History

भारत पर अरबों का आक्रमण | मोहम्मद बिन कासिम का भारत पर आक्रमण

भारत पर अरबों का आक्रमण के पूर्व भारत में हिंदू धर्म एवं इनके शाखाएं जैसे- बौद्ध, जैन विचारधाराओं का ही समूचे भारत में प्रभाव था। लेकिन आठवीं शताब्दी के आरंभ में अरब में इस्लाम धर्म के उदय होने एवं तेजी से इनके बढ़ते हुए प्रभाव ने भारत की धरती पर भी अपना प्रभाव छोड़ा। अरब की (पश्चिमी और मध्य एशिया) घटनाएं हमेशा भारत को प्रभावित करती थी। वास्तव में देखा जाए तो अरबों का तेजी से बढ़ता हुआ साम्राज्य जब भारत के सीमा से टकराया तो दमिश्क में बैठे हुए खलीफा के मन में भारत के सिंध पर कब्जा करने का विचार आया। क्योंकि इस समय भारत को सोने चांदी एवं अत्यंत समृद्धशाली देश के रूप में जाना जाता था यह एक बड़ी वजह थी भारत पर अरबों का आक्रमण का।

इस्लामी साम्राज्य का विस्तार सिर्फ इस्लाम उदय के 100 साल में ही हो गया था। इनका साम्राज्य अफ्रीकी महाद्वीप के मिस्र से लेकर समूचे मध्यपूर्व और भारतीय उपमहाद्वीप के सिंध तक बढ़ता चला गया। अर्थात हम कह सकते हैं कि अरबों के सिंध आक्रमण का निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य थे:-

  •  साम्राज्य का विस्तार।
  •  इस्लाम धर्म का विस्तार।
  •  धन लूटना।

अरब का संक्षिप्त इतिहास

भारत पर अरबों का आक्रमण के बारे में विस्तारपूर्वक जाने से पहले हमें अरब के बारे में भी संक्षिप्त जानकारी हासिल करना जरूरी है इससे हम भारत पर अरबों का आक्रमण के बारे में आसानी से समझ सकते हैं

छठवीं शताब्दी के मध्य अरब के रेगिस्तानी क्षेत्रों में कई कबीले थे जो खानाबदोश का जीवन जीते थे। इनका जीवन खानाबदोशी का होने के कारण ये एक जगह से दूसरी जगह खाने की तलाश में भटकते रहते थे। हर कबीलों की अलग-अलग धार्मिक आस्थाएं एवं देवी देवता भी थे। ये सभी कबीलों के लोग मक्का स्थित काबा को पवित्र मानते थे।

इसी मक्का स्थित कुरैश कबीले में एक बालक (हजरत मोहम्मद) का 570 ईसवी में जन्म होता है, जिनके पिता अब्दुल्ला एवं माता अमीना थे। मोहम्मद एक धार्मिक व्यक्ति थे ये मक्का में स्थित पहाड़ियों के गुफा में ध्यान लगाते थे। 610 ईस्वी में 40 साल के उम्र में ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने खुद को ईश्वर का पैगंबर बताया और इन्होंने इस्लाम धर्म की स्थापना की। इन्होंने एक अल्लाह को मानने की सलाह दी। जिससे सारे कबीलों के ईश्वरवाद विचारधारा एवं इनके विचारधारा में टकराव की स्थिति पैदा हो गई और ईश्वरवादी विचारधारा के लोगों ने मोहम्मद पैगंबर के कई अनुयायियों को मक्का से बाहर भगा दिया। सन 622 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद भी मक्का छोड़कर मदीना आ गए। इस घटना को इस्लाम में हिजरा कहा जाता है। यहीं से इस्लामिक काल की शुरुआत होती है अर्थात हिजरी संवत्

मदीना आकर पैगंबर ने अपनी धार्मिक प्रचार प्रसार शुरू कर दिए। यहां इन्होंने अलग राजनीतिक व्यवस्था की भी शुरुआत की।अंततः कई कबीले इस्लाम से जुड़ने लगे। इस्लाम की ताकत बढ़ने लगी इसी ताकत के बल पर पैगंबर मोहम्मद ने सन 629 ई• में मक्का पर हमला कर अपने नियंत्रण में ले लिया। अब मक्का और काबा ईश्वरवादी लोगों के हाथों से मुक्त होकर ‘एक अल्लाह’ को मानने वालों के हाथों में चला गया।

