प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत | Plate tectonic theory upsc
यह सिद्धांत 1960-70 की दशकों का अनुसंधानों का प्रतिफल है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate tectonic theory) मूलतः महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का ही एक नवीन रूप है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate tectonic theory) महाद्वीपीय विस्थापन, पर्वतों का निर्माण, ज्वालामुखी क्रिया, भूकंप, महासागरीय नितल का विस्तार, रूपांतरण, द्वीपों का निर्माण आदि सभी क्रियाओं को स्पष्ट करता है।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate tectonic theory) एच हैस का सागर नितल प्रसारण सिद्धांत पर आधारित है।
विवर्तनिकी का शाब्दिक अर्थ
विवर्तनिकी शब्द अंग्रेजी के टेक्टोनिक शब्द का पर्याय है जो ग्रीक भाषा के tektonikos से लिया गया है जिसका अभिप्राय निर्माण अथवा संरचना से है। जो पृथ्वी के आंतरिक हलचल के परिणाम स्वरूप भूपटल पर विभिन्न प्रकार की संरचना का निर्माण कर सकता है।
प्लेट क्या है?
पृथ्वी का बाहरी भाग दृढ़ खंडों से बना है इन्हीं खंडों को प्लेट कहा जाता है। इन खंडों की मोटाई महासागरों में 5-100 किलोमीटर एवं महाद्वीपीय भागों में लगभग 200 किलोमीटर होती है।
ये सभी प्लेटें स्वतंत्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलता मंडल (Asthenosphere) पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भ्रमण करती है। इनके भ्रमण के लिए ऊर्जा पृथ्वी के आंतरिक भागों में उष्मा का विभिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं से प्राप्त होती है।
प्लेट शब्दावली का प्रयोग
- सर्वप्रथम कनाडा के भू-वैज्ञानिक जे टूजो विल्सन ने सन् 1955 में किया था।
प्लेटों का निर्धारण
- सन 1968 में डब्ल्यू जे माॅर्गन ने पहली बार प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate tectonic theory) को प्रस्तुत किया। इन्होंने संपूर्ण पृथ्वी को 20 प्लेटों में बांटा।
- 1968 में ही ली पिचोन इस सिद्धांत का सरलीकरण कर संपूर्ण पृथ्वी को छः बड़ी एवं कुछ छोटी फ्लेटों में बांटा।
क्र•स• | मुख्य प्लेट | क्र•स• | लघु प्लेट | ||
1 | अफ्रीकी प्लेट | 1 | अरेबियन प्लेट | 8 | फिलीपाइन प्लेट |
2 | उत्तरी अमेरिकी प्लेट | 2 | बिस्मार्क प्लेट | 9 | स्काॅटिका प्लेट |
3 | दक्षिणी अमेरिकी प्लेट | 3 | कैरेबियन प्लेट | 10 | इंडियन प्लेट |
4 | अंटार्कटिका प्लेट | 4 | कैरोलिना प्लेट | 11 | पर्सियन प्लेट |
5 | ऑस्ट्रेलियन प्लेट | 5 | कोकोस प्लेट | 12 | अनातोलियन प्लेट |
6 | यूरेशियन प्लेट | 6 | जुआन-डीर-प्यूका | 13 | चाइना प्लेट |
7 | प्रशांत प्लेट | 7 | नाजका प्लेट/पूर्वी प्रशांत प्लेट | 14 | फिजी प्लेट |
- 1984 में ए एन स्ट्राहलर तथा ए एच स्ट्राहलर ने विश्व का मानचित्र बनाकर 12 प्लेटें दिखाई।
कई भूवैज्ञानिक ने समस्त पृथ्वी को कई अलग-अलग प्लेटों में बांटा है परंतु प्रमुख प्लेटें निम्नलिखित हैं:-
1 | प्रशांत प्लेट | 7 | अंटार्कटिक प्लेट |
2 | उत्तर अमेरिकी प्लेट | 8 | नजका प्लेट |
3 | दक्षिण अमेरिकी प्लेट | 9 | कोकोस प्लेट |
4 | यूरेशियन प्लेट | 10 | कैरीबियन प्लेट |
5 | अफ्रीकन प्लेट | 11 | फिलीपींस प्लेट |
6 | भारतीय प्लेट | 12 | अरेबियन प्लेट |
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प्लेटो की सीमाएं
किसी प्लेट की बाहरी सीमा को प्लेट सीमांत कहते हैं और दो गतिशील प्लेटे के मध्य के क्षेत्र को प्लेट सीमा (plate boundry) कहते हैं। प्लेटों में तीन प्रकार की गति होती है जिसके परिणाम स्वरूप तीन प्रकार की प्लेट सीमाएं बनती हैं:-
