History

विजयनगर साम्राज्य का इतिहास | vijayanagara empire

विजयनगर साम्राज्य के निर्माण का मुख्य उदेश्य हिन्दुओं को आत्मरक्षा के लिए संगठित करना था क्योंकि चौदहवीं शताब्दी में हिंदू धर्म और संस्कृति अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था। प्रसिद्ध इतिहासकार हेवेल ने लिखा है- “हर चीज का एक ही अनिवार्य परिणाम दिखाई देता था। हिंदू प्रांत का सत्यानाश, उनके प्राचीन राजवंशों का मूलोच्छेदन, उनके धर्म, मंदिर तथा नगरों का विधवंश, दक्षिण के निवासियों को जो प्रिया था वह कुछ लड़खड़ा कर गिरने वाला था।”

मोहम्मद बिन तुगलक का शासन काल तुर्क साम्राज्य का अंतिम शासन काल था क्योंकि साम्राज्य की विशालता इस शासन काल के बाद काफी बिखर गई उसकी योजनाओं से असंतुष्ट सूबेदारों ने दिल्ली से दूर होने के कारण स्वतंत्र राज्यों का निर्माण कर लिया।

सैय्यद व लोधी वंशीय सुल्तानों ने भारत पर शासन अवश्य किया परंतु उनके शासन अल्पकालीन व अस्थाई सिद्ध हुए। सुल्तान व अमीरों के बीच संघर्ष आरंभ हो गए। उधर हिंदू नरेशों ने मुस्लिम सत्ता से स्वतंत्र होने के भारी प्रयास प्रारंभ कर दिए। जिस मलिक काफूर ने दक्षिण विजय करके अलाउद्दीन के साम्राज्य को (1311ई) पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया था वही विशाल मुस्लिम साम्राज्य मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में सीमित हो गया। फिरोज शाह तुगलक ने मुहम्मद तुगलक से प्राप्त साम्राज्य को तो बनाए रखा परंतु उसकी उदारता तथा धार्मिक नीति ने सल्तनत के विनाश को समीप ला दिया। इस सल्तनत के विघटन से उत्तरी भारत एवं दक्षिण भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्य उदित हो गए।

 

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई ?

दक्षिण भारत में मुस्लिम विजेता के रूप में सर्वप्रथम अपनी छाप जमाने वाला अलाउद्दीन खिलजी था। उसके सेनापति मलिक काफूर ने दक्षिण के लगभग सारे हिंदू राज्यों को मुस्लिम प्रभुत्व स्वीकार करने को बाध्या किया था। अब तक यादव, काकतीय, होयसल तथा पाण्डय शासको ने मुसलमान से अपने को बचाया था परंतु मलिक काफूर ने उनके भी स्वतंत्र अस्तित्व को समाप्त कर दिया। हालांकि काकतीय व होयसल राज्य परास्त हो गए थे परन्तु उनके नरेश प्रतापरुद्र द्वितीय तथा वीर वल्लाल तृतीय ने स्वतंत्रता की ऐसी ज्योति जला दी कि मुसलमानों के भारी प्रयत्नों के बाद भी नहीं बुझ सका।

विजयनगर साम्राज्य

ये दोनों नरेश हिंदू की रक्षार्थ मुसलमानों से युद्ध करते-करते शहीद हो गए। इसी प्रतापरूद्र द्वितीय की सेना में हरिहर तथा बुक्का दो भ्राता थे वे दोनों वीर और साहसी थे इन्हीं दोनों भ्राताओं ने ही 1336 ईस्वी में विजयनगर राज्य की स्थापना की थी।

दक्षिण में मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई बहाउद्दीन ने 1325 ईस्वी में गुर्सास्य का पीछा करते हुए घेरा डाला तो हरिहर और बक्का पकड़े गए एवं दिल्ली भेज दिए गए जहां उन्हें मुसलमान बना दिया गया। बाद में तुगलक ने साम्राज्य विस्तार हेतु उन्हें दक्षिण भेजा तो उनकी मुलाकात विधारण्य नामक साधु से हुई उसके प्रभाव में आकर श्रृंगेरी के मठाधीश विद्यातीर्थ से पुनः हिंदू धर्म में दीक्षित हुए तथा उस विद्वान ने दोनों भाइयों को हिंदू राज्य की स्थापना के लिए प्रेरित किया और 1336 ईस्वी में विजयनगर नामक हिंदू राज्य की स्थापना की।

