History

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का भारत आक्रमण, उद्देश्य, उपलब्धि एवं प्रभाव

भूमिका

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने भारत में 17 बार आक्रमण किया और उसने आक्रमण कर बस धन-संपत्ति लूटा और मंदिरों को नुकसान पहुंचाया। इन आक्रमणों में जीत हासिल करने के बावजूद वह यहां अपना साम्राज्य कभी स्थापित नहीं किया। महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) के द्वारा किए गए इन आक्रमणों के उद्देश्य, उपलब्धि एवं प्रभाव के बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं।

Table of Contents

प्रथम अरब आक्रमण में हमने पढ़ा था कि सिंध एक शक्तिशाली साम्राज्य था इसमें मकरान, कंदहार, सिस्तान, मुल्तान और कश्मीर तक फैली पूरी सिंधु घाटी आ जाती थी। यहां पर चाच नामक एक ब्राह्मण का कब्जा था राजा चाच के मृत्यु के बाद उनका बेटा दाहिर सेन राज सत्ता संभाली। उम्मयद खलीफा (अरब देश) के आदेश पर मोहम्मद बिन कासिम ने 713 में मकरान के रास्ते अस्थल मार्ग से सिंध पर हमला किया था। 3 दिनों की भयंकर युद्ध के बाद राजा दाहिर मारा गया।

अंततः सिंधु पार मुल्तान तक के इलाके पर मोहम्मद बिन कासिम का कब्जा हो गया था। यहां लगभग 715 तक मोहम्मद बिन कासिम ने शासन किया एवं यहां काफी राजनीति और धार्मिक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। जैसे गैर इस्लामिक लोगों को जिम्मी की दर्जा दिया गया। सभी धर्म बौद्ध, हिंदू आदि के धार्मिक स्थलों का निर्माण, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र का आदान-प्रदान, राजनीति में भारतीय हिंदुओं को शामिल किया गया।

हलांकि अरबों ने सिंध के बाहर भी हमले किए पर असफल रहे क्योंकि राजस्थान और पश्चिम भारत के गुर्जर प्रतिहार तथा गुजरात के चालुक्य काफी शक्तिशाली थे। यह अरबों को पैर पसारने से रोक दिए। गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के विघटन के बाद ही हमें भारत में राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिलती है। साथ ही प्रभुत्व के संघर्ष के लिए नए दौर की शुरुआत भी हो जाती है।

इसी कारण हम देखते हैं कि अरबों के बाद मध्य एशिया में लगभग 9वीं शदी में अब्बासी खलीफा के पतन के बाद तुर्कों का उदय हुआ और ये भारत की उत्तर पश्चिम सीमा पर आक्रमक और प्रसारवादी नीति के कारण पैठ जमाने में सफल रहे। इन सभी घटनाओं को भारतीय नज़रअंदाज़ करते रहे क्योंकि इस समय उत्तर भारत में कोई भी ऐसी एकछत्र शासन नहीं थी जो इनका सामना कर सके।

महमूद गजनवी mahmud of ghazni

 

 

 

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) कौन था? (सामानी वंश 998-1030 ईस्वी)

9 वीं शदी के अंत में आक्सास के पार के क्षेत्र तथा खुरासान और ईरान के कुछ भागों पर सामानियों का शासन था ये ईरानी मूल के थे। ये हमेशा अपने आसपास के गैर मुस्लिम तुर्क कबिलों से लड़ते रहते थे इसी संघर्ष के कारण एक प्रकार के नए सैनिकों के झुंड का उदय हुआ जिन्हें गाजी कहते थे। और इन्हें मुसलमान काफिर कहते थे

सामानियों की लड़ाई मुसलमानों से धर्म की रक्षा के लिए भी होती थी और राज्य की रक्षा के लिए। कालांतर में ये तुर्क इस्लाम स्वीकार कर लिए। तथा अब ये इस्लाम की रक्षा और राज्य की रक्षा की लड़ाई थी।

अतः 971 ईस्वी में खिलाफत कमजोर हुई जिसका फायदा उठाकर इस्माइल ने बुखारा में स्वतंत्र सामानी वंश नींव डाली। सामानी सूबेदारों में एक तुर्क गुलाम भी था जिसका नाम अल्पतगीन था। अल्पतगीन महत्वाकांक्षी था। 963 ईस्वी में सामानी वंश के कमजोर उत्तराधिकारी अबू बक्र लाविक को हटाकर गद्दी हथिया लिया। कालांतर में 977 में उसका उत्तराधिकारी सुबुक्तगीन हुआ। इन्होंने ही गजनी वंश की नींव रखी। इनके ससुर अल्पतगीन के मृत्यु होने पर गजनी का राज्य इसे मिला था। यहीं इन्होंने गजनी वंश की नींव रखी थी।