- अपसारी सीमाएं (Divergent Boundaries)/ निर्माणात्मक प्लेट किनारा
- अभिसरण सीमाएं (Converging Boundaries)/ विनाशात्मक प्लेट किनारा
- रूपांतर सीमाएं (Transform Boundaries) संरक्षात्मक प्लेट किनारा
अपसारी सीमाएं (Divergent Boundaries)/ निर्माणात्मक प्लेट किनारा
जब दो प्लेट एक दूसरे के विपरीत दिशाओं में गतिशील होती है इसे अपसारी प्लेट कहते हैं। और इसकी सीमाओं को अपसारी सीमाएं (Divergent Boundaries) कहते हैं
अतः इनके मध्य रिक्त स्थान का विकास होता है जहां से तरल मैग्मा के निरंतर निकास होने से नई सतह का निर्माण होता है इसलिए इसे निर्माणात्मक प्लेट किनारा भी कहते हैं।
इसके दो प्रमुख परिणाम होते हैं:-
- नई सतह या भूपर्पटी का विकास
- महासागरीय नितल या कटक का विकास
अपसारी सीमा का उत्तम उदाहरण:- मध्य अटलांटिक कटक है जहां पर अमेरिकी प्लेटें, यूरेशियन तथा अफ्रीकी प्लेटों से अलग हो रही है।
अभिसरण सीमाएं (Converging Boundaries)/ विनाशात्मक प्लेट किनारा
जब दो प्लेट एक दूसरे की ओर गतिशील होकर आपस में टकराती है ऐसे प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Converging Plate) कहते हैं। और इन दोनों प्लेटों के बीच की सीमा को अभिसरण सीमाएं (Converging Boundaries) कहते हैं।
जब महासागरीय प्लेट किसी महाद्वीप प्लेट से टकराती है तो भारी प्लेट अर्थात महासागरीय प्लेट महाद्वीपीय प्लेट के नीचे धंस जाती है। अधिक गहराई में जाने के कारण इसका कुछ भाग पिघल जाती है यही पिघलता हुआ मैग्मा महाद्वीपय किनारे के निकट ऊपर को उठता है। जिससे ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण होता है।
अंततः इस प्रक्रिया के कारण निम्न परिणाम होते हैं:-
- पर्वतों का निर्माण
- भूकंप तथा ज्वालामुखी की उत्पत्ति
- पुरानी प्लेटों का ह्रस
इस प्रक्रिया में कई सारे चीजों का विनाश होता है जिससे इसे विनाशात्मक प्लेट किनारा भी कहते हैं।
रूपांतर सीमाएं (Transform Boundaries) संरक्षात्मक प्लेट किनारा
जब दो प्लेट एक दूसरे के अगल-बगल या क्षैतिज दिशा में आगे बढ़ती तो उसे रूपांतर सीमाएं (Transform Boundaries) कहते हैं।
यहां न तो विनाश की प्रक्रिया होती है और न ही निर्माण की प्रक्रिया होती है इसलिए इसे संरक्षात्मक प्लेट किनारा भी कहते हैं।
कभी-कभी दोनों प्लेट रूपांतर भ्रंश के साथ-साथ एक दूसरे के विपरीत जाते हैं ऐसी सीमाओं पर बहुत से भूकंप व ज्वालामुखी का उद्भाव निरंतर होते हैं। कैलिफोर्निया का सन एंड्रियास भ्रंश रूपांतरण सीमा का एक अच्छा उदाहरण है।
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प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonic) के कारण
प्लेट विवर्तनिकी के निम्नलिखित मुख्य कारण है:-
- उष्मीय कारण
- प्लेटो के प्रवाह की गति
- महासागरीय भू पृष्ठ का निर्माण
- महासागरीय स्थलाकृति
- गुरुत्व
- स्थलीय शक्ति
उष्मीय कारण
महासागरीय मध्य कटकों पर उष्मा का प्रवाह बड़े पैमाने पर होता है जबकि महासागरीय कटकों से ऐसे करके लगाना है दूर जाने पर वहां उष्मा के प्रवाह में कमी आती है। इसके विपरीत महासागरीय खाइयों में किसी प्रकार की उष्मा प्रवाह नहीं होती है। जबकि निकटवर्ती द्वीपों में अधिक गहराई पर भीउष्मा प्रवाह होती है।
अतः अलग-अलग उष्मा का प्रवाह होने के कारण प्लेटें अलग-अलग दिशा में भ्रमण करने लगती है कहीं प्लेटें एक दूसरे के विपरीत तो कहीं एक दूसरे के समानांतर तो कहीं एक दूसरे के क्षैतिज दिशा में गति करते हैं।
प्लेटों के प्रवाह की गति
जब महासागरीय मध्य कटकों पर उष्मा का प्रवाह होता है। तब प्लेटों का प्रसारण महासागरीय कटकों पर नियमित एवं एक सामान होता है। यह प्रसारण कम से कम 1 – 6 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष होती है एवं महासागरीय खाइयों में यह प्रसारण 5 – 15 सेंटीमीटर प्रति वर्ष होती है।
