Political science

भारतीय संविधान का निर्माण | Bharat ka Samvidhan | Making of the Indian Constitution

भूमिका

भारतीय संविधान (Indian Constitution) के निर्माण से पूर्व कई दशकों से हमारे प्रबुद्ध व्यक्तियों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से संविधान (Constitution) की जरूरत की बात कही गई। हालाँकि भारत की गुलामी के कारण तुरंत संभव ना हो सकी। तथापि समय-समय पर इनके द्वारा अपने विचार व्यक्त की गई क्योंकि भारतीय बुद्धिजीवी लोगों का मानना था कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे। ऐसे में भारत को चलाने के लिए एक संविधान की जरूरत थी और संविधान को बनाने के लिए संविधान (Constitution) सभा की जरूरत थी।

भारतीय संविधान (sanvidhan) Indian Constitution

अतः हमें आरंभ से देखना होगा कि किन किन परिस्थितियों एवं समस्याओं का सामना करते हुए संविधान सभा की मांग उठी एवं कौन-कौन लोग थे जो इसके लिए मुखर होकर अपनी आवाज उठाई।

भारतीय संविधान (Indian Constitution) के निर्माण के लिए संविधान सभा की मांग

भारतीय संविधान (Indian Constitution) का निर्माण प्रक्रिया के लिए संविधान सभा की मांग दो तरीके से की गई थी

  •  अप्रत्यक्ष तरीके से और
  •  प्रत्यक्ष तरीके से।

संविधान सभा की अप्रत्यक्ष मांग

सर्वप्रथम स्वराज की मांग श्री बाल गंगाधर तिलक द्वारा 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में की गई थी एवं दादा भाई नौरोजी द्वारा 1906 में स्वराज की मांग की। लेकिन यह ‘स्वराज्य’ शब्द की अर्थ को स्पष्ट नहीं किए थे। अतः हम कह सकते हैं कि इन महापुरुषों द्वारा संविधान सभा की अप्रत्यक्ष मांग की गई।

यहां पर यह भी प्रश्न उठता है कि स्वराज की मांग से संविधान सभा की मांग का क्या संबंध। लेकिन यहां यह जान लेना आवश्यक होगा कि जब भी ‘स्वराज्य’ (अपना राज्य) होगा उस देश को चलाने के लिए नियम होंगे।

हमारे भारत देश को चलाने के लिए जो नियम बनाए गए वो ही संविधान कहलाया। अर्थात देश को चलाने के लिए नियम या संविधान का निर्माण। और यह संविधान (Constitution) निर्माण कोई एक दिन की बात नहीं थी इसे बनाने के लिए 2 साल 11 महीने 18 दिन लगे थे इसलिए पहले संविधान सभा की गठन की मांग हुई।

इस तरह से हम कह सकते हैं कि ‘स्वराज्य’ की मांग करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से संविधान सभा की मांग कर डाली।

संविधान सभा की प्रत्यक्ष मांग

महात्मा गांधी ने (1924) कांग्रेस का 40 वां अधिवेशन बेलगांव में ‘स्वराज्य’ के लिए भारतीय इच्छा को स्पष्ट किया तथा एक प्रकार की संविधान सभा का भी सुझाव दिया था। संविधान सभा का सर्वप्रथम विचार 1934 में एम एन रॉय (मानवेंद्र नाथ रॉय) द्वारा रखा गया था। ये स्वराज्य दल के प्रमुख नेता थे।

दूसरी बार प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस द्वारा संविधान सभा की मांग 1935 ईस्वी में रखी गई। इस मांग को प्रथम अधिकारिक मांग भी कहा जाता है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1938 ईस्वी में संविधान सभा की मांग को स्पष्ट रूप से रखते हुए कहा था:-कांग्रेस स्वतंत्र एवं लोकतंत्रात्मक राज्य का समर्थन करती है। जहां राजनीतिक शक्ति समस्त जनता को हस्तांतरित कर दी गई हो और सरकार उसके अधीन हो।  एवं ऐसा राज्य केवल ऐसी संविधान सभा द्वारा ही अस्तित्व में लाया जा सकता है जिसे वयस्क मताधिकार द्वारा चुना जाए और जिसे समस्त देश के लिए संविधान बनाने की अनुमति हो।”

