History

रजिया सुल्तान कौन थी ? (1236-1240 ईस्वी) | razia sultan in hindi

इल्तुतमिश के जीवित रहते ही बड़े बेटे नसीरुद्दीन महमूद जो पुत्रों में सबसे योग्य था उसकी मृत्यु 1229 ईस्वी में हो गई। इल्तुतमिश अपने दूसरे पुत्र फिरोज को गद्दी में बैठने नहीं देना चाहता था क्योंकि वह अयोग्य था। बाकी के दो पुत्रों की आयु कम होने के कारण उसने अपने सबसे बड़ी पुत्री रजिया सुल्तान को उत्तराधिकारी बनाने का निश्चय किया। क्योंकि रजिया सुल्तान बहुत साहसी, चतुर एवं योग्य महिला थी।

इल्तुतमिश ने एक बार जब ग्वालियर के आक्रमण पर गया तो रजिया को राजधानी की देखभाल के लिए दिल्ली में छोड़ दिया था और रजिया ने कुशलता पूर्वक अपने अपनी जिम्मेदारियों को निभाया था। इस काम को देखकर इल्तुतमिश बहुत प्रसन्न हुआ और ग्वालियर से लौटने पर उसने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और उसने चांदी का टंका में भी उसका नाम लिखवा दिया। कई अमीरों ने इसका विरोध किया क्योंकि पहली बार एक स्त्री को शासन का सत्ता दिया जा रहा था। इल्तुतमिश ने रजिया का समर्थन करके कहा था कि रजिया के अलावा कोई भी गद्दी में बैठने के योग्य नहीं है।

संक्षेप में फिरोजशाह (1236 ईस्वी)

परंतु जैसे ही इल्तुतमिश की मृत्यु (1236 ईस्वी) में हुई इल्तुतमिश के फैसले को न मानकर अमीरों ने उसके दूसरे पुत्र रुकुनुद्दीन फिरोज को गद्दी पर बैठाया गया। फिरोज की मां शाह तुर्कान भी इसकी समर्थन कर रही थी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि रजिया, सुल्तान बने।

शाह तुर्कान ने दरबारियों तथा सरकारी पदाधिकारियों को अपने पक्ष में कर लिया। कहा जाता है कि शाह तुर्कान कुचक्र रचने में कुशल थी। और उसने चतुराई से दल-ए-चिहलगानी की सहायता से अपने पुत्र फिरोजशाह का राज्याभिषेक करा दिया।

फिरोजशाह काफी भोग विलासी का जीवन जीता था और वह सत्ता संभालने में अयोग्य सिद्ध होता गया। सत्ता का नियंत्रण उसकी मां शाह तुर्कान के हाथ में आ गई। अब शाह तुर्कान का अत्याचारी कार्य शुरू हो गया। वह शाही परिवार के बच्चों एवं स्त्रियों पर अत्याचार करने लगी।

शाह तुर्कान एवं फिरोज के कार्य को देखकर अमीरों और सरदारों में रोष व्याप्त हो गया। कहा जाता है कि इल्तुतमिश के सबसे छोटे पुत्र को अंधा करके मरवा दिया गया था। ऐसी स्थिति में फिरोज शाह और मां शाह तुर्कान पर अब कोई भरोसा नहीं रहा। अब जगह जगह पर विद्रोह की तैयारी होने लगी। बाह्य आक्रमण भी मुंह खोले खड़ी थी।

इन्हीं सभी परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए रजिया ने शुक्रवार की नमाज के समय लाल वस्त्र धारण कर (लाल वस्त्र धारण का मतलब न्याय की मांग करना था) जनता के सामने गई और अपनी मां शाह तुर्कान और फिरोज के विरुद्ध सहायता मांगी और इल्तुतमिश द्वारा उत्तराधिकारीणी चुनने की बात भी कही।

सैनिक पदाधिकारियों ने भी दिल्ली के जनता का साथ दिया एवं फिरोज शाह के लौटने से पूर्व ही रजिया को सत्ता में बैठा दिया। शाह तुर्कान को जेल में बंदी बना लिया गया एवं फिरोजशाह को 1236 इस्वी में ही मार दिया गया। केवल 6-7 महीने ही सत्ता संभाला।