कहा जाता है 985-86 में इन्होंने हिंदू राज शाही जयपाल को पराजित किया था। सुबुक्तगीन के साथ-साथ हिंदूशाही शासकों के संघर्ष का भारत के भावी इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। जयपाल अपनी सैन्य शक्ति और अपने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था से पूर्णतया अस्वस्त था तथा “खैबर दर्रा” जिसे “भारत के प्रवेश द्वार” के रूप में जाना जाता है इस पर जयपाल का पूर्ण नियंत्रण था। यह दर्रा सामरिक महत्व रखता था। अतः इसकी रक्षा करना अनिवार्य था।

इन्हीं सभी कारणों से जयपाल ने गजनी पर भी दो बार आक्रमण किया था। कालांतर में जयपाल की तुर्कों के हाथों निरंतर पराजय होने के कारण सुबुक्तगीन का खैबर दर्रे पर नियंत्रण हो गया जिससे भारत की उत्तर पश्चिम सीमा की सुरक्षा को गहरा आघात पहुंचा। अब खैबर दर्रे की भारतीय सीमा पर अपना सुदृढ़ नियंत्रण स्थापित कर इसका स्वामी बन बैठा। इसी कारण महमूद गजनवी के लिए भारत पर आक्रमण करना आसान हो गया।

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) (998-1030)

  •  997 में सुबुक्तगीन के मृत्यु के बाद उसके दो पुत्रों इस्माइल और महमूद में उत्तराधिकार का युद्ध हुआ। महमूद विजयी होकर 998 में शासक बना।
  •  केवल 1 वर्ष में उसने बगदाद के खलीफा अल कादिन बिल्लाह से अफगानिस्तान और खुरासान के शासक के रूप में मान्यता प्राप्त कर ली।
  •  खलीफा ने उसे अमीन उल मिल्लत (मुसलमानों का रक्षक) एवं अमीन उद्दौला (साम्राज्य के सर्वाधिक विश्वसनीय व्यक्ति) की उपाधियों से नवाजा।
  •  इस प्रकार महमूद ने खलीफा के प्रति प्रत्यक्ष निष्ठा से अपने पूर्व के समानी शासकों के समान प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली।
  •  खलीफा के दूत द्वारा राज्याभिषेक के समय महमूद ने प्रतिज्ञा की कि वह काफिरों (गैर मुसलमान) के विरुद्ध जिहाद (धर्म युद्ध) आरंभ करेगा और भारत (मूर्तिपूजकों की भूमि) में वार्षिक सैन्य अभियानों का संचालन करेगा।

इसे भी पढ़ें:- सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण

इन्हें भी पढ़ें:- गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का भारत पर आक्रमण

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने 1000-1027 तक भारत में 17 बार सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया था। इनके निरंतर आक्रमण से ऐसा लगता है कि वह काफी शक्तिशाली, साहसी एवं महत्वाकांक्षी आक्रमणकारी था। महमूद गजनवी काफी योजनाबद्ध तरीके से हर आक्रमण का तैयारी कर लेता था। वह लगभग सितंबर-अक्टूबर में भारतीय वर्षा ऋतु के समाप्ति पर गजनी से भारत के लिए रवाना होता था और शीत ऋतु से लेकर अगली वर्षा ऋतु के आरंभ होने से पूर्व मार्च-अप्रैल में धन लूटकर गजनी लौटता था।

महमूद गजनवी के 17 आक्रमण 

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) को अपने साम्राज्य (मध्य एशिया) को सुदृढ़ और शक्तिशाली बनाने के लिए धन की जरूरत थी जिसकी पूर्ति के लिए वह भारत पर 17 बार आक्रमण किया। आक्रमण का मुख्य उद्देश्य ही था- धन प्राप्ति।

अतः आइए हम महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) के भारत आक्रमण को क्रमबद्ध तरीके से देखते हैं।

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का जयपाल के साथ युद्ध (1000-1001)

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने गजनी पर अपना नियंत्रण सुदृढ़ कर भारतीय सीमा की ओर बढ़ा। 11 वीं सदी के शुरुआत में ही उसने खैबर दर्रा से पार होते हुए पेशावर के निकट पंजाब में हिंदू शाही शासकों के दुर्गों पर कब्जा कर लिया। कुछ दिनों तक रुक कर भारतीय मैदानों का समुचित आकलन कर शक्तिशाली सेना वहां पर नियुक्त कर वापस गजनी लौट गया।

पुनः 1 वर्ष बाद 1001 में 15 हजार अश्वरोही सैनिकों एवं गाजियों की विशाल टुकड़ी के साथ जयपाल के विरुद्ध पेशावर पर हमला बोला। जयपाल भी अपने सेना के साथ डटकर सामना किया। भयंकर युद्ध के बाद वह हार गया एवं बंदी बना लिया गया। जयपाल का पुत्र आनंदपाल को अपने पिता को छुड़ाने के लिए काफी धनराशि देना पड़ा था। इसे जयपाल ने अपना अपमान समझकर अग्नि में आत्मदाह कर लिया था।