कांग्रेस द्वारा यह मांग 1939 और फिर 1940 में पुनः दुहराई गई लेकिन अंग्रेजों की नीति तो यह थी कि इसे जितनी देर टाल सकें टाल लें।

पढ़ें:- शंकरी प्रसाद बनाम भारत सरकार

द्वितीय विश्वयुद्ध एवं संविधान सभा की मांग एवं क्रिप्स मिशन

ब्रिटिश सरकार द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारंभ तक इस मांग का विरोध किया गया लेकिन विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों को शुरुआती हार के कारण उन्हें यह स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा कि भारतीय संविधानिक समस्या का हल निकालना चाहिए। एवं 1940 में इंग्लैंड में बहुदलीय सरकार ने इस सिद्धांत को भी स्वीकार किया कि भारत के लिए नया संविधान भारत के लोग ही बनाएंगे।

अर्थात संविधान सभा की निर्माण की बात जो पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा मांग की गई थी यह 1940 में स्वीकार कर ली गई। इसे अगस्त प्रस्ताव भी कहा जाता है।

मार्च 1942 में ब्रिटिश सरकार द्वारा सर स्टेफर्ड क्रिप्स को जो ब्रिटिश सरकार के मंत्रिमंडल के सदस्य थे ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों की घोषणा के प्रारूप के साथ भारत आये।

क्रिप्स मिशन की मुख्य बातें इस प्रकार से थी

  •  युद्ध के अंत में एक ऐसा निकाय गठित किया जाएगा जिसे भारत के नए संविधान बनाने का कार्य सौंपा जाएगा
  •  भारतीय प्रांतों तथा देशी रियासतों से मिलकर एक संघ बनेगा
  •  इस संघ में से कुछ प्रांत बाहर रहना चाहें और एक अन्य संघ बनाना चाहें तो उन्हें भी ऐसी अनुमति होगी।
  • नए संविधान सभा के चुनाव के लिए भी एक प्रक्रिया का विवरण दिया गया था।

क्रिप्स मिशन के सुझाव को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने आज स्वीकार किया। कांग्रेस ने इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि इसमें एक से अधिक संघों की बात कही गई थी इससे भारतीय एकता खतरे में पड़ जाती एवं मुस्लिम लीग ने इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि इस सुझाव में पाकिस्तान की मांग एवं उसके लिए अलग संविधान सभा की मांग वर्णित नहीं थी।

1946 की मंत्रिमंडलीय शिष्टमंडल योजना  (कैबिनेट मिशन प्लान)

क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद कांग्रेस द्वारा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू कर दिया गया एवं भारत की एकता एवं विभाजन के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में सहमति नहीं थी इन्हें एकमत करने के लिए काफी असफल प्रयास किए गए अंततः ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भेजें इनमें से अध्यक्ष थे पैथिक लोरेंस, ए वी अलेक्जेंडर एवं एक स्वयं  क्रिप्स भी थे कैबिनेट मिशन की मुख्य बातें निम्नलिखित थी:-

