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भाषा परिवार | भाषा का वर्गीकरण

हिंदी भाषा, भाषा के वर्गीकरण में भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत आती है चूँकि प्राचीन काल से वर्तमान तक के कई भाषाएं जैसे- संस्कृत, ग्रीक, लैटिन, अवेस्ता, जर्मन, फ्रेंच, हिंदी, बांग्ला, मराठी, गुजराती एवं प्राचीन फारसी जैसी कई भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार से संबंध रखती है।

वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो विश्व में बोली जाने वाली भाषा 4000 से भी अधिक है और भारत में मातृभाषा के रूप में बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या 1981 में गणना के आधार पर 1652 है।

भारतीय भाषाओं में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। भाषाओं की विविधता का प्रमुख कारण यह है कि एशिया के निकटस्थ प्रदेशों से आए विभिन्न नृजातीय समूहों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप में बस जाने की एक लंबी प्रक्रिया के कारण हुई है। ऐसे में नृजातीय विविधता के कारण बोलियों एवं भाषाओं में भी विविधता देखने को मिलती है।

आजादी के बाद भाषायी आधार पर राज्यों के निर्माण का पहल किया गया एवं 1961 की जनगणना के अनुसार भारतीय भाषाओं की संख्या 187 थी एवं 181 में से 94 भाषाएं ही 10000 से कम लोगों द्वारा बोली जाती है एवं भारत की 97 प्रतिशत जनता सिर्फ 23 भाषाएं बोलती है साथ ही इन 23 भाषाओं में से 22 भाषाएं अंग्रेजी को मिलाकर संविधान की आठवीं अनुसूची में रखी गई है।

भाषा का वर्गीकरण

भारत में भाषाओं की बहुलता है। इनमें अनेक भाषाओं में समानता है, सहअस्तित्व है, तो कुछ भाषाओं में असमानता भी दिखाई देती है। सामान्यतः एक गुणधर्म वाली भाषाएं किसी एक भाषा परिवार के अंतर्गत आती है या फिर समान प्रकृति वाली भाषाएं मिलकर एक भाषा परिवारों का निर्माण करती है अर्थात इन भाषाओं का वर्गीकरण भौगोलिक दृष्टिकोण से भाषा की प्रकृति और परिवार के आधार पर किया जाता है। अतः भाषा के वर्गीकरण का दो प्रमुख आधार है:- आकृति मूलक वर्गीकरण और परिवार मूलक वर्गीकरण

भाषा का वर्गीकरण करते समय शब्दों की प्रकृति अर्थात शब्दों और वाक्यों की रचनाशैली में समानता देखी जाती है। साथ ही भाषा की भौगोलिक समीपता भी देखी जाती है। विश्व के भाषाओं को परिवार के आधार पर लगभग 14 भाषा परिवारों में बांटा गया है:- 

  1.  द्रविड़
  2.  चीनी
  3.  समेटिक
  4.  हेमेटिक
  5.  आग्नेय
  6.  मूराल
  7.  अल्टाइक
  8.  बाँदू
  9.  अमरीकी
  10.  काकेशष
  11.  सूडानी
  12.  बुशमेन
  13.  जापानी-कोरियाई
  14.  भारोपीय

जबकि भारतीय भाषा को चार प्रमुख भाषा परिवार तथा एक अन्य भाषा परिवार में बांटा गया है:-

  1.  भारोपीय भाषा परिवार (73%) (आर्य)
  2.  द्रविड़ भाषा परिवार (25%) (द्रविड़)
  3.  आस्ट्रिक (आग्नेय) भाषा परिवार (1.3%) (निषाद)
  4.  चीनी-तिब्बती भाषा परिवार (0.7%) ( किरात) तथा एक अन्य:-
  5.  अंडामानी भाषा परिवार

यहां पर हम भारोपीय भाषा को सबसे बाद में देखेंगे क्योंकि भारतीय भाषा का उद्भव भारोपीय भाषा परिवार से हुई है तो उसके बारे में बाद में विस्तृत चर्चा करेंगे तो सबसे पहले द्रविड़ भाषा परिवार देखेंगे।

