भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Bhartiya Samvidhan Ki Prastavana
इस लेख में हम जानेंगे की भारतीय संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य क्या है भारतीय संविधान को जानने के लिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना को जानना बहुत जरुरी है
भारतीय संविधान की प्रस्तावना ( धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और समाजवादी ) इसमें निहित दर्शन:-
सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में प्रस्तावना को सम्मिलित किया गया था तदुपरांत कई अन्य देशों ने इसे अपनाया जिसमें भारत भी शामिल है। प्रस्तावना संविधान के परिचय अथवा भूमिका को कहते हैं। इसमें संविधान का सार होता है। प्रख्यात न्यायविद व संवैधानिक विशेषज्ञ एन. ए पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र कहा है। ध्यातव्य है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत के संविधान के पीछे जो दर्शन है उसे ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ के रूप में संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया था और सभा ने उसे 22 जनवरी 1947 ईस्वी को स्वीकार किया था उक्त संकल्प/प्रस्ताव में उन्होंने जिन आदर्शों को रखा था वे संविधान की उद्देशिका में दिखाई पड़ते हैं उद्देशिका में उन उद्देश्यों का उल्लेख किया जाता है जिनकी प्राप्ति के लिए कोई नियम पारित किया जाता है
उच्चतम न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में उदेशिका का महत्व एवं उसकी उपयोगिता बताई है- उदेशिका को न्यायालय में परिवर्तित नहीं किया जा सकता किंतु लिखित संविधान की उद्देशिका में वे उद्देश्य लेख बद्ध किए जाते हैं जिनकी स्थापना और संप्रवर्तन के लिए संविधान की रचना होती है न्यायाधिपति ने अपने एक निर्णय में उद्देशिका के संदर्भ में ठीक ही कहा है- ” उद्देशिका किसीअधिनियम के मुख्य आदर्शों एवं आकांक्षाओं का उल्लेख करती है।” उच्चतम न्यायालय ने एक अन्य निर्णय में कहा “उदेशिका संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।”
संविधान की रचना के समय निर्माताओं का उद्देश्य था या वे किन उच्च आदर्शों की स्थापना भारतीय संविधान में करना चाहते थे इन सब को जानने का माध्यम उदेशिका है
पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा जिन आदर्शों को प्रस्तुत किया गया वे निम्नलिखित हैं:-
संविधान सभा दृढ़तापूर्वक सत्यनिष्ठा से भारत को एक संपूर्ण संप्रभुता संपन्न गणराज्य घोषित करती है और उसके भावी प्रशासन के लिए एक संविधान की संरचना करने का वचन देती है इसमें ब्रिटिश भारतीय क्षेत्र, भारतीय राज्यों के क्षेत्र और वह क्षेत्र जो ब्रिटिश भारत और भारतीय राज्यों की सीमा से बाहर है और जो स्वतंत्र प्रभुता संपन्न भारत के संवैधानिक भाग बनाना चाहते हैं सब को एकीकृत किया जाएगा ये सभी क्षेत्र अपनी वर्तमान सीमाओं अथवा संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के साथ भारत के स्वायत्त एकक माने जाएंगे संघ के लिए नियोजित अथवा अंतर्निहित शक्तियों के अतिरिक्त वह सरकार और प्रशासन के लिए सभी अवशिष्ट शक्तियों का प्रयोग करेंगे
स्वतंत्रता भारत की संपूर्ण शक्ति और सत्ता इसके संविधायी घटक तथा प्रशासनिक उपकरण भारतीय जनता से व्युत्पन्न है भारत की जनता को सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय की गारंटी दी जाएगी। कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अंतर्गत सब को पदोन्नति के समान अवसर, विचार की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति, धर्म, आस्था, उपासना, व्यवसाय, सहचर्य तथा कार्यकारिता के अवसर प्रदान किए जाएंगे। इसमें अल्पसंख्यकों, पिछड़े तथा आदिवासियों, और दलितों एवं अन्य पिछड़े वर्गों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
भारत के गणराज्य के क्षेत्रों और धरती, समुद्रों और वायु पर उसके अधिकारों को सभ्य राष्ट्रों के नियमों के अनुसार सुरक्षित रखा जाएगा। इस प्राचीन देश की विश्व में न्याय संगत और सम्मानित स्थान प्राप्त हुआ है और यह विश्व शांति तथा मानव कल्याण के लिए जी जान से सहयोग दे।
संविधान की प्रस्तावना में सभी आदर्शों/ दर्शनों को समाहित किया गया है मूल रूप से संविधान की प्रस्तावना नेहरू द्वारा प्रस्तुत तथा सर्वसम्मति से संविधान सभा द्वारा अंगीकृत उद्देश्यों के प्रस्ताव पर आधारित है कानून की दृष्टि से प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है किंतु व्यवहार में यही कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का मार्ग दर्शन करने वाला प्रकाश स्तंभ है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई• को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित, और आत्मसमर्पित करते हैं।
इसमें समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द 42 वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।