्रम, विद्वता तथा कला साहित्य के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध था। मुस्लिम इतिहासकार इसे परमार-देव के रूप में जानते थे एवं ये इतिहासकार भी इस राजा को महान बताया है। इन्हीं के शासनकाल में महमूद ने सोमनाथ पर आक्रमण (1025-26) ईस्वी में किया था इन्होंने डटकर इनका सामना करने के लिए आए, इस बात का पता लगते ही  वह गजनी लौट गया।

चालुक्य राजपूतों ने दक्षिण भारत को दो वंश दिए- (1) वातापी के चालुक्य (550-753) (2) कल्याणी के चालुक्य (973)। ये दोनों दक्षिण भारत में शासन कर रहे थे आगे हम दक्षिण भारत की स्थिति के बारे में पढ़ेंगे तो इसके बारे में विस्तार से जानेंगे।

उत्तर भारत में गुजरात के अहिन्लवाड़ में एक और चालुक्य वंश (सोलंकी वंश) की स्थापना मूलराज प्रथम ने 992-995 में की थीचालुक्य राजा दुर्लभ (1000-11) के शासनकाल में महमूद गजनी समकालीन था एवं दुर्लभ के मृत्यु के बाद उसका भतीजा भीमदेव (1022-64) के समय महमूद गजनी ने सोमनाथ (1024) पर आक्रमण किया और राजा भीमदेव अपनी राजधानी छोड़कर कच्छ के रण में एक दुर्ग में शरण ली। आगे चलकर इन्हीं के उत्तराधिकारी मूलराज द्वितीय के समय (1176-1178) मोहम्मद गोरी ने आक्रमण किया था जिसमें मूलराज द्वितीय विजयी रहे थे।

चौहानों ने आठवीं शताब्दी में आधुनिक अजमेर के पास साम्राज्य स्थापित की थी ये पहले सामंत हुआ करते थे। चौहान सामन्त याहमान ने सिंध के अरब आक्रमणियों को टक्कर देकर प्रसिद्ध हुआ था। इस समय पश्चिमोत्तर भारत में हिंदूशाहियों के समान ही आधुनिक अजमेर (सांभर) के चौहानों ने केंद्र में दुर्ग बनाकर वीरता से मुस्लिम आक्रमणकारियों का विरोध किया था।

11 वीं सदी में यहां गोविंद राजा द्वितीय का शासन था इसके उत्तराधिकारी वाकपति द्वितीय (1003-33) महमूद का समकालीन था। संभवत इनकी संघर्ष महमूद से नहीं हुई थी।

कन्नौज में गुर्जर प्रतिहारों का एक सामंत जो आधुनिक बुंदेलखंड जिसे जयजाक भुक्ति कहा जाता था चंदेलों का राज्य था। चंदेल 10 वीं शताब्दी में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे चंदेलों में एक शासक यशोवर्मन हुआ इसके पश्चात धंग ने सत्ता संभाली। इन्होंने सुबुक्तगीन (1000-01 ई) के विरुद्ध जयपाल की सहायता के लिए सेना भेजी थी।

राजा धंग ने ही खजुराहो के दो शिव मंदिरों के निर्माण के लिए अत्यधिक धन खर्च किया था। इनका पुत्र गंडराज ने (1018-22) तथा इसके पुत्र विद्याधर में महमूद गजनी के विरूद्ध संघर्ष किया था।

कालिंजर के चंदेलों का एक सामंत ग्वालियर में अर्जुन था इन्होंने 1022-23 में महमूद के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी

चेदी के कल्चुरी शासकों की साम्राज्य काफी मजबूत होने के कारण यहां तुर्की आक्रमणकारी नहीं पहुंच सके।

गुहिला राजपूत सरदारों का एक छोटा साम्राज्य मेवाड़ में था। यह साम्राज्य सरदार बप्पा रावल द्वारा स्थापित किया गया था। यह हमेशा ही अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की। मेवाड़ के शासकों ने मध्यकालीन भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता तथा आत्म सम्मान की लड़ाई लड़ी।

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दक्षिण भारत

इस समय दक्षिण भारत में पांच प्रमुख वंश शासन कर रहे थे:- चालुक्य, राष्ट्रकूट चोल, चेर और पांड्या। आइए हम इन्हें विस्तार से जानेंगे:-

चालुक्य

पूर्व में हमने पढ़ा की चालुक्य राजपूतों ने दक्षिण भारत को दो वंश दिए- (1) वातापी के चालुक्य (550-753) और (2) कल्याणी के चालुक्य (973)।