⇒ हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण विस्तार पूर्वक पढ़ें।

द्रविड़ भाषा परिवार

भारत में लगभग 25% लोगों द्वारा यह भाषा बोली जाती है। यह भाषा भारत के दक्षिणी हिस्सों में बोली जाती है। यह भाषा भारोपीय भाषा परिवार के बाद दूसरी बड़ी भाषायी परिवार है। इस भाषा परिवार में मुख्यतः 4 भाषाएं आती है:- तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम। तमिल मुख्यतः तमिलनाडु प्रदेश में बोली जाती है, मलयालम केरल में बोली जाती हैं, तेलुगू आंध्र प्रदेश तथा कन्नड़ कर्नाटक में बोली जाती है।

द्रविड़ भाषा परिवार भारत के प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी एवं उत्तर पूर्वी हिस्सों में रहने वाले अनेक जनजातीय वर्गों द्वारा द्रविड़ भाषा परिवार की बोलियां बोली जाती है इन वर्गों में मध्य प्रदेश तथा मध्य भारत में गोंड तथा छोटा नागपुर पठार के ओराँव प्रमुख हैं।

उत्तर भारत के भी कुछ कबीलाई भाषाएं भी द्रविड़ भाषा परिवार में आती है। उपरोक्त चारों भाषाओं में तमिल सबसे पुरानी भाषा है इसे शास्त्रीय भाषा भी कहा जाता है। इसकी लिपि ब्राह्मी है। कन्नड़ भाषा कर्नाटक की राजभाषा है एवं कन्नड़ में उच्च कोटि की साहित्य लिखा गया है। ये सभी भाषाएं मुख्य रूप से नर्मदा एवं गोदावरी नदियों के दक्षिणी भाग से लेकर कन्याकुमारी तक बोली जाती है।

इस भाषा परिवार की भाषाएं उतरी श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के सीमांत क्षेत्रों में भी बोली जाती हैं साथ ही उत्तर भारत के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड उड़ीसा के कुछ भागों में भी बोली जाती है। द्रविड़ भाषा परिवार में 153 मातृ भाषाएं हैं जिसमें 17 भाषाएं प्रमुख है।

ऑस्ट्रिक (आग्नेय) भाषा परिवार

इसे ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषा, ऑस्ट्रिक भाषा या आग्नेय भाषा परिवार के नाम से जाना जाता है। यह भाषा दक्षिण पूर्वी एशिया का एक बड़ा भाषा परिवार है। यह भाषा भारत और बांग्लादेश में कहीं-कहीं छिटपुट बोली जाती है तथा चीन के भी दक्षिण के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है।

भारत में इस भाषा के बोलने वालों की संख्या 1.37% है। भारत में कुछ अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा यह भाषा बोली जाती है। ऑस्ट्रिक भाषा परिवार मुख्य रूप से भारत में झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में बहुलता से बोली जाती है। इस भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा संथाली है जो एक आदिवासी जनजाति समुदाय द्वारा सबसे अधिक बोली जाती है। इस भाषा परिवार की अन्य मुख्य भाषाओं में हो, मुण्डारी, खड़िया इत्यादि भाषाएं हैं।

चीनी-तिब्बती या किरात भाषा परिवार

भारत में इस भाषा परिवार की बोलने वालों की संख्या 0.7 प्रतिशत है। भारत में चीन- तिब्बती भाषा परिवार को प्रमुख तीन शाखाओं में बांटा गया है:-

भारोपीय भाषा परिवार

  • भोटिया वर्ग परिवार में लद्दाखी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है। दूसरे नंबर में सिक्किमी है। हिमालयी भाषा वर्ग में किनौरी बोलने वालों की संख्या अधिक है।
  • उत्तरी असामी शाखा में मिरी बोलने वालों की संख्या अत्यधिक है।
  • चीनी-तिब्बती भाषा परिवार की असमी मंयामारी शाखा को पांच भागों में बांटा गया है जिसमें नगा वर्ग की संख्या सबसे अधिक है। असमी मंयामारी भाषा परिवार में मणिपुरी बोलने वालों की संख्या अधिक है तथा सारो, बारो, त्रिपुरी, मिकिरी तथा लुशाई (मिजो) इत्यादि बोलियां भी इसी भाषा परिवार से संबंध रखते हैं।