रजिया सुल्तान

रजिया सुल्तान कौन थी? (1236-1240 ईस्वी)

रजिया ने 1236 ईस्वी में दिल्ली के सिंहासन पर बैठी। रजिया सुल्तान का जन्म 1205 ईस्वी में बदायूं में हुआ था। पिता शम्ससुद्दीन इल्तुतमिश एवं माता कुतुब बेगम थी। रजिया का पूरा नाम रजिया अल-दिन था एवं शाही नाम जलौलात उद-दिन रजिया था।

रजिया अपने योग्य पिता की योग्य पुत्री थी। यह पहली स्त्री शासिका मध्ययुग की बनी। इस ने पहली बार इस्लाम परंपराओं को किनारे कर पर्दा का त्याग किया। उन्होंने सत्ता को सुल्तान के हाथों में केंद्रित करने के लिए सरदारों एवं सूबेदारों से राज्य की शक्ति हटाने पर बल दिया और उन्होंने अपने पिता के संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न राजतंत्र के सिद्धांत का समर्थन किया। जो इस समय, समय की मांग भी थी। इस कारण रजिया को शुरू से कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

रजिया सुल्तान के द्वारा सरदारों एवं नए पदाधिकारियों की नियुक्ति

रजिया सुल्तान ने अपने विश्वासपात्र सरदारों को विभिन्न पदों पर नियुक्त किया।एवं नए अधिकारियों की नियुक्तियाँ की जो इस प्रकार है:-

ख्वाजामुहाजबुद्धीन – वजीर

मलिक सैफुद्दीन ऐवक बहतू – सेना प्रधान

मलिक कुतुबुद्दीन हसन गोरी – नयाब-ए-लश्कर तथा मलिक

इजउद्दीन कबीर खाँ ऐयाज – लाहौर का इक्तेदार

इख्तियारुद्दीन एतगीन – अमीर-ए-हाजिब

इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया – भटिंडा का सूबेदार

जमालुद्दीन याकूब – अमीर-ए-खूर

एतगीन और अल्तूनिया रजिया सुल्तान के कृपा पात्र थे पर इन्होंने ही रजिया सुल्तान के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रजिया सुल्तान ने अपने सरदारों को बड़े कौशल से सुल्तान के अधीन किया था। उधर बिहार में भी विद्रोही सरदार तुगुल खाँ भी रजिया के अधीनता को स्वीकार कर लिया। रणथंभौर और ग्वालियर में हिंदू शासक बलशाली हो गए थे। क्योंकि रजिया यहां जीत हासिल करने में सफल न हो सकी। सुल्तान की शक्ति एवं सम्मान को बढ़ाने के लिए उसने अपने को ही बदल डाला। इस्लाम परंपरा को त्याग दिया जैसे:- पर्दा का त्याग, मर्दाने कपड़े पहनकर दरबार में जाना, शिकार करना, घुड़सवारी करना इत्यादि। इन सभी कार्यों से ऐसा लगता है जैसे वह पुरुषों की भांति कार्य करना चाहती थी और वह स्त्रियों के जैसे अपने को कमजोर नहीं बनाना चाहती थी।

रजिया के समक्ष कठिनाइयां एवं कार्यवाही

रजिया के सत्तारूढ़ से कई प्रांतों के सूबेदार (इक्तेदार) नाराज थे अतः बदायूं, मुल्तान, हाँसी और लाहौर के सूबेदार अपनी-अपनी सेनाओं को लेकर दिल्ली आ रहे थे। ये सूबेदार फिरोज शाह के समर्थक थे। ये चाहते थे कि रजिया को गद्दी से हटाया जाए। रजिया सूबेदारों को किंग मेकर की भूमिका में नहीं देखना चाहती थी। दूसरी ओर सूबेदार अपनी भूमिका त्यागना नहीं चाहते थे। रजिया सुल्तान का जो वजीर था निजामुल-मुल्क जुनैदी रजिया का साथ छोड़कर सूबेदारों से जा मिला।

अब परिस्थिति ऐसी हो गई थी कि  सूबेदारों की सेना दिल्ली पहुंच गई। रजिया भी युद्ध के लिए सेना के साथ दिल्ली पहुंची। रजिया ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए बदायूं के सूबेदार मलिक इजाउद्दीन मोहम्मद सलारी और मुल्तान के सूबेदार मलिक कबीर खाँ ऐयाज को अपनी तरफ मिलाकर बाकी के  सूबेदारों को कैद करने का वादा किया।