कहा जाता है कि अपने गुरु के स्मारक के रूप में इन भाइयों ने तुंगभद्रा नदी के तट पर एक नगर की स्थापना की जिसका नाम विद्यानगर अथवा विजयनगर रखा। विजयनगर साम्राज्य का विस्तार उत्तर में कृष्णा नदी तथा दक्षिण में कावेरी नदी तक, पूर्व-पश्चिम में समुद्र के एक किनारे तक फैल गया।

विजयनगर साम्राज्य की क्रमशः तीन राजधानियां थी- अनैगोंदी, विजयनगर तथा पेरू गोंडा

विजयनगर साम्राज्य का उत्कर्ष

विजयनगर साम्राज्य पर कुल चार राजवंशों ने शासन किया वह निम्नलिखित थे:-

  • संगम वंश 1336 से 1486 ई
  •  शालू वंश 1486 से 1506 ई
  •  तुलुव वंश 1506 से 1570 ई
  •  तिरुमल द्वारा अरविंद वंश 1570 से 1614 ई

उपरोक्त सभी राजवंशों का बहमनी शासको से निरंतर युद्ध चलता रहा।

प्रथम दो राजवंश तो अपने पड़ोसी राज्य बहमनी से निरंतर संघर्ष करते रहे। वे दोनों एक दूसरे का उन्मूलन करने का प्रयास करते रहे। जब तीसरा राजवंश सत्ता में आया तो बहमनी साम्राज्य विघटित होकर पांच राज्यों में विभक्त हो गया था। अतः तीसरे राजवंश के समय विजयनगर साम्राज्य का उत्कर्ष विशेष रूप से हुआ। परंतु चौथ राजवंश के शासन काल में विजयनगर पतनोन्मुख हो 1614 ई में अपना अस्तित्व खो बैठा।

संगम राजवंश

संगम राजवंश में निम्नलिखित राजा हुए तथा हम उनके बारे में संछिप्त रूप में जानने का प्रयास करेंगे।

हरिहर प्रथम (1336 से 1354 ई)

हरिहर प्रथम विजयनगर साम्राज्य का संस्थापक था उन्होंने अपने पिता ‘संगम’ के नाम पर ही अपने वंश का नाम रखा। वह बड़ा वीर एवं उत्साही शासक था परंतु साथ ही धैर्यवान भी था। उसने कोई कार्य जल्दी में न करके सावधानी और बुद्धिमानी से किया। इसका प्रमाण यह है कि उसने 18 वर्ष राज्य करके भी राजमुकुट धारण नहीं किया और न राजा की उपाधि धारण की।

उसके इस निःस्वार्थ परता के आदर्श ने जनता को उसके प्रति श्रद्धालु एवं निष्ठावान बना दिया। इसके अलावा राजा की उपाधि धारण न करने का एक परिणाम यह भी निकला कि तुर्की सुल्तान उनके राज्य विस्तार की ओर ध्यान न दे सके। विजयनगर को सुरक्षित बनाकर उसने अपने राज्य विस्तार की ओर ध्यान दिया 4 वर्ष के भीतर उसने तुंगभद्र नदी घाटी तथा कोंकण के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया और मालाबार के तट तक उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसकी प्रथम राजधानी अनैगोंदी थी तथा 7 वर्ष बाद विजयनगर को राजधानी बनाया तथा होयसल राज्य को विजयनगर में मिलाया।

बुक्का प्रथम (1356 से 1377 ई)