अंडामानी भाषा परिवार

यह भारत में सबसे छोटी भाषाई परिवार है इसकी खोज हाल ही में कुछ समय पूर्व मशहूर भाषा विज्ञानी प्रोफ़ेसर कविता अन्नी द्वारा की गई। इस भाषा परिवार में अंडमान एवं निकोबार दीप समूह में बोली जाने वाली भाषाएं आती है। इसके अंतर्गत आने वाली प्रमुख भाषाएं हैं:- अंडामानी, ग्रेट अंडामानी, ओंगे, जरवा इत्यादि।

पढ़ें:- देवनागरी लिपि किसे कहते हैं? देवनागरी लिपि की उत्पत्ति कैसे हुई?

भारोपीय भाषा परिवार

यह भाषा परिवार भारत का सबसे बड़ा भाषाई परिवार है लगभग 75% जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली यह भाषा है। इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे:- इण्डो जर्मनिक परिवार, इंडो कैल्टिक परिवार, भारत हित्री परिवार आदि। इनमें से सबसे अधिक प्रचलित नाम है भारोपीय भाषा परिवार।

प्राचीन काल से अब तक के भाषाओं में जैसे:- संस्कृत, ग्रीक, लैटिन, अवेस्ता, जर्मन, फेंच, रूसी, हिंदी, बांग्ला, मराठी, गुजराती, प्राचीन फारसी आदि भाषाएं इसी भाषा परिवार से संबंध रखने के कारण इसे भारोपीय (भारत व यूरोपीय) भाषा परिवार का नाम दिया गया है।

भारोपीय भाषा परिवार की भाषाओं को ध्वनियों के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया गया है:-

  •  केतुम
  • सतम

केतुम

केतुम वर्ग के 5 शाखाएं हैं:-

  • कैल्टिक
  • जर्मनिक
  • लैटिन
  • ग्रीक
  • तोख़ारी

कैल्टिक

इसके अंतर्गत आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड आदि क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाएं आती है।

जर्मनिक (ट्यूटॉनिक)

इसके अंतर्गत आइसलैंड, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, इंग्लैंड, जर्मनी, हॉलैंड, बेल्जियम आदि के क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाएं आती है।

लैटिन

 इसके अंतर्गत इटली, रोम, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल आदि में बोली जाने वाली भाषाएं आती है।

ग्रीक

यूनान, युगोस्लावकिया, बुल्गारिया, अल्बानिया, साइप्रस में बोली जाने वाली भाषाएं आती है। यह भाषा संस्कृत से मिलती जुलती है। समास और तीनो लिंगो (स्त्रीलिंग, पुलिंग और नपुंसकलिंग) का प्रयोग ग्रीक में भी किया जाता है

तोखारी

यह भाषा मध्य एशिया के तुरकान प्रदेश में लगभग ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी – ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी तक बोली जाती थी। यह भाषा भी संस्कृत के निकट की है। तोखारी में भी संधि, विभक्ति और शब्द समूह में समानताएं देखने को मिलती है।

सतम

सतम वर्ग में भी 5 शाखाएं हैं:-

  • इलीरियन
  • बाल्टिक
  • स्लाव
  • आर्मीनियन
  • आर्य

इलीरियन

इसके अंतर्गत अल्बानिया और यूनान के क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाएं आती है। इसकी प्रमुख भाषा अल्बेनियन है।

बाल्टिक

इसमें लिथुआनिया तथा लाटविया के आसपास के क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाएं आती है तथा यहां की प्रमुख भाषा लिथुआनियन तथा लोटिरश है।

स्लाव

इसे 4 भाग में बांटा गया है:- (1) पूर्वी भाग में रूसी, (2) दक्षिणी भाग में श्वेत रूसी एवं यूक्रेन में लघु रूसी, (3) पश्चिमी भाग में पोलैंड में पॉलिश, चेकोस्लोवाकिया में चेक, (4) दक्षिणी भाग में बुल्गारिया में बुल्गारियन, युगोस्लावकिया में सर्बो क्रोशियन इत्यादि।

आर्मीनियन

इसके अंतर्गत दो बोलियां आते हैं:- यूरोप के इस्तांबुल तथा एशिया में अराराट।

आर्य

इसे भारत (इण्डो)-ईरानी शाखा भी कहा जाता है। आर्य भाषा की तीन उपशाखा है:- (1) भारतीय आर्य भाषा (इण्डो आर्य) (2) ईरानी तथा (3) दरदी।