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) अकूत धन संपत्ति के साथ वापस गजनी लौटा। इस लड़ाई में जीत ने उसे और अधिक प्रेरित किया। अब वह और भारतीय क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता था।

गजनवी (mahmud of ghazni) का भटिंडा पर आक्रमण (1004)

सिस्तान (1002-04) विजय (यह ईरान का एक बड़ा प्रांत था, इसे अपने साम्राज्य में मिलाने के बाद) के बाद महमूद 1004 में भारत के तीसरे सैन्य अभियान के लिए बलूचिस्तान होते हुए रवाना हुआ। सिंधु नदी पार किया और भटिंडा जो खैबर दर्रा एवं मुल्तान के व्यापार मार्ग पर स्थित था। यहां के दुर्ग की सेना ने कठोर विरोध किया अंततः बीजी राय हार गए। बिजी राय यहां के शासक थे। इन्होंने आत्मसमर्पण करने से बेहतर आत्महत्या करना समझा और आत्महत्या कर ली। महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) सिंधु नदी के किनारे किनारे खैबर दर्रा से होकर गजनी लौट गया।

मुल्तान पर आक्रमण (1005-06)

यह महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का चौथा सैन्य अभियान था मुल्तान के विरुद्ध। उस समय मुल्तान में करमटिया शासक अब्दुल फतह दाऊद शासन कर रहे थे इन्हें तुर्क विधर्मी कहते थे। पेशावर के शासक जो जयपाल के मृत्यु के बाद आनंदपाल था इन्होंने आक्रमणकारियों को अपने राज्य में रास्ता देने से मना कर दिया। फिर भी महमूद गजनवी ने इसके राज्य को रौंदते हुए आगे बढ़ा एवं दाऊद (मुल्तान) ने बिना लड़े आत्मसमर्पण कर दिया और अपना खजाना, बहुमूल्य वस्तुएं देकर उसे (गजनवी को) प्रसन्न किया। गजनवी (mahmud of ghazni) ने वार्षिक कर का भुगतान और सुन्नी संप्रदाय के सिद्धांत का पालन करने का वादा कर दाऊद को पुनः मुल्तान पर शासन की अनुमति दे दी।

गजनी लौटते समय गजनवी (mahmud of ghazni) ने एक हिंदू व्यक्ति नवासा शाह को जो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था उसे अपने भारत के विजय किए हुए प्रदेशों में नियुक्त कर वापस चला गया।

नवासा शाह के खिलाफ आक्रमण (1007-08)

चूँकि इस समय खुरासान में तुर्कों ने आक्रमण कर दिया था अतः 2 वर्ष तक महमूद वहां व्यस्त रहने के कारण लंबे समय तक भारत नहीं आ सका। इसी का फायदा उठाकर नवासा शाह ने हिंदू धर्म पुनः स्वीकार कर लिया और खुद को स्वतंत्र शासक बना दिया। मुल्तान के दाऊद का भी इसे साथ मिला। महमूद गजनवी ने 1007-08 में नवासा शाह के विरुद्ध आक्रमण कर नवासा शाह को बंदी बना लिया।

आनंदपाल (वैहिंद) पर विजय और नगरकोट की लूट (1008-09)

हिंदू राजशाही शासक जयपाल के मृत्यु के बाद आनंदपाल शासक बना एवं इन्होंने महमूद के पंजाब में घुसने के प्रयासों का गंभीर प्रतिरोध किया। महमूद (mahmud of ghazni) लगातार हिंदू शाही राज्य के सीमांत प्रदेशों के छोटे-छोटे सरदारों को पराजित कर रहा था ऐसे में आनंदपाल भी बदले की भावना से प्रेरित होकर उसके मार्ग में अवरोध पैदा करता था। अतः 1008-09 में महमूद ने आक्रमण कर दिया। इस समय आनंदपाल भी सैन्य से सुसज्जित होकर तैयार सामना करने के लिए तैयार था।

फरिश्ता के अनुसार- उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, कन्नौज, दिल्ली व अजमेर के शासकों ने आनंदपाल को सैनिक व आर्थिक सहायता भेजी। भारतीय नारियों ने भी अपने आभूषण बेच इसमें योगदान दिया।

सिंधु नदी के तट पर दोनों सेनाओं का सामना हुआ। युद्ध में आनंदपाल जीत रहा था लेकिन अंत में उसका हाथी अनियंत्रित हो गया और उसे लेकर युद्ध भूमि से भाग खड़ा हो गया। हिंदू योद्धाओं के मध्य भगदड़ मच गई उन्हें लगा कि हमारा राजा पलायन कर गया और युद्ध समाप्त हो गई।