हरिहर के मृत्यु (1354 ई) के बाद उसका भाई बुक्का विजयनगर का शासक बना और 1377 ई तक वह शासन किया। उन्होंने ‘वेदमार्ग प्रतिष्ठापक’ की उपाधि ली थी। इसी के समय से रायचूर दोआब ( कृष्ण और तुंगभद्रा के बीच का भाग) हेतु विजयनगर और बहमनी में संघर्ष शुरू हुआ जिसके कारण वह साम्राज्य विस्तार नहीं कर सका। परंतु दक्षिण में उसका राज्य समुद्र तक पहुंच गया। वह तमिलनाडु तथा मदुरा को जीतकर साम्राज्य में मिलाया।

बुक्का प्रथम विजेता के साथ-साथ विद्या प्रेमी एवं स्थापत्य कला प्रेमी भी था। साथ ही हिंदू धर्म में अनुराग रखने के लिए उसने तमिल देश में पुनः हिंदू धर्म का प्रचार किया। प्रोफेसर जी वेंकट राय का कहना है कि विजयनगर राज्य की नींव डालने वाला वास्तव में बुक्का ही था इससे पूर्व यह नगर विद्यानगर के नाम से जाना जाता था।

हरिहर द्वितीय (1377 से 1404 ई)

बुक्का की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हरिहर द्वितीय विजयनगर का नरेश बना। इन्होंने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। हरिहर द्वितीय का समय शांति से व्यतीत हुआ क्योंकि बहमनी राज्य का सुल्तान मुहम्मद शाह था जो एक शांति प्रिया शासक था।

अतः इस समय हरिहर द्वितीय को अपना साम्राज्य बढ़ाने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ। उसने मैसूर, चिगलपुर और त्रिचन्नापल्ली को अपने राज्य में मिलाया। श्रीलंका से राजस्व वसूल किया और गोवा को बहमनी से छीना। परंतु जब फिरोज शाह बहमनी का सुल्तान बना तो स्थिति बदल गई और विजयनगर और बहमनी दोनों राज्यों में संघर्ष आरंभ हो गया और इसका परिणाम विजयनगर की हार निकाला इसके बाद 1404 ई में हरिहर द्वितीय की मृत्यु हो गई।

देवराय प्रथम (1405 से 1422 ई)

हरिहर द्वितीय की मृत्यु के बाद उसके दोनों पुत्रों ने सिंहासन की प्राप्ति के लिए संघर्ष हुआ और अंत में देवराय अपने भाई बुक्का द्वितीय को परास्त कर विजयनगर पर अधिकार कर लिया। इटली का यात्री निकोलो कोंटी इसी काल में भारत आया था। इस समय विजयनगर और बहमनी के बीच संघर्ष चल रही थी। जिसमें बहमनी बुरी तरह से पराजित हुआ। उसने तुंगभद्रा नदी पर बांध बनाकर विजयनगर के लिए नहर निकली। निकोलो कोंटी लिखता है कि- विजयनगर का महाराज भारत के अन्य सभी राजाओं से अधिक शक्तिशाली था तथा विजयनगर एक सुंदर नगर था।

देवराय द्वितीय (1422 से 1448 ई)

देवराय प्रथम के मृत्यु पर उसके पुत्र विजय बुक्का तथा वीर विजय ने राज्य किया। परंतु उनका शासन कुछ मास तक ही रहा। उसके उपरांत विजय बुक्का का पुत्र देवराय द्वितीय गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही उसे बहमनी राज्य की सेना से युद्ध करना पड़ा। 1420 ई के आक्रमण का बदला फिरोज शाह ने अब लिया। विजयनगर के निहत्थे हजारों स्त्री व बच्चे मौत के घाट उतार दिए गए। विजयनगर को परास्त करने के लिए बहमनी के पास निम्नलिखित कारण थे:- उत्तम असवारोही व कुशल धनुर्धारी।

प्रथम बार मुसलमान सैनिक विजयनगर की सेना में भर्ती हुए। पारस का यात्री अब्दुल रर्ज्जाक विजयनगर आया (1443 ई)। वह लिखता है कि “विजयनगर एक ऐसा शहर है जिसका सीमा पहले कभी देखने में नहीं आया न कभी सुना गया। इस तरह का कोई दूसरा शहर इस दुनिया में और कहीं नहीं है।” प्रसिद्ध तेलुगू कवि श्रीनाथ इसके दरबारी कवि थे।