भारतीय आर्य भाषा से ही हिंदी भाषा की उत्पत्ति हुई है। इसे हम आगे विस्तार से देखेंगे।

ईरानी की उपशाखा में 4 बोलियां बोली जाती है:- फारसी, पस्तो, बलूच और पामिरी।

दरदी वर्ग में दरदी, शिना, कोहिस्तानी तथा कश्मीरी भाषाएं आती है। कश्मीरी भाषा सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।

चूँकि आर्य भाषा से हिंदी भाषा की उत्पत्ति हुई तो हमें यहां पर (भारतीय आर्य भाषा) इंडो आर्य भाषा को विस्तार में देखना होगा:-

भारतीय आर्य भाषा (इण्डो आर्य) का इतिहास

आर्य भाषा की शुरुआत भारत में आर्यों के आने के बाद हुई। आर्यों से पूर्व भी कई जातियां भारत में आ चुकी थी जिससे उनकी भाषाओं का भी आर्य भाषाओं में अमिट छाप छोड़ी। कई जातियां जो आर्यों से पूर्व भारत में आई जिनमें कुछ प्रमुख हैं।

  •  नेग्रिटो
  •  ऑस्ट्रिक
  •  किरात
  •  द्रविड़

नेग्रिटो भारत में आने वाले जातियों में सबसे प्राचीनतम जाती थी। यह मूलतः अफ्रीका वासी थे एवं इन्होंने दक्षिण अरब, ईरान से होते हुए भारत आए तथा पूरे भारत में फैल गए तथा इनमें से कुछ असम, वर्मा होते हुए अंडमान चले गए। वर्तमान में ये फिलीपीन, दक्षिणी बलूचिस्तान तथा दक्षिणी भारत की तमिल बोली बोलने वाली, असम के मंगोली किरातों तथा  अंडमान में ही ये जाति बची है। इनकी भाषा का कोई विशेष प्रभाव भारतीय आर्य भाषाओं में नहीं पड़ा।

ऑस्ट्रिक जाति के लोग नेग्रिटो के बाद भारत आए। ये दक्षिणी चीन एवं हिंद चीन के निवासी थे एवं ये असम के रास्ते भारत में प्रवेश किए लेकिन कुछ विद्वान इसका खंडन करते हैं। और अब इनका मूल स्थान भूमध्य सागर माना जाता है। तथा ये इराक, ईरान होते हुए भारत आए तथा इंडोनेशिया से होते हुए ऑस्ट्रेलिया चले गए। ऑस्ट्रेलिया में अभी भी इस भाषा के लोग निवास कर रहे हैं।

हमने पहले देखा कि ऑस्ट्रिक भाषा परिवार की बोली भारत की कोल, मुंडा, खासी, निकोबारी आदि भाषाएं ऑस्ट्रिक भाषा परिवार की है। ऑस्ट्रिक भाषाओं ने भारतीय आर्य भाषाओं खासकर पूर्वी भारत की भाषाओं को विभिन्न रूपों में प्रभावित किया। कुछ शब्द जैसे:-कार्पास, कदली, बाण, गंगा, लिंग, कम्बल मूलतः ऑस्ट्रिकों से ही लिया गया है।

किरात जाति ऑस्ट्रिकों के बाद भारत आई। यह मंगोल थे तथा यांगटीसीक्यांग नदी का मुहाना इनका निवास स्थान था। इन्हीं की एक शाखा चीनी सभ्यता की निर्माता थी। एक शाखा भारत में आकर उत्तरी पहाड़ी भागों, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, असम, बंगाल, उड़ीसा तक फैल गई। इनकी भाषा गारो, बोडो, नागा, कुकीचिन, लेपचा तथा नेवारी है। ये ऑस्ट्रिकों से अधिक प्रभावित हुए तथा इनके बाद द्रविड़ जाति आए जो इनसे (किरात से) प्रभावित हुए।