  • एक संविधान सभा गठित कर देने की बात की गई लेकिन पृथक संविधान सभा और पृथक राज्य (मुसलमानों  के) के  दावे को नामंजूर कर दिया गया
  • संविधान सभा की सदस्यों की संख्या 389 रखने की बात की गई।
  • सीटों का बंटवारा 296 एवं 93 सीटों में की गई 296 सीट ब्रिटिश इंडिया के कोटे और 93 सीट देशी रियासत की सीटें थी।
  •  जनसंख्या के अनुपात पर सीटों का आवंटन किया जाएगा।
  • प्रत्येक प्रांत के सीटों का तीन प्रमुख संप्रदायों अर्थात मुस्लिम, सिक्ख एवं साधारण वर्ग में विभाजन।
  •  अप्रत्यक्ष निर्वाचन पर सहमति।
  •  निर्वाचन एकल संक्रमणीय  पद्धति द्वारा किया जाएगा।
  • जैसा कि कैबिनेट मिशन योजना में कहां गया था 1946 में प्रांतों में चुनाव हुए एवं प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों को संविधान सभा के सदस्य चुनने को कहा गया। संविधान सभा में 296 स्थान थे कांग्रेस तथा उसके समर्थक दलों को 211 सीट मिले तथा मुस्लिम लीग को 78 में से 73 सीट मिली। इसमें किसी भारतीय रियासत के प्रतिनिधियों ने संविधान सभा में में भाग नहीं लिया एवं मुस्लिम लीग के सदस्यों ने भी भाग नहीं लिया केवल कांग्रेस एवं अन्य स्वतंत्र दलों के प्रतिनिधियों ने इस संविधान सभा में भाग लिया। जिसकी अधिवेशन 9 दिसंबर 1946 को आरंभ हुआ इस पहले अधिवेशन में मुस्लिम लीग के सदस्यों ने भाग नहीं लिया फिर भी यह अधिवेशन कांग्रेस के द्वारा शुरू कर दिया गया था एवं मुस्लिम लीग ने संविधान सभा को विघटित करने के लिए कहा क्योंकि उनका मानना था कि सभी भागों का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व नहीं हो रही थी।
  •  इधर केंद्र में 3 सितंबर 1946 पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अस्थाई सरकार की स्थापना हो चुकी थी। इस समय देसी रियासत  को एहसास हो गया कि किसी न किसी निकाय से जुड़ना ही पड़ेगा 1947 में कुछ रियासत अपने प्रतिनिधि संविधान सभा में भेज दिए इस संविधान सभा के सदस्यों में लगभग भारत के सभी प्रबुद्ध लोगों की प्रतिनिधित्व थी चाहे वह किसी भी विचारधारा से संबंध क्यों न रखते थे।

20 फरवरी 1947 का ब्रिटिश सरकार का कथन

ब्रिटिश सरकार ने 20 फरवरी 1947 को घोषणा की कि:-

  •  1948 की समाप्ति पर भारत पर ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा तत्पश्चात भारतीयों के हाथ में सत्ता सौंप दी जाएगी।
  • अगर संविधान सभा कैबिनेट प्रतिनिधि मंडल के प्रस्ताव के अनुसार संविधान के निर्माण के कार्य में असफल होती है तो ब्रिटिश सरकार द्वारा इसे ब्रिटिश भारत में केंद्रीय सरकार की शक्ति सौंपी जाएगी एवं ब्रिटिश भारत के लिए केंद्रीय सरकार की  संपूर्ण शक्ति सौंपी जाए या कुछ क्षेत्रों में विद्यमान प्रांतीय सरकार को सौंपी जाए या फिर किसी ऐसे रीति से सौंपी जाए जो सर्वाधिक श्रेष्ठ एवं जनता के हित में हो।

इससे यह हुआ कि मुस्लिम लीग संविधान सभा में शामिल न हो कर अपने लिए अलग संविधान सभा की मांग जारी रखा।

बेरुबारी संघ मामला (1960) जानकारी के लिए पढ़ें।

माउंटबेटन योजना (3 जून 1947)

लॉर्ड माउंटबेटन को भारत की विभाजन और सत्ता की त्वरित हस्तांतरण के लिए भारत भेजा गया। 3 जून 1947 को माउंटबेटन द्वारा योजना प्रस्तुत की गई इसमें निम्नलिखित मुख्य बातें थी:-