इस गौरवशाली विजय के पश्चात महमूद गजनवी ने वैहिंद सहित घाटी के पूरे ऊपरी भाग पर नियंत्रण कर भागे हुए हिंदू सैनिकों का पीछा किया एवं नगरकोट (भीम नगर, आधुनिक कांगड़ा) पर हमला बोला। एवं यहां के मंदिरों को लूटा। कहा जाता है कि केवल इस मंदिर से 7 लाख सोने के ढले सिक्के, 700 मन सोने-चांदी की सिल्लियां और हीरे जवाहरात और 20 मन बहुमूल्य पत्थर, मोती आदि प्राप्त हुए थे। इस युद्ध ने महमूद गजनवी को धर्म योद्धा और हिंदुस्तान (एशिया की स्वर्णिम गौरैया) के विजेता के रूप में विख्यात कर दिया। महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने उत्तरी भारत में अपना प्रभुत्व जमा लिया एवं आगे के दो दशक तक यहां उसका आतंक बना रहा।

नगरकोट की मंदिर से मिले अकूत धन संपत्ति से महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) को पूर्ण विश्वास हो गया कि भारत के अन्य मंदिरों से भी हीरे जवाहरात मिल जाएंगे अतः इन की लालच बढ़ती गई और अन्य मंदिरों पर भी आक्रमण करने की योजना बनाई।

गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) के पतन के बाद भारत की स्थिति के बारे में जानने के लिए क्लिक करें

नारायणपुर (राजपूताना) पर आक्रमण (1009)

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का यह सातवां सैन्या आक्रमण था। 1009 ईस्वी में नारायणपुर (अलवर के निकट, राजस्थान) के शासक पर हमला कर पराजित किया। इन्होंने अपना समस्त कोष एवं बहुमूल्य वस्तुएं गजनवी को दे दी एवं महमूद को वचन दिया कि पड़ोसी शासकों के विरुद्ध भावी आक्रमणों में सेना और रसद की सहायता प्रदान करेगा।

मुल्तान पर आक्रमण (1010)

इस समय मुल्तान का शासक राजा दाऊद जो (1005-06) कि महमूद के आक्रमण में असफल होकर वार्षिक कर एवं सुन्नी संप्रदाय के सिद्धांतों को पालन करने की बात कही थी। उससे मुकर गया और अपनी मनमानी करने लगा था। अतः महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने 1010 में मुल्तान पर हमला कर उसे बंदी बना लिया और काफी लूटमार करने के बाद यहां एक तुर्की सैन्य अधिकारी नियुक्त कर वापस गजनी चला गया।

थानेश्वर पर आक्रमण (1012-1013)

थानेश्वर वर्तमान कुरुक्षेत्र (हरियाणा) का नाम था। यह एक पवित्र शहर था। यह एक स्वतंत्र राज्य था। महमूद (mahmud of ghazni) इस बात से अवगत था की चेतावनी देने पर इस पवित्र शहर की रक्षा में लाखों लोग जान देने के लिए आ जाएंगे अतः इस अभियान को गुप्त रखते हुए शिवालिक पहाड़ियों के समानांतर कूच किया। रास्ते में एक भारतीय सरदार राजाराम ने रोकने की कोशिश की पर उसकी हार हो गई। एवं गुप्त रूप से थानेश्वर पर हमला कर दिया। पड़ोसी राज्यों के राजाओं को थानेश्वर की रक्षा के लिए पहुंचते, इससे पूर्व ही सारा शहर नष्ट कर दिया। अतः कहा जा सकता है कि महमूद तूफान की तरह अपने लक्ष्य को पा लिया। महमूद की गजनी वापस लौटते समय कोई भी हिंदू शासकों की सेना पहुंच न पाई।

नंदाना पर आक्रमण (त्रिलोचन पाल की पराजय) (1014)

1008-09 में वैहिन्द की पतन (जहां आनंदपाल का शासन था) के बाद आनंदपाल ने नंदाना नामक जगह पर अपना छोटा सा राज्य स्थापित किया तथा आनंदपाल की मृत्यु 1012 ईस्वी में हो गई थी एवं महमूद ने हिंदू शाही राजाओं को पूरी तरह नष्ट करने की सोची। 1013-14 में विशाल घुड़सवार सेना के साथ नंदाना के लिए रवाना हुआ। इधर आनंदपाल के पुत्र त्रिलोचनपाल दुर्ग की रक्षा का भार अपने पुत्र भीम पाल को दिया और स्वयं कश्मीर की पहाड़ियों की ओर भाग गया। अपनी समस्त शक्ति का इस्तेमाल कर भीम पाल ने लड़ाई लड़ी अंतोगत्वा महमूद की सेना के आगे हार मान ली। एवं वह भी कश्मीर पहाड़ी की ओर भाग खड़ा हुआ।

अब कुछ ही बचे हुए शाही सैनिक उस समय तक संघर्ष करते रहे जब तक महमूद (mahmud of ghazni) ने दुर्ग के दीवारों को तोड़कर नष्ट करने की चेतावनी न दिया था। इसके बाद एक भारतीय जो इस्लाम स्वीकार किया था उसे नंदाना में गवर्नर नियुक्त किया।

कश्मीर घाटी पर आक्रमण (1015)