इस सूचना को अन्य सरदारों तक फैला दिया गया। इसका ऐसा करने का मुख्य कारण था विद्रोही सूबेदारों में फूट डालना और वह सफल भी हुई। फूट पड़ने पर सभी विद्रोही छिन्न-भिन्न हो गए और रजिया ने दो सूबेदारों का कत्ल कर दिया। वजीर जो विद्रोहियों का साथ दे रहा था वह अपने प्राण की रक्षा के लिए सिरमोर की पहाड़ी की ओर भाग खड़ा हुआ बाद में उसकी मृत्यु हो गई।

इस वजह से रजिया की प्रतिष्ठा बढ़ गई। अब उसका प्रमुख लक्ष्य था कि तुर्की गुलाम सरदारों के प्रभाव को समाप्त कर उसे सुल्तान के अधीन लाना।

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रजिया सुल्तान के द्वारा गुलाम सरदारों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए कार्यवाही

सत्ता में आते ही रजिया ने स्पष्ट कर दिया कि शासन का नियंत्रण अपने हाथों लेना चाहती है। इसके लिए उसने विदेशी और तुर्की मुसलमानों को मुख्य पदों पर नियुक्त किया और गुलाम तुर्की सरदारों की शक्ति को तोड़ने की कोशिश की। लेकिन तुर्की गुलाम सरदार चुप नहीं बैठे। ये सभी इकट्ठे होकर रजिया को गद्दी से हटाने के लिए षड्यंत्र रचने लगे। इस षड्यंत्र में दिल्ली और सूबों के वे सरदार जिसे इल्तुतमिश ने “तुर्कान-ए-चिहलगानी” (40 सरदारों का गुट) नाम से संगठित किया था। यह भी इल्तुतमिश के मृत्यु के बाद रजिया के खिलाफ हो गए। षड्यंत्रकारियों में प्रमुख थे “अमीर-ए-हाजिब” इख्तियारुद्दीन एतगीन, लाहौर के सूबेदार कबीर खाँ ऐयाज और भटिंडा के सूबेदार इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया। यह सभी षड्यंत्र का नेतृत्व कर रहे थे। इधर दिल्ली की प्रजा रजिया सुल्तान के साथ थे इसलिए रजिया सुरक्षित थी।

षड्यंत्रकारी अपने असफल होने के बात से भी डर रहे थे क्योंकि एक बार ये पहले भी रजिया से पराजित हो चुके थे। इसलिए रजिया को उसके राजधानी से दूर ले जाने की योजना बनाई। इस योजना को अंजाम देने के लिए 1240 ईस्वी में लाहौर के इक्तेदार (सूबेदार) कबीर खाँ ने विद्रोह किया। रजिया सुल्तान भी शांत नहीं बैठी। आक्रमण करने के लिए वह सेना लेकर पहुंची। कबीर खाँ अकेला पड़ गया क्योंकि उसके सहयोगी पहुंच न सके। अतः रजिया सुल्तान ने उसे हरा दिया। कबीर खाँ भाग खड़ा हुआ एवं रजिया ने चिनाब नदी तक पीछा किया। उसके पार मंगोलों का आतंक था। इसलिए रजिया के सामने कबीर खाँ ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद रजिया ने उससे लाहौर की सुबेदारी छीनकर मुल्तान का सुबा दे दिया।

कुछ दिनों बाद भटिंडा के सूबेदार अल्तूनिया ने विद्रोह कर दिया। यह रजिया सुल्तान के “अमीर-ए- हाजिब” एतगीन का मित्र था। रजिया सुल्तान ने सेना लेकर भटिंडा पहुंच गई तभी उसके तुर्की सरदारों ने उसे धोखा दे दिया। इन्होंने जमालुद्दीन याकूत जो रजिया का कृपा पात्र था जिसका वध कर दिया और रजिया को बंदी बनाकर भटिंडा के किले में कैद कर दिया। यह सूचना फैलते ही षड्यंत्रकारियों ने तुरंत  इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहरामशाह को सुल्तान घोषित कर दिया।