  •  भारत और पाकिस्तान में विभाजन किया जाएगा।
  •  पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में और असम की सिलहट के मुस्लिम बहुल वाले जिले में जनमत संग्रह कराया जाएगा कि भारत में शामिल होना चाहते हैं या पाकिस्तान में।
  •  पाकिस्तान के लिए भी पृथक संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा का गठन किया जाएगा।
  •  रियासतों को उनके अनुसार चुनाव की छूट की वे या तो पाकिस्तान या भारत में शामिल हो जाएं या जैसे हैं वैसे ही रहें।
  •  दोनों देश अर्थात भारत एवं पाकिस्तान को सत्ता हस्तांतरण करने का दिन 15 अगस्त 1948 को रखा गया।

इस योजना के अनुसार दोनों प्रांतों पश्चिम बंगाल और पूरी बंगाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के प्रतिनिधियों द्वारा विभाजन और संविधान सभा में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया एवं पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत एवं सिलहट में जनमत पाकिस्तान के पक्ष में गया।

इसके बाद 26 जुलाई 1947 को पाकिस्तान के लिए पृथक  संविधान सभा स्थापित की घोषणा की गई।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947

ब्रिटिश सरकार ने अपने कथन अनुसार भारतीय स्वतंत्रता विधेयक का प्रारूप तैयार किया एवं इस विधेयक को पारित कर भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 बना दिया। इस अधिनियम में यह उपबंध किया गया कि:-

  •  अब भारत के स्थान पर दो स्वतंत्र डोमिनियन स्थापित किए जाएंगे जो भारत और पाकिस्तान के नाम से जाना जाएगा
  •  प्रत्येक डोमिनियन की संविधान सभा को संविधान की रचना करने एवं उसे अंगीकार करने की असीमित शक्ति दी जाएगी
  •  साथ ही संविधान सभा को ब्रिटिश पार्लियामेंट कि किसी भी अधिनियम को (भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम सहित) निरसित करने की शक्ति होगी

अंततः संविधान सभा की शक्ति जो थी उस पर ब्रिटिश सरकार की जितनी भी पाबंदियां थी समाप्त कर दी गई। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी संविधान सभा के लिए कहा था कि:- “स्वतंत्रता तथा शक्ति से उत्तरदायित्व उत्पन्न होते हैं। अब यह उत्तरदायित्व उस संविधान सभा पर है जो कि सभी का प्रतिनिधित्व करने वाली सप्ताह संपन्न इकाई है।”

भारत की संविधान सभा

पूर्व में हमने देखा था कि जो  संविधान सभा अविभाजित भारत के लिए निर्वाचित की गई थी और इसकी पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई वहीं भारत डोमिनियन कि प्रभुत्व संपन्न  संविधान सभा के रूप में 14 अगस्त 1947 को पुनः संचित (समवेत) हुई

यहां पर यह याद रखना जरूरी है कि कैबिनेट मिशन द्वारा सिफारिश की स्कीम के अनुसार ही भारत के संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुई थी जिसे हम केबिनेट मिशन प्लान में देख चुके हैं। एक बार संक्षिप्त में फिर से देख लेते हैं:-

  •  प्रत्येक प्रांत को और प्रत्येक देशी रियासत या रियासतों के समूह को अपनी जनसंख्या के अनुपात में कुल सीटें आवंटित किए गए।
  •  प्रत्येक प्रांत की सीटों का तीन प्रमुख संप्रदायों (मुस्लिम, सिख एवं साधारण वर्ग में) में विभाजन।
  •  10 लाख की जनसंख्या पर एक सीट का निर्धारण।
  •  संविधान सभा के कुल 389 सदस्य चुने गए जिसमें प्रांतों में 292 सदस्य देशी रियासत से 93 सदस्य और कमिश्नरी क्षेत्र से 4 सदस्यों का निर्वाचन किया गया था।
  •  प्रांतीय विधानसभा में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने एकल संक्रमणीय मत से अनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन किया।
  •  3 जून 1947 को विभाजित पाकिस्तान के लिए एक पृथक संविधान सभा का गठन किया गया। परिणाम स्वरूप 31 अक्टूबर 1947 को भारतीय संविधान सभा की सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई।

