गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) | golaknath vs state of punjab in hindi
दो भाई हेनरी गोलकनाथ और विलियम गोलकनाथ एक जमींदार परिवार से थे। इनके पास 500 एकड़ से अधिक जमीन थी। यह स्थान पंजाब के जालंधर में स्थित था। आजादी के बाद भारत के सभी राज्यों में भूमि सुधार कानून बन रहे थे। पंजाब में भी 1953 में एक एक्ट बनाई गई जिसका नाम था पंजाब सिक्योरिटी एंड लैंड टैन्योर एक्ट।
सरकार द्वारा इस एक्ट को बनाने का एक खास मकसद था कि किसी एक व्यक्ति के पास भूमि का केंद्रीकरण न हो अतः भूमि का विकेंद्रीकरण करना ही इस एक्ट का मकसद था।
इस एक्ट के तहत नियम यह बनाया गया कि एक व्यक्ति केवल 30 एकड़ ही जमीन रख सकता हैं। अगर किसी के पास 30 एकड़ से अधिक जमीन है तो बाकी के जमीन में से कुछ को लोगों पर बांट दिए जाएंगे एवं बाकी को सरकार द्वारा “अधिशेष” घोषित कर दिया जाएगा।
साथ ही सरकार ने यह प्रावधान भी किया कि इस एक्ट को अधिसूची 9 में रख दिया। ऐसा करने का मुख्य कारण यह था कि अब कोई भी इसकी न्यायिक समीक्षा नहीं कर पाएगा अर्थात न्यायालय में चुनौती नहीं दे सकेंगे।
अनुच्छेद 19, 31 एवं 30, व्यक्ति को संपत्ति रखने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है लेकिन जब भूमि सुधार अधिनियम को नौवीं अनुसूची में डाल दिया गया तो गोलकनाथ भाइयों ने मौलिक अधिकार का हनन मानते हुए अनुच्छेद 32 का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट चले गए।
गोलकनाथ भाइयों ने अनुच्छेद 13 के तहत दावा किया कि कोई सरकार विधि बनाती है और उससे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो वह असंवैधानिक होगी एवं इस अधिनियम से हम दोनों भाइयों का मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है।
अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन का प्रावधान है अर्थात संविधान संशोधन करने के बाद उसे विधि माना जाए या नहीं। यहां पर यह समझने की जरूरत है कि किसी भी एक्ट को अनुसूची 9 में डालने के लिए संविधान में संशोधन करने की जरूरत होती है और संविधान में संशोधन के बाद उसे विधि माना जाए या नहीं यह प्रश्न खड़ा हो रहा था।
1951 ईस्वी के शंकरी प्रसाद केस में 5 जजों का पैनल ने यह फैसला सुना चुका था कि संसद मौलिक अधिकारों में भी संशोधन कर सकती है।
यहां एक बार फिर हो सके सामने यह प्रश्न खड़ा हो गया कि क्या संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है या नहीं?
अब इस केस में सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों के पैनल ने काफी विचार-विमर्श कर 6:5 बहुमत से कहा कि जो आपने एक्ट को अनुसूची 9 में डालने के लिए संशोधन किया वह भी एक कानून है।
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अनुच्छेद 13 के तहत जिस विधि शब्द का इस्तेमाल किया गया है वह संविधान संशोधन पर भी लागू होती है अगर संविधान में संशोधन हो रहा है तो वह भी विधि कहलाएगा और कोई भी विधि किसी के मौलिक अधिकारों का हनन करती है तो वह असंवैधानिक होगा। एवं फैसला तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ 27 फरवरी 1967 को सुनाया। लेकिन पांच जजों ने माना की विधि और संशोधन दोनों अलग चीज है, जिस तरह से शंकरी प्रसाद केस में कहा था लेकिन बहुमत ने माना कि दोनों अर्थात विधि और संविधान संशोधन दोनों ही विधि कहलाएगा इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार कोई भी विधि बनाकर किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार का हनन नहीं कर सकती है।
इस फैसले में साफ शब्दों में कहा गया कि सरकार व्यक्ति के मौलिक अधिकार को न तो छीन सकती है और न ही कम कर सकती हैं।
गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1953) केस का संबंध जनहित याचिका से भी है