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मंगोलों के आक्रमण से दिल्ली की सुरक्षा

ख्वारिज्म शाम के गजनी और बनियान के सूबेदार मलिक हसन कार्लगु ने मंगोलों के विरुद्ध रजिया से मदद मांगी। रजिया सुल्तान ने “बरन” की आय दे दिया और सैन्य सहायता नहीं दिया। अगर उसने सैन्य सहायता दिया होता तो मंगोलों का आक्रमण रजिया सुल्तान के दिल्ली में भी हो सकता था। अतः अपने पिता इल्तुतमिश की भांति उसने अपने राज्य को मंगोल आक्रमण से बचाया।

रजिया सुल्तान की प्रेम कहानी

रजिया अपने शासनकाल में दिल्ली सल्तनत को संभालते हुए अपने ही एक गुलाम से प्रेम कर बैठी थी। उसका नाम जमात-उद-दिन याकुत था। यह रजिया सुल्तान का सलाहकार था।

जमात-उद-दिन याकुत अफ्रीकी महाद्वीप के अबीसीनिया का रहने वाला था। वह एक हब्शी था। (असल में हब्शी एक फारसी शब्द है इसका मतलब अबीसीनिया का रहने वाला है अफ्रीकी देश इथोपिया को पहले अबीसीनिया कहा जाता था। तथा वहां के रहने वालों को अबीसीनियन या हब्शी कहा जाता था) रजिया का जमालुद्दीन याकूत नाम के इस हब्शी अफसर पर जो घोड़ों का सर्वोच्च अधिकारी “अमीर-ए-अखूर” था उससे विशेष लगाव था। जब रजिया घोड़े पर चढ़ती तो याकूत उसे अपने हाथों से सहारा दिया करता था।

कहा जाता है शायद ऐसा रजिया ने जानबूझकर तुर्क अमीरों का राजकीय पदों पर एकाधिकार को तोड़ने के लिए किया था। लेकिन अमीरों को यह पसंद नहीं आया। रजिया ने इन बातों को नजरअंदाज किया लेकिन जिसका परिणाम अपने राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ।

रजिया सुल्तान और याकूत के प्रेम संबंधों के बारे में कई इतिहासकार सत्य मानते हैं लेकिन अधिकांश इतिहासकार इस आरोप का खंडन भी करते हैं जैसे:- मिन्हाजुस सिराज लिखते हैं कि उनके मध्य पर्याप्त घनिष्ठता थी यहां तक कि जब वह घोड़े पर सवार होती तो उसको सदैव अपनी बाहों में ऊपर उठाकर घोड़े पर बैठा देता था।”

इब्नबतूता का भी कहना है कि वह याकूत के साथ अवैध संबंधों के लिए दोषी थी।

लेकिन अधिकांश इतिहासकार याकूत और रजिया का सुल्तान का प्रेमी नहीं बल्कि वह विश्वासपात्र था। जो हमेशा रजिया का साथ दिया करता था।

इन्हीं कारणों से तुर्क अमीरों का दल रजिया से नाराज हो गया। नाराजगी का एक और भी वजह बताया जाता है कि वह तुर्की नहीं हब्शी था।

अंततः अमीरों के दल ने ही विद्रोह करके रजिया को कैद कर लिया और याकूत का वध कर दिया। बाद में विद्रोहियों ने अच्छे पदों में अधिकार कर लिया एवं अल्तूनिया जो इस समय भटिंडा का सूबेदार था उसने रजिया को 1240 ईस्वी में भटिंडा के किले की जेल से मुक्त कर विवाह कर लिया। क्योंकि वह दिल्ली का सुल्तान बनना चाहता था।

अल्तूनिया और रजिया दोनों भटिंडा से दिल्ली पर अधिकार करने के लिए आगे बढ़े परंतु बहरामशाह (बहरामशाह इल्तुतमिश का तीसरा पुत्र था फिरोज शाह के मृत्यु के बाद दिल्ली की सत्ता पर इनकी नजर थी) की सेना ने परास्त कर दिया। अल्तूनिया के सैनिकों ने भी साथ छोड़ दिया एवं 1240 ईसवी को 13 अक्टूबर के दिन कैथल के कुछ हिंदू डाकुओं ने उन दोनों का वध कर डाला।