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने अपना 11वाँ सैन्य अभियान कश्मीर घाटी पर किया। महमूद ने लोहकोट के दुर्ग की घेराबंदी की लेकिन दुर्ग के सशस्त्र रक्षकों ने भीष्ण युद्ध कर महमूद को घेरा उठाने पर विवश किया साथ ही प्रकृति ने भी साथ नहीं दिया। भीषण हिमपात के कारण ठंड की तीव्रता से महमूद की सेना पस्त हो गई एवं सेना घाटियों एवं पहाड़ियों में रास्ता भटक जाने से यह सैन्य अभियान असफल सिद्ध हो गई।

मथुरा और कन्नौज पर आक्रमण (1016-1018)

महमूद (mahmud of ghazni) की असफलता के बाद उन्होंने गंगा घाटी जहां गुर्जर प्रतिहारों के सरदार राज्यपाल द्वारा शासित प्रदेश कन्नौज पर 12 सैन्य आक्रमण किया। मार्ग में बुलंदशहर के राजा हरदत ने आत्मसमर्पण कर दिया एवं इस्लाम स्वीकार कर लिया। मथुरा के राजा कुलचंद के सैनिकों को महमूद ने महावन की युद्ध में मार डाला। कुलचंद ने अपने पत्नी के साथ आत्महत्या कर अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा की। मथुरा एवं आसपास के इलाके में हजारों मंदिरों को नष्ट किया।

महमूद (mahmud of ghazni) ने गंगा घाटी में भयंकर लूटपाट की एवं कन्नौज पर आक्रमणकारी के आगमन की खबर से गुर्जर प्रतिहार के शासक राज्यपाल कन्नौज से भाग गया। कहा जाता है कन्नौज में उन्होंने 1000 मंदिरों को लूटा एवं नष्ट कर दिया लुटे हुए माल में सोने, चांदी, मूल्यवान वस्तु, पत्थर, हाथी एवं 53000 हिंदु दास ले गए। राज्यपाल को महमूद ने अपने अधीन शासक बनाकर कन्नौज में रख दिया।

महमूद (mahmud of ghazni) के वापस लौटने पर देखा कि कलिंजर के राजा गंण्डा और ग्वालियर के शासक मिलकर राज्यपाल की हत्या कर दी है तो उन्होंने 13वाँ सैन्य आक्रमण कलिंजर और ग्वालियर में किया।

इसे भी पढ़ें:- बेरुबाड़ी संघ मामला (1960)

इसे भी पढ़ें:- केशवानंद भारती मामला (1973)

ग्वालियर और कालिंजर पर आक्रमण

चूँकि ग्वालियर और कालिंजर के राजा यह कह कर कि राज्यपाल (कन्नौज) ने कायरता पूर्ण कार्य (महमूद की अधीनता को स्वीकार कर ली थी) कर देश को बदनाम करने का काम किया। अतः उन्होंने राज्यपाल की हत्या कर दी। महमूद का यह 13वां अभियान था। महमूद (mahmud of ghazni) ने मार्ग पर ग्वालियर दुर्ग की घेराबंदी किया परंतु असफल रहा। ग्वालियर के शासक कीर्तिराज ने नाम मात्र का आधिपत्य स्वीकार कर कुछ उपहार (35 युद्ध के हाथी) देकर मुक्त हो गया।

कालिंजर के राजा गण्डा (चंदेल वंश) ने बहुत बड़ी सैन्य टुकड़ी के साथ महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) को चुनौती दी। गण्डा की सहायता और भी हिंदू सरदार कर रहे थे लेकिन युद्ध के पूर्व ही ये हिंदू सरदार राजा गण्डा को धोखा दे दिए। अंततः राजा गण्डा को भी युद्ध क्षेत्र से भागना पड़ा यहां से महमूद गजनवी को काफी मात्रा में सामग्री, शस्त्र एवं युद्ध हाथी मिले। राजा गण्डा ने कालिंजर के दुर्ग में शरण ली।

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने तुरंत दुर्ग को घेरा लेकिन असफल रहा। चंदेल शासक द्वारा 300 युद्ध हाथियों के प्रस्ताव से घेरा। महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने घेराबंदी हटा लिया। राजा गण्डा के पुत्र विद्याधर ने महमूद के प्रशंसा में कविता लिखकर प्रसन्न कर दिया।

अतः यह कहा जा सकता है कि इस युद्ध में महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) को अधिक सफलता नहीं मिली क्योंकि संधि समझौता के बाद युद्ध खत्म हो गया। वर्षा ऋतु में महमूद और यहां रुकना नहीं चाहता था अतः वह शीघ्र ही गजनी लौट गया।

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का त्रिलोचनपाल पर पुनः आक्रमण एवं हिंदू शाही शासकों का अंत (1022)