मल्लिकार्जुन (1446 से 1466 ई)

देवराय के मृत्यु के पश्चात उसका जेष्ठ पुत्र मल्लिकार्जुन शासक बना। उसके शासनकाल में बहमनी के सुल्तान तथा उड़ीसा के हिंदू नरेश ने मिलकर विजयनगर की राजधानी पर हमला किया। मल्लिकार्जुन के निरंतर संघर्ष करने के बाद भी वह शत्रुओं के प्रवाह को नहीं रोक सका। इसी कारण कहा जाता है कि मल्लिकार्जुन के समय से विजयनगर राज्य का पतन होना आरंभ हुआ। उसके मृत्यु (1465 ई) के बाद विरूपाक्ष विजयनगर की गद्दी पर बैठा। परंतु वह एक निर्बल शासक था। उसके शासनकाल में राज्य में अव्यवस्था एवं अराजकता फैलने लगी ऐसी परिस्थितियों का लाभ उसके मंत्री नरसिंह सलुव ने 1485 ईस्वी में उठाया तथा विरुपाक्ष इस वंश का अंतिम शासक हुआ।

मुगलकालीन जागीरदारी व्यवस्था अवश्य पढ़ें

सालुव वंश (1485 से 1506 ई)

नरसिंह इस वंश का प्रथम राजा था। वह एक वीर योद्धा तथा योग्य शासक था। उसने सभी उपद्रवों को शांत किया। उसने कर्नाटक में तुलु प्रदेश को विजित कर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ायी। 1490 ईस्वी में इसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र इम्मदी नरसिंह (1490 से 1506 ई) राजा बना। यह एक अयोग्य शासक था। इस कारण राज्य की सत्ता उसके हाथों में न होकर उसके सेनानायक नरेश नायक के हाथ में चली गई। इसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र वीर सिंह के हाथ चली गई। जिसने सालुव वंश की समाप्ति कर तुलुव वंश की स्थापना की।

तुलुव वंश (1506 से 1570 ई)

तुलुव वंश में निम्नलिखित राजा हुए तथा हम उनके बारे में संछिप्त रूप में जानने का प्रयास करेंगे।

वीर नरसिंह (1506 से 1509 ई)

वीर नरससिंह इस राजवंश का प्रथम राजा था। इसके गद्दी पर बैठते ही राज्य में असंतोष व्याप्त हो गया। आंतरिक विद्रोह होने लगे। उसने पुर्तगाली गवर्नर आलमीडा से उसके द्वारा ले गए सभी घोड़े को खरीदने का समझौता किया और विवाह कर (tax) हटा दिया। पाइस नामक एक पुर्तगाली यात्री उसके समय विजयनगर आया था। वह लिखता है कि उसके राज्य में बड़ा आतंक था वह प्रसन्न स्वभाव का व्यक्ति था। वह विदेशियों का सम्मान करता था और न्याय करने में बड़ा अभिरुचि रखता था।

कृष्ण देवराय (1509 से 1529 ई)

कृष्ण देवराय विजयनगर का प्रमुख राजा था। 1509 से 1520 ईस्वी में उसने बीदर के सुल्तान महमूद शाह को परास्त किया था। गुलबर्गा का किला भी उसके प्रभुत्व में आ गया। 1513 से 1518 ई के अंतराल में उसने उड़ीसा के गजपति नरेश प्रताप रूद्र को चार युद्धों में परास्त किया और विजयनगर की सेना कटक तक जा पहुंची। उड़ीसा नरेश अपनी पुत्री को विवाह में देकर कृष्ण देवराय से संधि कर ली।

कृष्ण देवराय पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डी अलबुकर्क के साथ मित्रता पूर्ण नीति का पालन किया। उन्होंने नागलपुर नामक नया नगर बसाया और तेलुगु का प्रसिद्ध ग्रंथ ‘आमुक माल्यद’ तथा संस्कृत में ‘जामदंती कल्याण’ लिखा।