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रजिया सुल्तान की विवाह एवं मृत्यु

षड्यंत्रकारियों ने सफलता प्राप्त करने के बाद बहराम शाह को सुल्तान घोषित किया एवं एतगीन को “नाइब-ए-मामलिकात” का पद हासिल हो गया। अल्तूनिया को उसकी पसंद का पद प्राप्त नहीं हुआ। उसने रजिया सुल्तान से विवाह कर लिया। बहराम शाह एतगीन से प्रसन्न नहीं था इसलिए उसे 2 माह के अंदर ही वध कर दिया।

अल्तूनिया का नजर भी सिहासन पर था अतः उसने बहराम शाह के खिलाफ एक सेना एकत्र कर रजिया सुल्तान के साथ दिल्ली की ओर बढ़ा परंतु दिल्ली की संगठित सेना के सामने उनकी हार हो गई और उन्हें भठिंडा की ओर वापस लौटना पड़ा। कहा जाता है कि कैथल के निकट हिंदू डाकुओं ने रजिया सुल्तान और अल्तूनिया को 1240 ईस्वी में मौत के घाट उतार दिया।

रजिया सुल्तान के पतन का कारण

रजिया सुल्तान के पतन का कई कारण हमें देखने को मिलता है:-

  • रजिया सुल्तान का स्त्री होना:- मिन्हाज का कहना है कि “उसमें वे सभी प्रशंसनीय गुण थे जो एक सुल्तान में होने चाहिए।” एक तरफ तो मिन्हाज उसके गुणों की तारीफ करता है और तारीफ करते-करते यह भी संकेत दे जाता है कि “ये सभी श्रेष्ठ गुण उसके किस काम के थे?”

अर्थात यह बात उसके स्त्री होने पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। लेकिन कई इतिहासकारों ने भी रजिया के असफलता का मुख्य कारण रजिया का स्त्री होना बताया भी है। लेकिन आधुनिक इतिहास का इसका खंडन भी करते हैं।

उस समय एक स्त्री का शासिका बनना परंपरा के विरुद्ध था। पुरुषों को रजिया का पुरुष वेश में घूमना भी पसंद नहीं था। अतः रजिया के पतन का एक प्रमुख कारण उसका स्त्री होना भी था।

  • रजिया सुल्तान का स्वतंत्र व्यवहार:- रजिया सुल्तान ने सत्ता पर आते ही इस्लामिक परंपरा को दरकिनार करते हुए पर्दा त्याग दिया। वह खुले में दरबार लगाती और पुरुषों के बीच में लोगों के समक्ष आती जाती थी। ये सभी चीजें तुर्की अमीरों को पसंद नहीं थी। अतः तुर्की अमीर रजिया के खिलाफ षड्यंत्र करने लगे। अतः यह भी एक कारण था रजिया के पतन का।
  • रजिया का निरंकुश होना:- वह चाहती थी कि सत्ता पर अमीरों का हस्तक्षेप न हो। इल्तुतमिश ने जो 40 दल का निर्माण किया था उसके समय ये वफादार थे। लेकिन उनके मृत्यु के बाद ये किंग मेकर बन गए। जिसे चाहते थे उसे सत्ता में बैठाते थे और जिसे चाहते उसे सत्ता से उतार सकते थे।

अतः रजिया ने सत्ता में आते ही निरंकुश शासन स्थापित करने के लिए 40 दल को तोड़ना शुरू किया। मुख्य पदों पर गैर तुर्की व्यक्ति को बैठाना शुरू कर दिया तथा अपने समर्थकों की पदोन्नति करना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति में तुर्की अमीरों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया।

  • पारिवारिक कलह:- इल्तुतमिश ने अपने शासनकाल के अंत में रजिया को सुल्तान के रूप योग्य बताया और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था लेकिन उनके भाई इस फैसले से खुश नहीं थे और 40 दल के तुर्की अमीरों के साथ मिलकर सत्ता हथियाना चाहते थे। एक बार तो तुर्की अमीरों ने फिरोज को गद्दी में बैठाने के लिए विद्रोही बनकर दिल्ली की ओर बढ़ आए थे।

इन सभी घटनाओं को देखकर लगता है कि परिवार की आंतरिक अशांति भी सुल्तान रजिया को पतन के मुख में ढकेल दिया।