कश्मीर घाटी में आक्रमण में असफलता हाथ लगने के बाद महमूद भी उस समय तक शांति से न बैठा जब तक कि हिंदू शाही शासकों को नष्ट न कर दिया। हमने पूर्व में देखा था कि कश्मीर घाटी से वापस आकर त्रिलोचनपाल पंजाब के क्षेत्र जो गजनवी के विनाश लीला से बचे हुए थे यहां आकर पुनः अधिकार कर लिया था। यहां पर आक्रमण से महमूद को असफलता हाथ लगी थी। इस समय त्रिलोचनपाल आधुनिक साहिंद के आसपास कुछ दिनों तक रहने के बाद लाहौर चला गया था। एवं थोड़े दिनों बाद यह जगह हिंदू शाही शासकों की राजधानी बन गई।

पंजाब के लोगों ने भी राजा त्रिलोचनपाल को समर्थन दिया महमूद गजनवी ने 14वाँ सैन्य आक्रमण त्रिलोचन पाल पर किया एवं एक बार पुनः उसे पराजित कर दिया। लाहौर पर महमूद गजनवी का पूर्ण नियंत्रण हो गया। सतलज नदी के किनारे तक समस्त पंजाब अब गजनी का साम्राज्य हो गया।

त्रिलोचनपाल कालिंजर के चंदेल राजा विद्याधर के साथ सैन्य गठबंधन के लिए प्रयास किया। कुछ समय बाद कुछ स्वार्थी व्यक्तियों द्वारा उसकी हत्या कर दी गई। उसका पुत्र भीमपाल की कुछ समय पश्चात मृत्यु के साथ हिंदू शाही वंश का अंत हो गया।

सोमनाथ पर आक्रमण (1925-26)

यह आक्रमण महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का सबसे प्रसिद्ध एवं सफल सैन्य अभियान था सोमनाथ कठियावाड़ से सुदूर दक्षिण में समुद्र के तट पर स्थित यह मंदिर विश्व विख्यात था सोमनाथ एक बंदरगाह भी था एवं यहां के विपुल संपत्ति की कहानी व्यापारियों द्वारा मुस्लिम देश में सुना चुके थे।

अतः महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) धन प्राप्त करने की इच्छा एवं मूर्ति भंजक के रूप में यस पाना चाहता था इसी उद्देश्य को लेकर अपने 30 हजार अश्व रोही सैनिकों एवं और भी योद्धाओं का नेतृत्व करते हुए भारत पहुंचा। वह मुल्तान और अजमेर पार करते हुए राजपूताना के रेगिस्तान से गुजरता हुआ गुजरात पहुंचा। वहां अपनी शक्ति एवं समय बचाने के लिए राजपूतों के साशक्त  दुर्गों को कुछ नहीं किया एवं 1026 की मध्य जनवरी में सोमनाथ पहुंचा। 3 दिन की भयंकर युद्ध के पश्चात अंततः महमूद गजनवी की जीत हुई।

मंदिर की लूटपाट एवं नगर के लूटपाट के बाद नरसंहार खूब किया। मूर्ति भंजक की उपाधि पाने की लालसा ने गजनी को इतना भ्रष्ट कर दिया था कि उन्होंने मंदिर की शिवलिंग को तोड़ने में जरा भी संकोच न किया। सारी संपत्ति लूटने के बाद मंदिर को आग लगाकर ध्वस्त कर दिया।

गजनी लौटते हुए उसने गुजरात की राजधानी अहिंलवाड़ पर बिना युद्ध किए ही उसका अधिपत्य हो गया। इस समय आहिंलवाड़ में चालूक्य के शासक भीमदेव प्रथम का शासन था। महमूद को यहां की जलवायु पसंद आई और वह यहां अपना साम्राज्य निर्माण करने की सोची परंतु सैनिकों द्वारा शीघ्रातिशीघ्र गजनी पहुंचने की इच्छा से भारी विरोध हुआ। भीमदेव के अन्य सरदारों द्वारा भी गजनवी के सेना को क्षति पहुंचाई। सिंधु घाटी के निचली घाटी के जाटों ने भी सेना को लूटा। गजनवी 1027 में गजनी पहुंचा।

सोमनाथ आक्रमण से महमूद गजनवी को विश्वव्यापी ख्याति मिली। इन्होंने अकूत संपत्ति खलीफा को भेंट की जिसके बदले उसे बधाई के साथ-साथ उसके दो पुत्रों को शाही उपाधि मिली।

सिंध के जाटों पर आक्रमण (1027)

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) का यह आक्रमण भारत पर आखिरी आक्रमण था। सन 1027 में महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) सोमनाथ लूट कर लौटते समय सिंधु नदी की निचली घाटी के जाटों ने उन्हें रोकने की कोशिश की थी अतः इनके विरूद्ध यह अभियान था। साथ ही महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने पंजाब के विद्रोहियों के विरुद्ध भी अभियान किया और इन अभियानों का मुख्य मकसद था दंड देना।

इसके बाद महमूद की 50 वर्ष के उम्र में बीमारी से 1030 में मृत्यु हो गई।

इसे भी पढ़ें:- भारत पर अरबों का आक्रमण | मोहम्मद बिन कासिम का भारत पर आक्रमण

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) के आक्रमणों का उद्देश्य एवं उपलब्धि