द्रविड़ जाति का मूल स्थान अफ्रीका बताया जाता है यहां से भूमध्य सागर होते हुए इराक तथा अफगानिस्तान से लेकर पूर्वी भारत में आकर फैल गए। इनके प्रमाण हमें लोथल तथा कालीबंगन से मिलते हैं। पूर्वी भारत में भी इनके होने का भाषिक प्रमाण मिले हैं। वर्तमान में तमिल, तेलुगु, कन्नड़ तथा मलयालम के अलावा भी तुलु, कोडगु, टोडा, गोंड, ओराँव (झारखंड), खन्द (उड़ीसा), ब्राहुई (बलूचिस्तान) तथा माल्तो (राजमहल की पहाड़ियां) इनके बहुत बड़े भाषा क्षेत्र के अवशेष हमें देखने को मिलते हैं।

भाषा के क्षेत्र में देखा जाए तो आर्य भाषाओं पर द्रविड़ भाषा का प्रभाव पर्याप्त रूप से मिलता है। तीन तरह के प्रभाव हमें देखने को मिलते हैं:- ध्वनि, व्याकरण तथा शब्द। द्रविड़ों के आने के बाद आर्य भाषा में ‘ट’ वर्ग का विकास हमें देखने को मिलता है।

व्याकरणिक क्षेत्र में भी संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग देखने को मिलता है। द्रविड़ों से भारतीय आर्य भाषाओं से बहुत से शब्द आए हैं जैसे:- कला, नाना (अनेक), पुष्प, बीज, रात्रि, झड़ी (वर्षा की) सीप आदि।

भारत में आर्यों का आगमन

भारत में आर्य लगभग 1600 ईस्वी पूर्व में ईरानियों तथा दरद (जो कि हम पूर्व में भी पढ़ चुके हैं) भारत के पश्चिमोत्तर सीमा से आए। इस पर भी विद्वानों में मतभेद है हार्नले का मानना है कि आर्य दो बार करके भारत में आए। पहली शाखा मध्य देश में आकर बसी तो दूसरी शाखा पहली शाखा को खदेड़ कर उनका स्थान ले लिया। अब पहली शाखा चारों ओर (पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) फैल गई।

हार्नले का मानना है कि जो पहली शाखा थी क्योंकि अब चारों और बिखर गए इसलिए यह बाहरी हो गए तथा बाद वाली शाखा (भीतरी) आर्य कहलाए। हार्नले ने परवर्ती अर्थात बाद वाले शाखा को ही वैदिक संस्कृति के निर्माता कहा है।

इस मत को हार्नले के साथ ग्रियर्सन का नाम जोड़कर हार्नले-ग्रियर्सन का दो आक्रमणों वाला सिद्धांत कहा गया है। लेकिन ग्रियर्सन इस सिद्धांत का खंडन करते हैं और कहते हैं कि अलग-अलग आक्रमणों की कल्पना अनावश्यक है। जबकि इन्होंने भी आर्य भाषा का वर्गीकरण दो वर्ग में किया था:- एक बाहरी और दूसरा भीतरी। तथा यह भी कहा कि दोनों भाषाएं एक दूसरे से अलग है। बाहरी शाखा की भाषाएं दरद से मिलती जुलती है। अतः बाहरी शाखा एवं दरद एक ही वर्ग के हो सकते हैं।

भारत में 1500 ईसा पूर्व के आसपास भारतीय आर्य भाषा का प्रारंभ हुआ है। अर्थात लगभग साढ़े तीन हजार के लंबे समय को तीन कालों में बांटा जाता है:-

 भारतीय आर्य भाषा

  •  प्राचीन आर्य भाषा (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व)
  •  मध्यकालीन आर्य भाषा (500 ईसा पूर्व से 1000 ईस्वी)
  •  आधुनिक भारतीय आर्य भाषा (1000 ईस्वी से अब तक)

भारतीय भाषा (इण्डो आर्य) भाषाओं को उत्तरी-पश्चिमी, दक्षिणी, पूर्वी मध्य, मध्य तथा उत्तरी वर्गों में विभाजित किया जाता है जैसे:- उत्तर-पश्चिमी वर्ग में लहंदा, पंजाबी, कच्छी एवं सिंधी भाषाएं हैं। दक्षिणी वर्ग में मराठी एवं कोंकणी भाषा है। पूर्व में उड़िया, बिहारी, बंगाली, असमिया इत्यादि भाषाएं आती है। बिहारी भाषा की बोलियों में मैथिली, भोजपुरी एवं मागधी है।