पैगंबर ने अपने अनुयायियों को अपने (इस्लाम के) 5 मूल मंत्र दिए थे:- शहादा, नमाज, रोजा, जकात और हज की शिक्षा। इन्होंने धर्मांतरण को भी आखिरी पैमाना माना था।

632 ईसवी में पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम के प्रचार-प्रसार का जिम्मेदारी खलीफाओं ने ले ली। आरंभ में ये धार्मिक गुरु होते थे कालांतर में ये राजसत्ता भी संभालने लगे थे इन्हीं खलीफाओं के नेतृत्व में ही इस्लाम बड़ी तेजी से अरब, मिस्र, सीरिया, ईरान, इराक तक फैल गई। इस्लाम को नियंत्रण में रखने के लिए दमिश्क को खलीफाओं ने अपनी राजधानी बनाया। दमिश्क के सुन्नी उम्मयद खलीफा अलवलिद प्रथम के काल में इस्लाम बहुत तेजी से राज्य विस्तार किया। इसी समय इस्लाम की पूर्वी सीमा भारत की पश्चिमी सीमा से जा टकराने लगी। यह भारत का सिंन्ध था। (जो राजा दाहिर सेन का शक्तिशाली साम्राज्य था।)

इसे भी पढ़ें:- सिंधु घाटी सभ्यता का पतन के कारण

इन्हें भी पढ़ें:- गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?

भारत पर अरबों का आक्रमण

भारत पर अरबों ने कई आक्रमण किए जिनमें से उन्हें कई आक्रमणों में असफलता मिली और इन असफल आक्रमण के बाद उन्हें सफलता मिली और भारत के सिंध क्षेत्र में अपना साम्राज्य विस्तार किया।

भारत में अरबों का असफल आक्रमण

टकराव की स्थिति उत्पन्न होते ही खलीफाओं ने भारतीय उपमहाद्वीप में घुसने का मन बना लिया। लेकिन इनका सिंध पर जितने भी शुरुआती आक्रमण हुए सभी असफल सिद्ध हुए आइए हम इन असफल आक्रमणों के बारे में जानते हैं।:-

  1.  636 ईस्वी में समुद्री रास्ते से मुंबई के ठाणे बंदरगाह पर असफल आक्रमण किया। (इस समय उमर बिन अल खतब खलीफा थे।)
  2.  647 ईस्वी में अब्दुल्ला बिन उमर के नेतृत्व में मकरान के रास्ते सिंध पर मुस्लिम आक्रमण हुआ।
  3.  659 ईस्वी में अल हैरिस के नेतृत्व में सिंध पर पुनः आक्रमण हुआ।
  4.  664 ईस्वी में उमयद वंश के खलीफा के समय भी सिंध पर असफल आक्रमण हुए।
  5.  वर्ष 711 ईस्वी में  उबेदुल्लाह तथा बर्दुल के नेतृत्व में भी असफल आक्रमण हुए। (इतिहास में हमें भारत में अरबों के इसी असफल आक्रमण के बारे में पता चलता है।)

गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) के पतन के बाद भारत की स्थिति के बारे में जानने के लिए क्लिक करें

भारत में अरबों का सफल आक्रमण

उपरोक्त असफल आक्रमण के बाद  अंततः अरबों 712 ईसवी में सफलता मिली यह अभियान था सिंध का अभियान जिसे मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में लड़ा गया अतः हम इस आक्रमण के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे

इस समय उम्मयद खलीफा के राजनीतिक सलाहकार जो एक रक्षा मंत्री भी था- अलहज्जाज बिन यूसुफ। ये  इराक के गवर्नर भी थे इन्होंने पूर्व में इस्लामिक विस्तार की जिम्मेदारी संभाली एवं इन्होंने अरबी व्यापारियों से भारत के बारे में अर्थात भारत के अकूत संपत्तियों के बारे में सुनी थी। यही एक मुख्य कारण था जिस से प्रेरित होकर अलहज्जाज ने अपने मालिक जो दमिश्क में थे (उम्माइद खलीफा वाहिद प्रथम) के आदेश पर सिंध पर आक्रमण किए

यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि हमें इसकी जानकारी मोहम्मद अली बिन अबूबकर कुफी द्वारा लिखित चाचनामा से मिलती है।

नोट:- चाचनामा एक अरबी में लिखा गया पुस्तक है जिसके लेखक के बारे में ज्ञात नहीं है। कालांतर में चाचनामा का फारसी में अनुवाद मोहम्मद अली बिन अबूबकर कुफी द्वारा नसीरुद्दीन कुबाचा के काल में किया गया जो मोहम्मद गौरी का एक  तुर्की दास अधिकारी था। इस पुस्तक में 711-12 के अरब आक्रमण का वर्णन किया गया है एवं इसमें इस काल के सिंध के देशी शासक वंश के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।