वातापी के चालुक्य

वातापी के चालुक्य के संस्थापक( छठवीं शताब्दी) जय सिंह थेपुलकेशिन प्रथम चालुक्य वंश का प्रथम पराक्रमी राजा था। इन्होंने ही वातापी को राजधानी बनाया था। पुलकेशिन प्रथम के बाद उसके पुत्र कीर्तिवर्मन ने सत्ता संभाली। यह सभी उत्तराधिकारी पराक्रमी थे एवं साम्राज्य का विस्तार किया। पुलकेशिन द्वितीय उत्तर भारत के हर्षवर्धन का समकालीन था। ये भी पराक्रमी थे। इन्हें कांची के पल्लव शासक ने पराजित कर मार डाला था। इसके बाद भी पुलकेशिन के उत्तराधिकारी लंबे समय तक शासन किए अंततः राष्ट्रकूटों द्वारा मिटा डाले गए।

राष्ट्रकूट भी चालुक्यों के सामंत थे। इनके सरदार दंतिवर्मन ने चालुक्य शासक कीर्तिवर्मन को 753 ईसवी में हराया था तथा अपनी सीमा का विस्तार किया था। इन राष्ट्रकूटों में भी कई दक्ष एवं पराक्रमी शासक हुए। ये उत्तरी भारत से बहुत दूर होने के कारण इनका सामना अरबों से नहीं हुआ।

कल्याणी के चालुक्य

 इन्हीं के अंतिम शासक कक्का द्वितीय को कल्याणी के चालुक्य के शासक तैलापा ने 973 ईसवी में पदच्युत कर कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना की। इन्हें उतरी चालुक्यों के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने अपनी राजधानी कल्याणी को बनाया जो आधुनिक आंध्रप्रदेश है। तैलापा ने गुजरात के चालुक्यों, मालवा के परमार तथा चेदी के कलचुरियो एवं दक्षिण के चोलों के साथ संघर्ष किया ये इनके सीमावर्ती राज्य थे। तथा इन्होंने 1017 तक शासन किया। ये भी उत्तरी भारत से बहुत दूर होने के कारण इनका सामना अरबों से नहीं हुआ।

चोलों का साम्राज्य

दक्षिण में चालुक्यों के साथ-साथ चोलों का भी साम्राज्य था। इनका उदय नवी शताब्दी के अंत में हुआ था। चोल सुदूर दक्षिण के तीन राज्य- चोल, चेर और पांड्या से संबंधित थे। इनकी अलग पहचान उत्तर मौर्य के समय से ही थी। राजराजा प्रथम (985-1012) के समय में विस्तृत चोल साम्राज्य बनाई गई। ये महमूद के समकालीन थे। राजेंद्र चोल (1012- 42) इन्होंने उत्तर भारत के बड़े-बड़े शासकों को पराजित किया एवं दक्षिण में साम्राज्य विस्तार के लिए चालुक्यों से संघर्ष किया।

इसके बाद चोलों में कई  पराक्रम एवं वीर राजा हुए। दक्षिण भारत में सबसे लंबा इनका शासनकाल रहा एवं चोलो में शासक भी बहुत हुए। अंत में ये पांड्यों यह सामंत बनकर शासन किया एवं इसके बाद चोल शासन लगभग 1270 ईस्वी में खत्म हो गया।

चेर और पाण्डय

चेर वंश का संस्थापक उदियन जेरल था इनका साम्राज्य पाण्डय राज्य के पश्चिम में बसा था इन्होंने केरल तथा तमिल के कुछ इलाकों में शासन किया था। इस वंश में भी कई बड़े शासक हुए।

पाण्डय मे पहला राजा का नाम नेडियोन मिलता है। इनकी राजधानी मथुरा थी इस वंश में भी कई पराक्रमी शासक हुए। यह दोनों राज्य भी सुदूर दक्षिण में होने के कारण अरब आक्रमणों से दूर रहे।

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निष्कर्ष

उपरोक्त वर्णन से हमें पता चलता है कि इस समय अर्थात गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) के पतन के बाद धीरे धीरे कर केंद्रीय सत्ता का शून्य हो जाना ही मुस्लिम आक्रमणकारियों का आगमन का कारण बन गया। क्योंकि अब भारत कई छोटे-बड़े राज्य में बट गया। कहीं छोटे शासक हुए, तो कहीं सरदार, कहीं सामंत ही शासक बनकर छोटे-छोटे राज्य बना कर शासन करने लगे। कभी इनके बीच सीमा विस्तार को लेकर लड़ाई होती तो कभी उत्तराधिकारी का युद्ध होता।

अतः ये हमेशा आपस में ही लड़ते रहते थे। जिसका लाभ उठाकर मुस्लिम आक्रमणकारी भारत आए और इतिहास में एक नए युग की शुरुआत हुई। इस युग को इतिहासकारों द्वारा मध्यकालीन भारत नाम दिया गया।


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