महासागरीय भू-पृष्ठ का निर्माण
महासागरीय तल पर नए-नए भू पृष्ठों का निर्माण होता रहता है महासागरीय मध्य कटक पर भू पृष्ठों का निर्माण की प्रक्रिया जो भी हो नई भू पृष्ठों का मोटाई लगभग एक जैसी होती है इस पर पुराने भू पृष्ठों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता।
महासागरीय स्थलाकृति
महासागरीय स्थलाकृति भी प्लेट विवर्तनिकी के लिए के लिए प्रमुख कारक है क्योंकि महासागर के नीचे का स्थल भाग भी एक जैसा नहीं होता।
महासागरीय स्थलाकृति की बात करें तो महासागरीय मध्य कटक महासागरीय नितल से 2 से 4 किलोमीटर ऊपर की ओर उठा हुआ होता है और कटक से दूर जाने पर दोनों और ढाल एक समान रूप से कम होती जाती है।
गुरुत्वबल
यह सर्वविदित है कि पृथ्वी का अपना एक गुरुत्वाकर्षण बल होता है जो कि पृथ्वी पर स्थित हर चीज पर काम करता है यही गुरुत्वबल के अध्ययन से पता चला है महासागरीय मध्य कटक समस्थिति संतुलन की अवस्था में है जबकि खाइयों में समस्थिति संतुलन नहीं है यहां गुरुत्वबल की विसंगतियां पाई जाती है।
स्थलीय शक्ति
स्थलमंडल हमारे पृथ्वी का सबसे कठोर भाग है स्थल मंडल में काफी कठोर और आकार में बड़े प्लेट होने के कारण ये प्लेट बिना विकार के काफी दूर तक जा सकती है।
कई प्लेटों की लंबाई उनकी मोटाई से 20 गुना या उससे अधिक है अगर प्लेटों के आधार पर घर्षण बहुत कम है तो लंबाई तथा मोटाई के इस अनुपात के कारण भी संपीड़न अथवा तनाव बल बल उसके एक छोर से दूसरे छोर तक नहीं पहुंच सकती।
अनेक भू-वैज्ञानिकों ने अपना विचार प्रकट किया है कि कटकों के निकट उच्च उष्मा प्रवाह के कारण धरातल का गतिशील होना पृथ्वी के भीतरी भाग में किसी प्रकार के संवाहन का कारण है।
डी एल टुरोकोटे और ई आर ऑक्सबुर्ग ने तापीय संवाहन के आधार पर ‘तापीय सीमा संस्तरों’ को प्रस्तुत किया।
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प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonic) तथा भूकंप एवं ज्वालामुखी
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate tectonic theory) से हमें यह जानने में मदद मिली की भूकंप तथा ज्वालामुखी प्रशांत महासागर के तटीय क्षेत्र में क्यों अधिक सक्रिय हैं। इसी कारण इस क्षेत्र को ‘अग्नि वलय’ (Ring of fire) कहते हैं।
विश्व के अधिकांश भूकंप एवं ज्वालामुखी प्लेटों के किनारे पर ही स्थित है प्रशांत प्लेट का किनारा भूपर्पटी तथा ऊपरी मेंटल में काफी अधिक गहराई तक पहुंच जाता है एवं वहां से पिघले मैग्मा में को ऊपर की ओर धकेल देता है। एवं यह भूतल पर आकर ज्वालामुखी का निर्माण करता है अन्य कई जगहों में इसी प्रकार की प्रक्रिया के कारण ज्वालामुखी फटते रहते हैं।
भूकंप भी प्लेटों के किनारे में ही अधिक आते हैं परंतु मध्य सागरीय कटक पर इनका विशेष केंद्र है कम गहरे केंद्र वाले भूकंप सभी प्लेटों के किनारे पाए जाते हैं। मध्यम गहराई वाले का केंद्र लगभग 200 किलोमीटर की गहराई पर होता है यह भूमध्य सागरीय खाइयों में मिलता है
इन क्षेत्रों में प्लेटें खाई के तल से भी नीचे 300-400 किलोमीटर तक नीचे चली जाती है कहीं-कहीं तो यह प्लेटें मेंटल में 700 किलोमीटर की गहराई तक जाती है यह क्षेत्र महाद्वीपीय भू स्थल की ओर 30 डिग्री से 80 डिग्री के कोण में झुका होता है। जबकि अधिकांशतः 45 डिग्री से 60 डिग्री तक ही होते हैं।
इस तरह के भूकंप क्षेत्र प्रशांत महासागर के तट के निकट ही पाए जाते हैं। इन्हें बेनीऑफ्फ क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि इसकी खोज भूकंप विशेषज्ञ Hugo Benioff ने की थी।