चाचनामा के अनुसार श्रीलंका के राजा के द्वारा उम्माइद खलीफा के लिए आठ जहाज कीमती उपहारों से लादकर भेजे थे। जिसे सिंध के देवल बंदरगाह में समुद्री लुटेरों द्वारा लूट लिए जाने पर सिंध के राजा दाहिर सेन को अलहज्जाज ने खत लिखकर समुद्री लुटेरों पर कार्रवाई करने की मांग की। लेकिन राजा दाहिर सेन ने यह कहकर इंकार कर दिया कि समुद्री लुटेरे मेरे पहुंच से बहुत दूर हैं। इसे अलहज्जाज ने अरबों का अपमान समझा। इस घटना को हम सिंध आक्रमण का तात्कालिक कारण कह सकते हैं। अब अलहज्जाज ने अरबों का अपमान समझकर सिंध के तत्कालिन राजा दाहिर सेन पर आक्रमण करने की सोची

इसे भी पढ़ें:- बेरुबाड़ी संघ मामला (1960)

इसे भी पढ़ें:- केशवानंद भारती मामला (1973)

दाहिर सेन (663-712)

सिंध के महाराजा राय साहसी द्वितीय जो हर्षवर्धन के समकालीन थेराय साहसी के कोई संतान न होने के कारण उत्तराधिकारी कोई नहीं बन सका। अतः महाराजा राय साहसी के एक ब्राह्मण मंत्री चाच जो महाराजा के सभी निजी कार्यों की देखरेख करता था। महाराजा राय साहसी के मृत्यु के बाद चाच ब्राह्मण ने महाराजा राय साहसी की विधवा रानी सुहानदी से विवाह कर सिंध साम्राज्य का शासक बना। महाराजा चाच के दो पुत्र हुए दाहिर सेन और दाहिर सिम। कुछ वर्षों बाद दाहिर सिम की मृत्यु होने के बाद महाराजा चाच के बाद 679 ईस्वी में दाहिर सेन संपूर्ण सिंध के शासक बने रहे। इन्होंने लगभग 33 वर्षों तक सिंध में शासन किया। राजा दाहिर सेन ब्राह्मण वंश के आखिरी शासक थे। राजा दाहिर सेन की पत्नी लाड़ीबाई थी। इनकी बेटियां प्रेमाला देवी, सूर्य देवी एवं जोधा देवी थी और एक बेटा जय सिंह दाहिर था।

राजा दाहिर काफी धार्मिक सहिष्णु व्यक्ति थे जिसके कारण ही उसके साम्राज्य में विभिन्न वर्गों एवं धर्म के लोग शांतिपूर्ण तरीके से रहते थे यहां हिंदुओं के मंदिर, पारसियों के अग्नि मंदिर, बौद्ध स्तूप एवं अरबों द्वारा आकर बस गए मुस्लिमों के मस्जिदें थी।

राजा दाहिर सेन के साम्राज्य में सिंध से स्थलमार्ग और जलमार्ग के द्वारा व्यापार भी होता था।

राजा दाहिर सेन का साम्राज्य विस्तार

राजा दाहिर सेन का साम्राज्य पश्चिम में मकरान तक, दक्षिण में अरब सागर और गुजरात तक, पूर्व में मालवा और राजपूताना तक और उत्तर में मुल्तान से लेकर पंजाब तक फैली हुई थी

भारत पर अरबों का आक्रमण

अरबों का भारत के सिंध पर आक्रमण

अलहज्जाज ने सिंध अभियान के लिए अपने दामाद मोहम्मद बिन कासिम को चुनाअलहज्जाज ने मोहम्मद बिन कासिम को सीरियाई सैनिक और अन्य जरूरी सामान के साथ सिंध रवाना कर दिया। कहा जाता है इसके सैनिकों की संख्या 6000 थी। रास्ते में मुहमद बिन कासिम ने मकरान विजयकर वहां से और भी सैनिक ले लिए। अब लगभग 15000 सैनिकों के साथ आगे बढ़ा। और उन्होंने बौद्ध शासित राज्य नीरून पर हमला कर विजय पाई।