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) के आक्रमणों से हमें पता चलता है कि वह एक महान विजेता तो था ही और साथ में उसमें साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा भी थी लेकिन उसे साम्राज्य निर्माता नहीं कर सकते। मध्य एशिया के विशाल भूभाग में उनका साम्राज्य तो था लेकिन भारत में किसी भी प्रकार का सत्ता स्थापित नहीं किया। इनका उद्देश्य धन इकट्ठा करना और इसके लिए बड़े नगरों एवं संपन्न मंदिरों को लूटना था।

अतः इन्हीं उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने भारत पर आक्रमण करना शुरू किया और उन्होंने निम्नलिखित उद्देश्य एवं उपलब्धियां हासिल की:-

  •  मथुरा तथा कन्नौज की विजय के बाद उत्तरी भारत में उसका अस्थाई अधिपत्य हो गया लेकिन उसे अपने नियंत्रण में रखने के लिए कुछ भी ठोस कदम नहीं उठाए। पराजित राजाओं ने भी कभी उसकी अधीनता स्वीकार किया और कभी तो अस्वीकार कर दिया और वार्षिक भुगतान भी देना बंद कर दिया। ऐसी स्थिति में भी गजनवी द्वारा कोई जबरदस्ती या गंभीरतापूर्वक कोई कार्यवाही नहीं की गई।
  •  लाहौर तथा मुल्तान के साथ-साथ पंजाब के क्षेत्र लगने के कारण इसे गजनी साम्राज्य में विलय कर लिया। इससे अपने आवागमन के लिए एक अच्छा मार्ग बन गया जिससे वह लूटमार के उद्देश्य को पूरा कर पाया। लाहौर विजय (1021-22) में किया जिससे यह पता चलता है कि साम्राज्य स्थापित करने का उसे मन नहीं था अगर ऐसा होता तो वह सबसे पहले इसे ही विजय कर अपने साम्राज्य में मिला लेता न कि दो दशक तक इंतजार करता।
  •  उनका यह उद्देश्य कि “इस्लाम धर्म का प्रचार करना”। यह संभव न हो सका क्योंकि लूटमार के अभियान से भारतीय जनता के साथ जो इन्होंने व्यवहार किया था असंभव था। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि मध्य एशिया में गजनी साम्राज्य को सुदृढ़ विस्तारित करने के लिए उसे अपार धन संपदा की आवश्यकता थी इसी कारण उसने भारत पर आक्रमण किया। लेकिन कई इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं।

हिंदू मंदिरों पर आक्रमण कर महमूद गजनवी ने अपने दोनों उद्देश्य- संपत्ति की प्राप्ति एवं मूर्ति भंजक के रूप में यश की प्राप्ति की थी।

  •  महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने अपने शत्रुओं के युद्ध के हाथियों की विनाशकारी शक्ति को अप्रभावी करना सीख लिया था। महमूद गजनवी ने युद्ध के हाथियों से काफी प्रभावित था एवं पराजित भारतीय राजाओं से युद्ध हाथियों को विजय के उपहार के रूप में हाथियों को प्राप्त करना इनका शौक बन गया था। अब इनके पास भी 2500 युद्ध के हाथियों की शक्तिशाली सैन्य टुकड़ी थी लेकिन यह भी कहना यहां तक पूर्ण नहीं होगा कि केवल महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने युद्ध हाथियों को प्राप्त करने के लिए ही युद्ध किया हो।
  •  महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने सफल अभियान के माध्यम से मध्य एशिया के इतिहास में जगह बना लिया था वह अपने साम्राज्य में क्रुर एवं असभ्य तो नहीं था क्योंकि वह कला और ज्ञान का संरक्षक था। उनके दरबार में विद्वानों एवं कवियों तथा कलाकारों की मंडली शोभा बढ़ाती थी। कई दार्शनिक भी इसके दरबार को सुशोभित करते थे जैसे- अलबरूनी, बैहाकी, उतबी, फिरदौसी आदि।
  •  महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) के साम्राज्य की प्रजा इतनी विपुल संपत्ति से लाभान्वित हुई एवं इन्होंने कई बड़े नगरों, भव्य मस्जिदों और विशाल महलों का निर्माण करवाया। साथ ही एक विश्वविद्यालय, पुस्तकालय, संग्रहालय (जिसमें लूट के अमूल्य उपहार संकलित करवाया) स्थापित करवाए। इतने कुशल शासक होने के कारण मध्य एशिया में तो लोग इन्हें कुशल शासक मानते थे लेकिन भारत में इसके विपरीत एक असभ्य एवं निर्दयी आक्रमणकारी के रूप में देखा जाता था।