पढ़ें:- भारतीय संविधान के प्रस्तावना

संविधान सभा का कार्य

1946 में कैबिनेट मिशन के द्वारा संविधान सभा एवं अंतरिम सरकार के गठन की अनुशंसा की गई। नवंबर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान बनाने का कार्य 9 दिसंबर 1946 को आरंभ हुआ और 26 दिसंबर 1949 को समाप्त हुआ। संविधान सभा का कार्य निम्नलिखित तरीके से संपन्न हुआ:-

  •  9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई जिसके प्रथम अस्थाई अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा थे। इसमें मुस्लिम लीग भाग नहीं लिया अर्थात बहिष्कार किया।
  •  11 दिसंबर 1946 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया।
  •  बी एन राव संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किए गए।

पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा “उद्देश्य प्रस्ताव”

पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा “उद्देश्य प्रस्ताव”13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में “उद्देश्य प्रस्ताव” प्रस्तुत किया गया। जो कि 22 जनवरी 1947 को पारित हो गया। इस प्रस्ताव में संविधान के उद्देश्यों की बात की गई थी। इस प्रस्ताव के महत्व को बताते हुए स्वयं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि:- ‘यह केवल एक प्रस्ताव ही नहीं इससे भी अधिक है, यह घोषणा है, एक दृढ़ निश्चय, एक प्रण, एक उत्तरदायित्व है और हम सब के लिए एक समर्पण है।’

आगे उन्होंने प्रस्ताव इस प्रकार रखा:- “यह संविधान सभा अपने दृढ़ तथा सच्चे निश्चय की घोषणा करती है कि हम भारत को एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता गणराज्य बनाएंगे और उसके लिए एक ऐसी भावी शासन प्रणाली तथा संविधान बनाएंगे जो प्रभुसत्ता संपन्न स्वतंत्र भारत तथा उसके घटकों तथा सरकार के अंगों को समस्त शक्ति जनता से प्राप्त होगी तथा जिसमें भारत के सभी लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रतिष्ठा, अवसर तथा न्याय की समानता, विधि तथा सदाचार के अनुरूप विचार की अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, व्यवसाय, सहचार्य तथा कार्य की स्वतंत्रता की गारंटी होगी। समस्त अल्पसंख्यकों, पिछड़े हुए तथा जनजातीय प्रदेशों, दलित तथा पिछड़ी हुई जातियों को पर्याप्त संरक्षण प्राप्त होंगे। भारतीय गणतंत्र के प्रदेश तथा उनकी अखंडता और इसकी भूमि, समुद्र  तथा आकाश में सत्ता न्याय तथा सभ्य राष्ट्रों के कानून के अनुसार बनाई जाएगी और यह प्राचीन देश संसार में अपना अधिकृत तथा प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त करेगा और मानव के कल्याण तथा विश्व की शांति को प्रोत्साहित करने में अपना पूर्ण तथा  सहर्ष सहयोग देगा।”

वास्तव में यह “उद्देश्य प्रस्ताव” भारतीय संविधान की प्रस्तावना का ही रूपरेखा था जो कि आगे इसी “उद्देश्य प्रस्ताव” के अनुरूप ही बनाया गया।

पढ़ें:- भारतीय संविधान के प्रस्तावना की तत्व/आदर्श/लक्ष्य

संविधान (Constitution) निर्माण समितियां

  •  संविधान सभा के द्वारा संविधान निर्माण हेतु 22 समितियां बनाई गई थी जिनमें से प्रमुख है:-
क्र. स. समितियाँ अध्यक्ष
1 प्रांतीय संविधान समिति सरदार वल्लभभाई पटेल
2 मसौदा (प्रारूप समिति) भीमराव अंबेडकर
3 संचालन समिति राजेंद्र प्रसाद
4 संघ शक्ति समिति जवाहरलाल नेहरू
5 मौलिक अधिकार उप समिति जे बी कृपलानी
6 संघ संविधान समिति पंडित जवाहरलाल नेहरू
7 झंडा समिति जे बी कृपलानी
8 राज्य समिति पंडित जवाहरलाल नेहरू
9 परामर्श समिति सरदार वल्लभभाई पटेल
10 सर्वोच्च न्यायालय समिति एस वारदा चारियार
11 अल्पसंख्यक उप समिति एच सी मुखर्जी
12 संविधान समीक्षा आयोग एम एन वैंकटाचेलैया