 इसके बाद मोहम्मद बिन कासिम ने अपनी सेना को दो भागों में बांट कर एक हिस्से को स्थलमार्ग और दूसरे को जलमार्ग से भेजा। स्वयं अस्थल मार्ग से देवल बंदरगाह पर आक्रमण कर दिया। यह राजा दाहिर सेन के साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह था। दाहिर के पास एक मजबूत तथा हथियारों से सुसज्जित सेना थी फिर भी उसने बंदरगाह को बचाने का प्रयास नहीं किया।

मोहम्मद बिन कासिम का युद्ध नीति यह था कि जो भी इस्लाम स्वीकार नहीं करेगा उसे मौत की सजा दी जाएगी और ऐसा हुआ भी हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। राजा दाहिर सेन ने सिंधु नदी के पूर्व में तैयार कर मोहम्मद बिन कासिम को रोकने की कोशिश की लेकिन मोहम्मद बिन कासिम ने सिंधु नदी के पश्चिमी इलाके में कब्जा कर लिया।

यहां कई शहरों को नष्ट कर दिया और हजारों लोगों को बंदी बनाकर एवं लुटे हुए माल को अलहज्जाज के पास भेज दिया गया। हजारों लोग इस्लाम स्वीकार किए एवं कुछ दाहिर सेन के नाराज बौद्ध एवं ब्राह्मण सरदार वर्ग के गुटों में भी मोहम्मद बिन कासिम के साथ मिल गए। ऐसा होने से मोहम्मद बिन कासिम को और भी सैन्य सहायता मिल गई। इसी कारण 712 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंधु नदी को पार कर राजा दाहिर सेन के साथ रोवर (रोहड़ी) में भयंकर युद्ध हुआ।

राजा दाहिर सेन की यह राजधानी थी उन्होंने अपनी राजधानी को खाई द्वारा घेराबंदी कर लिया था। कहा जाता है कि  आखिरी समय तक राजा दाहिर सेन ने लड़ाई लड़ी। उन्होंने मचान पर बैठकर तीरों से हमला किया अंततः उन्हें भी तलवार से मार दिया गया। क्योंकि जलते हुए तीरों की बरसात से उनका मचान जल गया और उसके हाथी को भी आग से हानि हुई। कहा जाता है हाथी सिंधु नदी के पानी में जाकर बैठ गया।

नेरन तथा सेहवान शहर जो बौद्धों का गढ़ था बिना युद्ध ही कब्जे में कर लिया गया। सेहवान में राजा दाहिर सेन चचेरा भाई बजहरा शासन कर रहा था। 2 दिनों की खूनी युद्ध के पश्चात राजा दाहिर सेन के हजारों सैनिकों के साथ राजा दाहिर की भी मृत्यु हो गई। उनकी विधवा लाडीबाई ने भी आत्मसमर्पण से मना कर दिया एवं आक्रमणकारियों से कड़ा मुकाबला किया। सैनिकों एवं सामग्री के अभाव में उन्होंने कई स्त्रियों के साथ जौहर कर मृत्यु को प्राप्त कर ली। कई जगहों में तो मोहम्मद बिन कासिम को कड़ी टक्कर मिली जिसमें ब्राह्मणाबाद और आलोर भी शामिल थे।  ब्राह्मणबाद का दायित्व दाहिर सेन के बेटे  जयसिंह के ऊपर था। 713 ईस्वी में मुल्तान तथा उसके दक्षिण-पश्चिम में लगे पंजाब के क्षेत्र भी अरबों द्वारा जीत लिए गए। इसके बाद मोहम्मद बिन कासिम ने कई और महत्वपूर्ण इलाकों जैसे- ब्राह्मणाबाद, सेहवान आदि पर भी कब्जा कर पूरे सिंध पर कब्जा कर लिया। ब्राह्मणाबाद के बाद कासिम ने सिंध की राजधानी आलोर और मुल्तान पर भी अधिकार कर लिया। मुल्तान विजय भारत में अरबों की अंतिम विजय थी यहां उन्होंने इतना धन लूटा की उसका नाम ही बदल कर स्वर्णनगर रख दिया।

अब मोहम्मद बिन कासिम का सिंध पर कब्जा हो गया। राजा दाहिर सेन का सिर कटवा कर अलहज्जाज के पास भेजा गया। राजा दाहिर सेन की दो बेटियों को भी खलीफा के पास उपहार स्वरूप पेश किया गया।