अधिक गहराई वाले भूकंप केवल संपीड़न से ही पैदा होते हैं। मध्यम गहराई वाले भूकंप तनाव तथा संपीड़न से पैदा होते हैं। और यह तनाव तब पैदा होती है जब अधिक घनत्व वाली प्लेट अपने भार के कारण डूब जाती है। और नीचे जाने वाली प्लेट की गति में मैग्मा अवरोध पैदा करता है तो संपीड़न पैदा होता है।
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प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonic) तथा भू-गतियां
प्लेट विवर्तनिकी से हमें भू गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलती है। महाद्वीपीय निर्माणकारी प्रक्रिया तब होती है जब मेंटल का पदार्थ भू-पर्पटी को ऊपर की ओर धकेलता है एवं एक गुंबदनुमा आकृति का निर्माण होता है।
ढक्कन, कोलोरेडो तथा राइन गिरिपिंड धीमी गति से ऊपर उठ रहे हैं इस लंबी प्रक्रिया में से भूतल पर तनाव बढ़ता है और भ्रंश पैदा होते हैं।
अफ्रीका के बृहद भ्रंश घाटी इसी प्रकार से बनी है। यदि महासागरीय कटक के मध्य अंतर महाद्वीपीय विस्थापन की प्रक्रिया जारी रहे तो यह घाटी एक खुले महासागर का रूप धारण कर सकता है।
प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonic) एवं पर्वतों का निर्माण
प्लेट विवर्तनिकी से हमें यह जानकारी मिलती है कि पर्वतों के निर्माण का सीधा संबंध प्लेट विवर्तनिकी से है। जब दो प्लेटें एक दूसरे के निकट आती है तो बलन के कारण संपीड़न उत्पन्न होती है जिसके कारण बलित पर्वतों (मोड़दार पर्वत) का निर्माण होता है। हिमालय, अलप्स, रॉकी, एण्डीज आदि पर्वत इसके उदाहरण हैं।
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प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonic) सिद्धांत की आलोचना
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate tectonic theory) बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है एवं कई भू वैज्ञानिकों ने समस्याओं को सुलझाने के लिए इस सिद्धांत का समर्थन किया। इसके बावजूद इस सिद्धांत की आलोचना भी हुई है:-
- प्लेट विवर्तनिकी से जिन स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ है उस निर्माण से ज्यादा उनका विनाश हुआ है। इसका अर्थ यह हुआ कि कहीं प्लेटों की गति में वृद्धि होती है जिसका कोई प्रमाण नहीं है।
- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत यह सिद्ध करने में असमर्थ है कि केवल प्रशांत महासागरीय तटों तक ही क्यों सीमित है जबकि अन्य सभी महासागरों में भी अपसरण एवं विस्तारण पाया जाता है।
- एक ही प्लेट के कई दिशाओं में गतिशील होने का भी प्रमाण है जबकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार संभव नहीं है।
- Hugo Benioff का क्षेत्र केवल प्रशांत महासागर में देखने को मिलता है जबकि कई अन्य क्षेत्र हैं।
- प्लेटों को सीमित संख्या में बांटना भी सही नहीं है क्योंकि कई विद्वानों ने प्लेटों की संख्या भी बढ़ाने का सुझाव दिए हैं।
- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत पर्वतों के निर्माण के लिए जो कारण दिए हैं वह स्पष्ट नहीं है क्योंकि पृथ्वी पर बहुत सी ऐसे भी पर्वतमालाएँ हैं जिनका इस सिद्धांत से मेल नहीं है। जैसे- ब्राजील का सियरा डेलमार एवं दक्षिण अफ्रीका का ड्रेकन्सबर्ग कुछ ऐसे पर्वत हैं।
अभी आप लोगों ने प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate tectonic theory) के बारे में पढ़ा जिससे आप लोगों को काफी कुछ सीखने को मिला होगा। वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत भी इस थ्योरी का एक महत्वपूर्ण भाग है उसे भी आप लोग अवश्य पढ़ें।
अगर आप लोगों का कोई सुझाव हो या किसी चीज के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं तो नीचे जाकर जरूर कमेंट करें।