अच्यूत देवराय (1530 से 1542 ई)

कृष्णदेव राय के मृत्यु के पश्चात उसका चचेरा भाई अच्यूत देवराय विजयनगर का राजा बना। इसे कृष्णदेव राय ने अपने जीवन काल में ही अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था। परंतु इसके अल्पायु होने के कारण उसके विरोधी उठ खड़े हुए।

इस आंतरिक कलह का लाभ उठाते हुए विजयनगर के शत्रु सजग हो गए। जिसे अच्यूत देवराय ने दबा नहीं सका। अब सत्ता उसके साले तिरुमल के हाथों केंद्रित हो गई लेकिन यह अयोग्य शासक था।

दिल्ली सल्तनत का प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन | administrative system of delhi sultanate

विजयनगर साम्राज्य का पतन

अच्युत देवराय की मृत्यु पर तिरुमल ने अपने भांजे वेंकट रमन को विजयनगर का शासक बनाया परंतु वास्तविक सत्ता उसने अपने ही हाथों में रखा। राजमाता वरदेवी अपने कुटिल भाई तिरुमल के चंगुल से अपने पुत्र (वेंकट रमन) मुक्त कराना चाहा। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने इब्राहिम आदिलशाह से सहायता मांगी। इस पर कृष्ण देवराय का जमाता रामराय, इब्राहिम आदिल से मिल गया और उसने कृष्ण देव राय के पुत्र सदाशिव को विजयनगर का नरेश बना दिया।

सदाशिव (1542 से 1572 ई)

सदाशिव विजयनगर का राजा अवश्य बना परंतु सत्ता उसके हाथ में नहीं आई। रामराय उसके नाम पर शासन करता रहा। उसने विजयनगर की पारंपरिक नीति को ही बदल दिया। अब तक विजयनगर के नरेश अपने पड़ोसी मुस्लिम राज्यों के आंतरिक मामलों में न तो हस्तक्षेप करते थे और न उनका ही हस्तक्षेप सहन करते थे परंतु रामराय की नीति ने यह सब कुछ उल्टा कर दिया। उसकी यह नीति विजयनगर के अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध हुई।

परंतु रामराय एक स्वार्थी एवं कूटनीतिज्ञ भी था उसने अपनी वीरता तथा कूटनीतिज्ञ से कुछ समय के लिए विजयनगर के अस्तित्व की रक्षा की। उसने राज्य की आंतरिक विनाशकारी शक्तियों का दामन भी किया। आंतरिक झगड़ों से छुटकारा पाने के बाद रामराय ने त्रावणकोर के शासक के विरुद्ध सेना भेजी। जब मुस्लिम राज्यों (गोलकुंडा बीजापुर) ने विजयनगर में अपने पांव पसारने का प्रयास किया तो रामराय ने पहले तो उनका सैनिक सहायता से मुकाबला करना चाहा। परंतु इसमें सफलता न मिलने पर उसने कूटनीतिज्ञ से काम लिया।

एक मुस्लिम राज्य को दूसरे मुस्लिम राज्य के विरुद्ध उसने भड़काना प्रारंभ किया। बुरहान निजाम शाह को अपने पक्ष में करके उसने आदिल शाह को तीन युद्ध में परास्त किया। 1558 ईस्वी में उसने गोलकुंडा के सुल्तान इब्राहिम कुतुब शाह से विजयपुर पर आक्रमण कर दिया। बीजापुर के सुल्तान ने रामराय से ही सहायता मांगी। रामराय ने बीजापुर सुल्तान की सहायता की। कुतुब शाही सेना को धकेल कर अहमदनगर को 1559 ईस्वी में एक अपमानजनक संधि करने को विवश किया। उसने अपनी इस कूटनीति से विजयनगर को पुनः दक्षिण में एक शक्तिशाली राज्य बना लिया और पड़ोसी मुस्लिम देशों का मान मर्दन किया।

कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत | kautilya’s saptanga theory विस्तृत जानकारी।