मोहम्मद बिन कासिम ने लगभग 715 ईस्वी तक सिंध में शासन किया एवं इन्होंने ही सबसे पहले सिंध में गैर मुसलमानों पर जजिया कर लगाया था। इस समय मोहम्मद बिन कासिम ने भारत के कई स्थानों पर असफल आक्रमण किए। इसी समय अलहज्जाज की मृत्यु हो गया एवं खलीफा अलवलिद का भी देहांत हो जाने के बाद जो उत्तराधिकारी हुए वे अलहज्जाज और खलीफा अलवलिद के विरोधी थे

 अतः उन्होंने मोहम्मद बिन कासिम को बंदी बनाने का आदेश दिया। 715 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम को बंदी बनाकर दमिश्क लाया गया जहां उसे तड़पाकर मारा गया।

 इसलिए इस आक्रमण के विषय में लेनपूल का कथन है कि “यह घटना एक परिणाम रहित विजय है।” क्योंकि मोहम्मद बिन कासिम को उन्हीं के खलीफाओं द्वारा मार दिया गया और सिंध आक्रमण की सफलता से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

नोट:- राजा दाहिर सेन की राजधानी आलोर थी जिस का वर्तमान नाम रोहड़ी (रोवर) कहा जाता है यह स्थान अब पाकिस्तान में है।

हमारे भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में जानने के लिए क्लिक करें।

राजा दाहिर की बेटियां

इस युद्ध में दोनों राजकुमारी सूरज देवी और प्रेमाला देवी को युद्ध क्षेत्र से पकड़कर कैद कर लिया गया था एवं मोहम्मद बिन कासिम ने अपनी जीत की खुशी में दोनों राजकुमारियों को भेंट के रूप में खलीफा के पास भेज दिया

 खलीफा दोनों राजकुमारीयों की खूबसूरती देखकर मोहित हो गया एवं दोनों को अपने हरम (जनान खाना) में शामिल करने का आदेश दिया। खलीफा ने दोनों बेटियों में से बड़ी बेटी को अपने पास बुलाया और देखा कि सूर्या देवी तो बहुत ही खूबसूरत है उन्होंने जैसे ही छूने की कोशिश की सूर्य देवी ने कहा कि बादशाह मुझे मोहम्मद बिन कासिम ने 3 दिनों तक अपने पास रखा था अर्थात उसने यहां भेजने से पहले ही कौमार्य भंग कर दिया।

 इतना सुनते ही खलीफा आग बबूला हो उठा और तुरंत एक आज्ञा पत्र द्वारा मोहम्मद बिन कासिम को वापस बुलवाया और उसे तड़पा कर मार डाला।

लेकिन कहा जाता है कि दाहिर की बेटियां अपने पिता के कासिम द्वारा मार डालने के बदला के भाव स्वरूप ऐसा किया था। खलीफा को जब इनकी मन्शा पता चली तो दोनों को जिंदा जला दिया। इस घटना को कई इतिहासकारों ने अलग-अलग रूप से वर्णन किया है।