महमूद गजनवी के उपरोक्त उपलब्धियों के बाद भी कुछ कमी हमें देखने को मिलता है जैसे- महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) कभी भी कुशल प्रशासनिक संगठन की व्यवस्था नहीं किया साथ ही सामाजिक सांस्कृतिक या फिर राजनीतिक संस्था को संगठित भी नहीं किया। वह एक निरंकुश एवं अत्याधिक स्वेच्छाचारी किस्म के होने के कारण मंत्रियों एवं विशिष्ट वर्ग के लोगों को भी स्वतंत्र पूर्वक कार्य नहीं करने दिया।

वह स्वयं को इस्लाम का समर्थक बताकर खुद को सर्वोच्च बनाए रखा। वह सैन्य अभियान में व्यस्त होता था और कानून व्यवस्था की समस्याओं पर कभी ध्यान नहीं देता था।

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) ने अपने जनता के समस्याओं पर समुचित ध्यान नहीं दिया। प्रजा की रक्षा के लिए पुलिस शक्ति की व्यवस्था नहीं थी खुद ही तानाशाह के रूप में नियंत्रण रखता था यहां नागरिक स्वतंत्र नहीं थे। उसके द्वारा बनाए गए विशाल साम्राज्य समय से पूर्व ही विघटित हो गए। उसके दुर्बल उत्तराधिकारी सब कुछ नष्ट कर दिए। पंजाब की विजय और अपने साम्राज्य में विलय कर एक स्थान मिल गया जहां वह अंतिम क्षण में शरण लेने को मजबूर हुआ।

महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) के आक्रमणों का प्रभाव

उपरोक्त आक्रमणों को देखते हुए पता चलता है कि महमूद गजनवी (mahmud of ghazni) एक के बाद एक कई आक्रमण भारत पर किए एवं अपने लिए संपत्ति इकट्ठा किया लेकिन इस युद्ध का कई प्रभाव भी देखने को मिलते हैं जैसे-

  •  उत्तर एवं पश्चिम भारत के समस्त राजतंत्र को नष्ट कर दिया।
  •  भारत का द्वार कहीं जाने वाले ‘खैबर दर्रा’ में इनका अधिकार हो गया।
  •  भारत में राजनीतिक विभाजन एवं आपसी मतभेद हमें देखने को मिलती है।
  •  भारतीय राजाओं के दोषपूर्ण सैन्य संगठन का भांडा फूट चुका था।
  •  काफी बड़े सैनिक की संख्या युद्ध में शहीद हो गई।
  •  भारत की जनता को गुलाम बनाकर बगदाद, समरकंद और बुखारा के बाजारों में भेज दिए गए।
  •  भव्य मंदिरों को अपवित्र कर ध्वस्त कर दिया गया।
  •  वास्तुकला, चित्रकला, दुर्ग, मंदिर, प्रसादों को नष्ट कर दिया गया जिससे भारतीय कला एवं संस्कृति की हानि हुई।
  •  आम जनता के आवास छिन्न-भिन्न हो गए एवं लाखों व्यक्ति अपने ही देश में घर-परिवार विहीन हो गए।
  •  बलपूर्वक इस्लाम ग्रहण कराने से लोगों के हृदय में अघात पहुंची।
  •  भारत की संपूर्ण सभ्यता इस आक्रमणकारी के घातक रूप से आहत हुई। इन आक्रमणों से देश की जनता एक भयावह दृश्य को देखा था।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि मोहम्मद गजनवी (mahmud of ghazni) के आक्रमण के द्वारा भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में राजनीतिक स्थिति को ही बदल कर रख दिया। उत्तर-पश्चिम में भारत की रक्षा करने वाली पर्वतमाला को पार कर चुके थे एवं किसी भी समय मैदानी क्षेत्र में आ सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि महमूद के मृत्यु के बाद गजनी साम्राज्य का विघटन हुआ और सलजूक साम्राज्य का उदय हुआ।

सलजूकों से गजनवियों का संघर्ष हुआ एवं स्थिति यहां तक आई की महमूद के बेटे मसूद को सलजूकों से पराजित होकर लाहौर आना पड़ा। अब गजनवी साम्राज्य गजनी से पंजाब तक सीमित रह गया। गंगा के मैदानों और राजपूताना में गजनवियों के छोटी मोटी लूटमार तो होती रही लेकिन भारत के लिए कोई भी गंभीर खतरा पैदा नहीं कर पाए। इस समय तक भारत में कई नए राज्य पैदा हो गए जो अब गजनवियों के हमलों का आसानी से सामना कर सकते थे।

इसी क्रम में हम मोहम्मद गौरी की भारत में 1175 ईस्वी में आक्रमण की घटना को देखते हैं।


  • हमारे देश के संविधान निर्माण में भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) का महत्वपूर्ण योगदान है। विस्तृत जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें।
  • Hussainara Khatoon vs State of Bihar (हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य मामला) मामला भारत में जनहित याचिका का पहला रिपोर्ट किया गया मामला था क्लिक करें

जनहित याचिका से संबंधित प्रमुख मामले पढ़ने के लिए क्लिक करें

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button