इन्हीं समितियों के अनुशंसा के आधार पर संवैधानिक सलाहकार बी एन राव (बेनेगल नरसिंह राव) ने संविधान का प्रथम प्रारूप तैयार किया। जिसमें 243 अनुच्छेद एवं 13 अनुसूचियां थी।

 29 अगस्त 1947 को इस प्रारूप पर विचार विमर्श के लिए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में 6 सदस्य प्रारूप समिति का गठन किया गया। प्रारूप समिति के सदस्य इस प्रकार हैं:-

  1.  डॉ भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष)
  2.  एन गोपालस्वामी आयंगर
  3.  अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर
  4.  कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
  5.  सैयद मोहम्मद सादुल्ला
  6.  एन माधवराव (इन्होंने बी एल मित्र की जगह ली जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से त्यागपत्र दे दिया था)
  7.  टी टी कृष्णामचारी (इन्होंने 1948 में डी पी खेतान की मृत्यु के बाद जगह ली)

प्रारूप समिति के द्वारा संविधान (Constitution) के पहला दूसरा एवं तीसरा (अंतिम) प्रारूप का निर्माण किया गया। संविधान के प्रारूप पर कुल 165 बैठकें हुई एवं 114 दिन के चर्चा के बाद तथा अनेक संशोधन एवं बहस के बाद आखिरकार 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियों के साथ हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ।

संविधान सभा के अंतिम प्रारूप में 284 सदस्य 26 नवंबर 1949 को अंतिम रूप से पारित संविधान पर हस्ताक्षर किए थे। हमारे संविधान (Constitution) को बनने में 2 साल 11 महीने 18 दिन का समय लगा।

तीसरा एवं अंतिम प्रारूप को संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को अपनी स्वीकृति दी और इसी दिन भारतीय संविधान (Indian Constitution) अंगीकृत भी किया गया।

नागरिकता निर्वाचन एवं अंतरिम संसद तथा अस्थाई एवं संक्रमण उपबंध 26 नवंबर 1949 से ही प्रभावी हुआ जबकि संविधान (Constitution) का शेष भाग 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। अतः हमारा देश 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाता है।

1952 के प्रथम आम चुनाव तक संविधान सभा ही अंतरिम संसद के रूप में कार्यरत थी और इसी के द्वारा ही कानून का निर्माण होता था। यही वजह है कि संविधान सभा भारत के प्रथम संसद के नाम से भी जाना जाता है।

हमारे भारतीय संविधान (Indian Constitution) के निर्माण में डॉ भीमराव अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान होने के कारण इसे भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है।

अतः हम देखते हैं कि हमारे देश कि संविधान (Constitution) निर्माण के लिए संविधान सभा के 389 सदस्यों ने मिलकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस संविधान (Constitution) में सबसे ज्यादा प्रभाव भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) का है क्योंकि इसमें लगभग 250 अनुच्छेद जो थे इसी अधिनियम से लिए गए थे।

साथ ही हमें यह भी देखने को मिला कि विषम परिस्थिति में भी भारतीय महापुरुषों ने हमारे देश के संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा की मांग करते रहे एवं उसमें सफल भी हुए। इसी के साथ हम यह भी देखते हैं कि हमारा संविधान (Constitution) दुनिया का सबसे लंबा लिखित एवं सुंदर संविधान बनकर तैयार हो गया।

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