इसे भी पढ़ें:- सिंधु घाटी सभ्यता

भारत पर अरबों का आक्रमण का प्रभाव

  •  सिंह तथा मुल्तान विजय से अरबों की नैतिकता एवं समृद्धि को कुछ दिनों तक अरब जगत में बढ़ाया। जबकि भारतीय इतिहास में यह बहुत बड़ी घटना तो नहीं थी क्योंकि इतने बड़े भारत देश के छोटे से भाग पर ही प्रभाव डाला। अरबों की अधिपत्य को बढ़ने देने से भारतीय राजाओं ने रोकने में सफलता हासिल की।
  •  इस विजय के बाद लगभग 750-51 तक के उम्माईदों को अब्बासियों ने लगभग समाप्त कर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य से ही हटा दिया।
  •  अब्बासियों द्वारा नया खलीफा की स्थापना की गई। इन के समय सिंध में स्थिति कमजोर हो गई एवं लगभग 871 ईस्वी तक सिंध और मुल्तान खलीफत से लगभग स्वतंत्र हो गए।
  •  सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सिंध विजय अरबों के लिए काफी मायने रखता है। अरब भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से काफी प्रभावित हुए एवं गुलाम बनाए बंदियों की विद्वता, प्रशासनिक तिष्णता एवं नैतिक चरित्र से काफी प्रभावित हुए।
  •  इसी समय हिंदू तथा बौद्धों को जिम्मी का दर्जा मिला तथा जजिया के बदले जीवन एवं संपत्ति के रक्षा का भार इस्लामी राज्यों पर पड़ा।
  •  इन्हें अपने ईश्वर की आराधना करने एवं अपने तरीके से जीवन जीने का अधिकार मिला।
  •  इन्हें प्रशासनिक व्यवस्था से भी जुड़ने का अवसर मिला फलस्वरूप शासक एवं शासितों के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित हुए।
  •  ब्राह्मण विद्वानों तथा बौद्ध संतो ने अरबी शासकों एवं उनके संतानों को भारतीय भाषा, साहित्य एवं दर्शन, खगोल शास्त्र, गणित, चिकित्सा विज्ञान की क्षेत्र में शिक्षा देना शुरू किया। इससे विदेशों में भारतीय विज्ञान तथा सांस्कृतिक मूल्यों का विदेशों में विस्तार का मार्ग मिला।
  •  भारतीय संख्याओं काफी विस्तार हुआ, कई भारतीय पुस्तकों को अरबी एवं फारसी में अनुवाद किया गया।
  •  अमीर खुसरो ने एक जगह वर्णन करते हुए लिखते हैं कि एक अरबी खगोल शास्त्री अबू माशर ने बनारस जा कर एक दशक से अधिक समय तक संस्कृत भाषा तथा खगोल शास्त्र का अध्ययन किया।
  •  अरबों का जो सिंध तथा मुल्तान में आकर बसे उनका भारतीय करण हो गया।
  •  इन्होंने भवन निर्माण एवं मस्जिदों के निर्माण में भारतीय भवन शैली को अपनाया।
  •  इनके द्वारा भारतीय संगीत एवं अन्य कलाओं को संरक्षण मिला।
  •  धार्मिक जीवन में भी बहुत प्रभाव पड़ा कई भारतीय स्वेच्छा से इस्लाम अपनाए एवं इस्लाम का प्रचार प्रसार भारत के अन्य लोगों में भी हुआ। अरबों ने मालाबार में एक बस्ती स्थापित की एवं स्थानीय सरदार को यहां इस्लाम में दीक्षा दी।
  • अरबों ने अपने जीते हुए जन समुदाय के विश्वास को जीतने में सफल हुए।
  •  लगभग कुछ छोटे मुस्लिम राज्य (जैसे- मुल्तान, मंसूरा) तीन शताब्दियों तक स्थिर रहे जबकि उनके पड़ोसी राज्य मजबूत राजपूत साम्राज्य थे। ऐसा होना इसलिए संभव हुआ क्योंकि भारतीय शासक एवं प्रजा दोनों का समर्थन मिला।
  • अरबों ने भारतीयों को खजूर की खेती करना एवं ऊंट पालन करना सिखाया।

निष्कर्ष

अरबों के आक्रमण को देखकर ऐसा लगता है कि यह काल एक टकराव के युग की शुरुआत थी जो गजनबी एवं गोरी से होते हुए सल्तनत काल में आकर स्थिर हो जाती है। एवं इस्लाम शासकों के अधीन एक स्थिर साम्राज्य हमें उत्तर भारत में देखने को मिलता है। सिंध में मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण का पुरजोर विरोध करने के बाद भी राजा दाहिर को अपना प्राण और साम्राज्य से हाथ धोना पड़ता है। आरंभ में भले ही हम आक्रमण के कारणों में से धन लूटना, साम्राज्य विस्तार एवं इस्लाम का विस्तार को देखते हैं लेकिन कालांतर में कई ऐसी चीजें देखने को मिलती है जिससे ऐसा लगता है कि अरबों और भारतीयों में काफी अच्छे संबंध बन गए थे। संस्कृति, कला, साहित्य, विज्ञान, खगोल शास्त्र, गणित, चिकित्सा आदि शिक्षकों का आदान-प्रदान हमें देखने को मिलता है। अरबों की धार्मिक कट्टरता भारतीयों के मित्रता पूर्ण सामाजिक व्यवहार तथा विनम्र धार्मिक पहुंच के कारण हृदय परिवर्तन होते देर न लगी। एवं उन अरब मुसलमान जो भारत में आकर बस गए उनका भी भारतीयकरण हो गया।भवन निर्माण शैलियों का भी आदान-प्रदान हुआ। इस्लाम का प्रचार प्रसार भारत में शांतिमय तरीके से हुआ।


  • हमारे देश के संविधान निर्माण में भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) का महत्वपूर्ण योगदान है। विस्तृत जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें।
  • Hussainara Khatoon vs State of Bihar (हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य मामला) मामला भारत में जनहित याचिका का पहला रिपोर्ट किया गया मामला था क्लिक करें

जनहित याचिका से संबंधित प्रमुख मामले पढ़ने के लिए क्लिक करें

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button