  • सरदारों का विश्वासघात:- रजिया सुल्तान के जितने भी सरदार थे जिन्हें रजिया ने प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया था वे भी विश्वासघाती निकले। ये सरदार विद्रोहियों से जा मिले और प्रशासन तंत्र को कमजोर बनाया। जिससे विद्रोही अपने षड्यंत्र में सफल हो सके और विद्रोहियों ने उसे पकड़कर बंदी बना लिया। अंततः उसकी मृत्यु हो गई।
  • रजिया का याकुत से प्रेम संबंध:- जलालुद्दीन याकूत के रजिया से प्रेम संबंध की बात भी तुर्की अमीर सहन न कर सके। याकूत की घनिष्ठता रजिया से बहुत ज्यादा थी एवं रणथंभौर के विजय उपरांत रजिया ने उसे अमीर-उल-उमरा का पद दिया था। अतः तुर्की अमीरों को यह बात पसंद नहीं आया।

फरिश्ता भी इस बात का समर्थन करता है। तुर्की अमीर इस पदोन्नति से नाराज हो गए और रजिया के याकूत से संबंध को बारीकी से ढूंढने लगे तो उन्हें पता चला कि दोनों के बीच बहुत लगाव है और जब वह घोड़े पर सवार होती है तो याकुत हाथ से सहायता कर उसे घोड़े में बैठने में मदद करता है। साथ ही उसके पदोन्नति से भी अमीरों का ईष्या करना स्वाभाविक था और यह अमीरों के लिए अपमानजनक बात तब सिद्ध हुई जब याकूत केवल एक अबीसिनयाई गुलाम था और गुलाम को इतने उच्च पद पदोन्नति करना रजिया का व्यक्तिगत संबंध ही जान पड़ता है।

कुतुबुद्दीन ऐबक और गुलाम वंश को अच्छी तरह समझने के लिए “मोहम्मद गौरी का भारत पर आक्रमण” ये लेख जरूर पढ़ें।

रजिया सुल्तान का मूल्यांकन

रजिया सुल्तान ने लगभग 3 वर्ष 5 माह 6 दिन राज्य किया। (इतिहासकार मिन्हाज के अनुसार) उन्होंने कहा कि दिल्ली की सुल्तान बनने वाली वह एकमात्र स्त्री थी जिसमें सभी प्रशंसनीय गुण थे। जो एक सुल्तान में होना चाहिए। लेकिन उन्होंने इन सभी गुणों को एक स्त्री में होना प्रश्नचिन्ह लगाते हैं और कहते हैं कि यह किस काम के थे?

कई इतिहासकार भी रजिया सुल्तान के असफलता का मुख्य कारण उसका स्त्री होना ही बताया है लेकिन कई इतिहासकार इसका खंडन भी करते हैं।

फिर उपरोक्त कार्यवाहीयों एवं उनकी सूझबूझ से ऐसा लगता है कि रजिया सुल्तान एक शिक्षित, योग्य, साहसी, कर्तव्य परायण स्त्री थी। उसके लिए कभी भी एक स्त्री होना दुर्बलता का कारण नहीं बना उन्होंने अपनी कूटनीतिक चाल और बुद्धिमत्ता के कारण राज्य को सुरक्षा देने और जनता के स्थाई हितों का पूर्ति के लिए निरंतर प्रयत्न किया। रजिया ने सत्ता की शक्ति और प्रतिष्ठा सरदारों से हटाकर सुल्तान के अधीन करने में आंशिक सफलता को हासिल किया लेकिन उन्होंने ही उसका पतन भी कर डाला।

कौशल और कूटनीति का परिचय भी उन्होंने बखूबी दिया। सरदारों में फूट डालकर परास्त करना, ख्वारिज्म शाह के सूबेदार हसन कार्लगु को सहायता न देखकर मंगोल आक्रमण से दिल्ली को सुरक्षित करना। उच्च से लेकर बंगाल तक अपनी सत्ता कायम कर पाना तथा सूबेदारों को अपने अधिपत्य स्वीकार करा पाना उसकी कूटनीतिक चाल ही थी। पिता इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री पर भरोसा किया उस पर वह पूर्णतया खरी उतरी।


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