तालीकोटा युद्ध (1565 ई) और विजयनगर साम्राज्य की समाप्ति

रामराय ने जब अपनी कूटनीति तथा सैनिक अभियानों से विजयनगर राज्य को दक्षिण के राज्यों में सर्वोच्च बना लिया तो उन राज्यों को विजयनगर से वैमनस्य हो गया। आपसी भेदभाव को भुलाकर दक्षिण के मुस्लिम राज्य एक हो गए।

फरिश्ता लिखते हैं कि- “ मुस्लिम राज्यों में एकता स्थापित होने के कारण थे- रामराय द्वारा अहमदनगर के आक्रमण में मस्जिदों को धराशायी करना तथा इस्लाम धर्म को अपमानित करना। अतः 1565 ईस्वी में दक्षिण के मुस्लिम सुल्तानों की सेना तालीकोटा के मैदान में आ डटी। उधर रामराय भी अपने सैनिकों के साथ मैदान में आ गया। 25 जनवरी को युद्ध आरंभ हुआ।

प्रारंभ में रामराय मुस्लिम महासंघ की सेना को परास्त करने में सफल रहा। परंतु जब मुस्लिम सैनिकों ने तोपखाने का प्रयोग किया तो विजयनगर में त्राहि-त्राहि मच गई। इसी अवसर पर विजयनगर के मुस्लिम सैनिक भी अपने सह धर्मियों से जा मिले। परिणाम यह हुआ की रामराय को घेर लिया गया और मुस्लिम सैनिकों द्वारा उसे मौत के घाट उतार दिया गया।

इस युद्ध ने विजयनगर साम्राज्य को विनाश की गर्त में डाल दिया हालांकि रामराय की मृत्यु के उपरांत तिरुमल ने सदाशिव को पेनुकोंडा ले जाकर शासन करने का प्रयास किया परंतु अब विजयनगर साम्राज्य अपना वैभव खो चुका था। 1572 ई में सदाशिव की भी मृत्यु हो गयी

अरविंदु वंश / रास वंश

यह विजयनगर का चौथा राजवंश था। सदाशिव के मृत्यु के बाद इस वंश की स्थापना हुई। इस वंश में कई शासक हुए और वह 1614 ई तक शासन करते रहे। परंतु वे आरोग्य सिद्ध हुए। इस वंश का अंतिम शासक रंग तृतीय था। जो की एक निर्बल शासक था। 1614 ईस्वी में उसके राज्य पर मुसलमानों ने अधिकार करके विजयनगर को सदा के लिए समाप्त कर दिया। परिणाम स्वरुप विजयनगर के पतन के बाद बेदनूर, मैसूर, तंजौर, मदुरई, श्रीरंगपट्टनम के स्वतंत्र राज्य स्थापित हो गए।

गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक कौन था? विस्तृत जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें


घटना-तालिका

ई• सन् घटना
1336 हरिहर के द्वारा विजयनगर राज्य की स्थापना
1354 हरिहर की मृत्यु और बुक्का का शासक बनना
1377 बुक्का की मृत्यु और हरिहर द्वितीय का शासक बनना
1405 हरिहर द्वितीय की मृत्यु और देवराय प्रथम का शासक बनना
1420 बहमनी राज्यों से विजयनगर का संघर्ष
1422 देवराय प्रथम की मृत्यु और देवराय द्वितीय का शासक बनना
1446 देवराय द्वितीय की मृत्यु और मल्लिकार्जुन का शासक बनना
1465 मल्लिकार्जुन की मृत्यु के बाद विरूपाक्ष का शासक बनना
1485 वीर नरससिंह द्वारा सालुव वंश की स्थापना
1506 वीर नरससिंह द्वारा तुलुव वंश की स्थापना
1509 कृष्ण देवराय का गद्दी पर बैठना
1529 कृष्णदेव राय के मृत्यु के पश्चात उसका चचेरा भाई अच्यूत देवराय विजयनगर का राजा बना
1542 सदाशिव का विजयनगर का राजा बनना
1565 तालीकोटा युद्ध और विजयनगर साम्राज्य की समाप्ति
1572 विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक सदाशिव की मृत्यु

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button