पूर्वी मध्य में 3 मुख्य उप वर्ग है:- अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी। मध्यवर्ग की शाखा में हिंदी, उर्दू, गुजराती, राजस्थानी भाषाएं आती है इसमें राजस्थानी में कई और अन्य बोलियां है जैसे:- मारवाड़ी, मेवाड़ी एवं मालवी। उत्तरी भाषा वर्ग में नेपाली, मध्य पहाड़ी एवं पश्चिमी पहाड़ी प्रमुख है। रोमा (घुमंतू) समुदाय में तीन तरह की बोलियां हैं:- जिसी, पश्चिमी पहाड़ी और कुलुई।

भारतीय आर्य परिवार की भाषाएं भारत के उत्तरी मैदान में केंद्रित है चूँकि इनका विस्तार प्रायद्वीपीय पठार में  कोंकण तट जैसे दूरवर्ती प्रदेशों तक है। इस भाग के मध्य में हिंदी प्रमुख भाषा है जो भारत के बहुसंख्यक द्वारा बोली जाती है। हिंदी भाषी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा दिल्ली है। हिंदी का उर्दू से अन्योन्याक्षात्म संबंध है तो उर्दू का भी प्रभाव इन क्षेत्रों में देखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहा, आंध्र प्रदेश, तथा कर्नाटक में उर्दू प्रमुखता से बोली जाती है।

भाषा परिवार

 उत्तर-पश्चिम वर्ग की बोलियां जैसे:- कच्छी, सिंधी एवं पंजाबी मुख्यतः पश्चिमी भारत में पाई जाती है। दक्षिणी वर्ग की मराठी एवं कोंकणी दक्षिण भारत में पाई जाती है। पूर्वी वर्ग की उड़िया, बंगाली एवं असमिया मुख्यतः पूर्वी भारत में बोली जाती है। मध्यवर्ग की भाषाएं पंजाब, राजस्थान तथा गुजरात में पाई जाती है तथा उत्तरी वर्ग में हिमालयी एवं उप हिमालयी क्षेत्रों में मुख्यतः पहाड़ी एवं नेपाली बोलियां पाई जाती है।

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भारोपीय भाषा परिवार की विशेषताएं

  • यह विश्व के सबसे बड़े भाग में बोला जाता है। अर्थात क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़े भूभाग में बोली जाने वाली भाषा परिवार है।
  •  दूसरे भाषा परिवारों की अपेक्षा सबसे अधिक इस भाषा परिवार की बोलियों की संख्या है।
  •  भारोपीय भाषा परिवार की बोलियों से साहित्य की रचना काफी अधिक हुई है अर्थात साहित्यिक रचना के क्षेत्र में यह भाषा परिवार अग्रणी है।
  •  इस भाषा परिवार की भाषाओं एवं बोलियों का विश्लेषण विश्व में सर्वाधिक हुआ है।
  •  भाषा विज्ञान के विकास में इस भाषा परिवार के विद्वानों ने काफी योगदान दिया है। इस भाषा परिवार के महत्वपूर्ण विद्वान- पाणिनी, भतृहरि, सुश्रुत, ब्लूमफील्ड आदि ने सर्वाधिक कार्य किया है।

हिंदी भाषा का उद्भव और विकास विस्तार पूर्वक जानें।

निष्कर्ष

हमने आज के लेख में भारतीय भाषा परिवार के वर्गीकरण तथा उससे संबंधित सभी तथ्यों को देखा। इससे हमें पता चलता है कि भाषा का वर्गीकरण भाषा की प्रकृति एवं समानता के आधार पर भौगोलिक दृष्टिकोण से किया गया है एवं भारोपीय भाषा परिवार सबसे बड़ा भाषा परिवार है और पूरी दुनिया के लगभग 75% लोगों द्वारा भारोपीय भाषा परिवार के किसी ना किसी भाषा और बोलियों से संबंध रखते हैं।

भारत में बोली जाने वाली भाषा भी भारोपीय भाषा परिवार से अधिकतम संबंध रखते हैं। हिंदी,पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, मगधी, बिहारी जैसे कई भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार से ही संबंध रखते हैं।


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